Saturday, July 12, 2014

मंगई की छाती

बिन बरसा आषाढ़ 
आंसू हो गए गाढ़
होठो में फटी बिवाई 
अब हंसने को तरस रहे.


फुहारों की छुवन अब कहाँ 
अंगो में सिहरन अब कहाँ 
देखे मेढ़ो को टुकुर टुकुर 
नैना सुखने को तरस रहे.


सन्नाटा है घर बार में 
अंखुआ सूख गए बंसवार में.
कातिक में कैसे खेत बुवाई 
बैल नधने को तरस रहे .


फटी हुई है मंगई की छाती
घर में भूजी भाँग है थाती 
आशा भी अब अस्ताचल को 
पौ फटने को तरस रहे .

Monday, June 23, 2014

विफल जीवन

ह्रदय कानन में अब फूल खिलते 
सुमन रंजित राग विचित्र से 
मधुर मोहक सौरभ संग से 
अति सुवास रहे नित ही यहाँ 


या नवीन अनुपम मोहिनी 
यद्दपि थी खिलती कुसुमावली
पर निरर्थक ही रह के सदा 
सकुच पुष्प गिरै सब भूमि पे 


मधुर सौरभ सूंघ न थे किये 
सकल पुष्प किसी सुरसज्ञ ने 
सुखित नेत्र ना समझे कमी 
निरख चित्र सुराग समूह को 


मुकुल सादर कंठ प्रदेश में 
रुचिर माला बना पहिने नहीं 
विफल जीवन था उनका हुआ 
रहित होकर एक गुणज्ञ से .

Monday, May 26, 2014

प्रार्थना


छिपी हुई वो तेज राशि
आ ! अंतर आलोकित कर दे 
दुर्बलता के सघन तिमिर में 
ज्योतिर्मयी आभा भर दे


संपुट दुविधा का खोल लूँ 
प्रज्ञा हो अंतर्मन के लोल में 
तामस -तमस को घोल दूँ 
हो सुधा शाद्वल इस खगोल में 


अपना भूला मार्ग खोज लूँ
जिधर छिपी रत्नों की खान 
उनमे से एक दो बीन लूँ
आत्मिक बल , जाग्रति , उत्थान .

Thursday, December 26, 2013

बधशाला -16


श्री कृष्ण का सर्व प्रथम , जब था पूजन होने वाला 
क्रोधित हो यह देख, गालियाँ लगा सुनाने मतवाला 
अरे बोल वह कब तक सुनता , सुनली उसकी सौ गाली
वही राजसूय यज्ञ बना , शिशुपाल दुष्ट की बधशाला





हाथ कफ़न से बाहर कर दो,ह्रदय नहीं मेरा काला
देखे दुनिया ! खाली हाथो , जाता है जाने वाला 
कहा सिकंदर ने मरते दम , मेरे गम में मत रोना 
वे ही रोये जिनके घर में , नहीं खुली हो बधशाला






गिरा गोद में घायल पक्षी , आतुर होकर देखा भाला
वहां बधिक आ गया भूख से , था व्याकुल मरने वाला
जीवन मरण आज गौतम को.,खूब समझ में आया था
किस पर दया करूँ! क्या दुनिया , इसी तरह है बधशाला





Tuesday, November 26, 2013

बधशाला -15

हिंसा से हिंसा बढती है , पीयो प्रेम रस का प्याला 
नफरत से नफरत को वश में , अरे कौन करने वाला 
"बापू" के हित अगर तुम्हारी , आँखों में कुछ आंसू है 
बंद करो लड़ाई,मत  खोलो , हिन्दू मुस्लिम बधशाला.



मंदिर तोड़ मुसलमां सहसा , बोल उठा अल्ला ताला
मस्जिद फूंक और हिन्दू का , बजा शंख घंटा आला 
जान न पाए दोनों पागल , उसके नाम अनेकों है ,
किया धर्म बदनाम खोल , रहमान राम की बधशाला.



नाच गया किसकी थापों पर , जिन्ना होकर मतवाला 
किसके सगे हुए ये गोरे, रहा हमेशा दिल काला
"क्रिप्स" लगाकर आग हिन्द में , सात समुन्दर पर गया 
बजा रहा था "चर्चिल" ट्रम्पेट , देख हमारी बधशाला

Monday, November 18, 2013

तत्व

तरल तरंगो सी क्षण क्षण नव
केलि कामनाएं करती

थिरक थिरक मेरे मानस में

अतुलित आन्दोलन भरती




वीचि वृन्द के चंचल उर में

उत्कंठा ने ले अवतार
चित्र विचित्र खीच दिखलाया
मणि मंडित आभरण अपार





उनसे उदगत दीप्त दीप्ति से

सज्जित सुन्दर उनके अंग
उस कल्पित आकर्षक छवि पर
मन में ऐसी उठी उमंग 





लड़ी जगत चिंता की टूटी 

कर देता सब कुछ निस्सार

उन्हें मिली वो मणियाँ सुन्दर

इसी अर्थ सारे व्यापार




नित नवीन श्रम जनित खेद से

खिन्न हुआ मै अति ही श्रांत

मुकुलित चर्म-चक्षु , उन्मीलित
मानस के लोचन अभ्रांत 





उनसे बाह्य जगत की मणियाँ

लज्जित थी पा गहरी हार

वो फूली नहीं समाई मन में
मिला देख सच्चा भंडार 





हंस कर मैंने निज जड़ता पर

हर्षित होकर खोई भ्रान्ति

सुलझ गई जीवन की उलझन
मेरी मिटी अपरिमित श्रांति .

Thursday, November 14, 2013

विश्व वैचित्र्य

कही अतुल जलभृत वरुणालय
गर्जन करे महान
कही एक जल कण भी दुर्लभ
भूमि बालू की खान

उन्नत उपल समूह समावृत
शैल श्रेणी एकत्र
शिला सकल से शून्य धान्यमय
विस्तृत भू अन्यत्र

एक भाग को दिनकर किरणे
रखती उज्जवल उग्र
अपर भाग को मधुर सुधाकर
रखता शांत समग्र

निराधार नभ में अनगिनती
लटके लोक विशाल
निश्चित गति फिर भी है उनकी
क्रम से सीमित काल

कारण सबके पंचभूत ही
भिन्न कार्य का रूप
एक जाति में ही भिन्नाकृति
मिलता नहीं स्वरुप

लेकर एक तुच्छ कीट से
मदोन्मत्त मातंग
नियमित एक नियम से सारे
दिखता कही न भंग

कैसी चतुर कलम से निकला
यह क्रीडामय चित्र
विश्वनियन्ता ! अहो बुद्धि से
परे विश्व वैचित्र्य.