ह्रदय कानन में अब फूल खिलते
सुमन रंजित राग विचित्र से
मधुर मोहक सौरभ संग से
अति सुवास रहे नित ही यहाँ
या नवीन अनुपम मोहिनी
यद्दपि थी खिलती कुसुमावली
पर निरर्थक ही रह के सदा
सकुच पुष्प गिरै सब भूमि पे
मधुर सौरभ सूंघ न थे किये
सकल पुष्प किसी सुरसज्ञ ने
सुखित नेत्र ना समझे कमी
निरख चित्र सुराग समूह को
मुकुल सादर कंठ प्रदेश में
रुचिर माला बना पहिने नहीं
विफल जीवन था उनका हुआ
रहित होकर एक गुणज्ञ से .