Friday, January 13, 2012

शिखा वार्ष्णेय रचित "स्मृतियों में रूस" और मेरी विहंगम दृष्टि

किताबे पढने का शौक जो बचपन से लगा अभी तक निर्विघ्न और अनवरत जारी है. सामने पुस्तक देखकर मेरी आँखों में उसे पढने की ललक स्पष्ट रूप से दिखाई देती है.. अपने बचपन के दिनों में मुझे हिंदी के कुछ मूर्धन्य  और देदीप्यमान साहित्यकारों को  सन्मुख देखने को  मिला.  मुझे कई साल बाद उनके बारे में  पता चला  क्योंकि उस उम्र में लेखक या साहित्यकार क्या होते है ,मुझे  नहीं पता था..   सूर.तुलसी की  भक्ति आन्दोलन काल से प्राम्भ होकर,  रीतिकालीन  बिहारी के काव्य का रसास्वादन और  आधुनिक हिंदी साहित्य की हर विधा की पुस्तक पढने का सौभाग्य मिला है .

विगत दिनों हमारे हिंदी ब्लॉग जगत की प्रतिभाशाली और  लोकप्रिय  लेखिका श्रीमती शिखा वार्ष्णेय जी द्वारा लिखित पुस्तक "स्मृतियों में रूस" पढने का सौभाग्य मिला .  इस  प्रस्तुति की समीक्षा लिखना तो मेरे वश की बात नहीं है पर हाँ एक पाठक की हैसियत से दो शब्द जरुर कहूँगा. लेखिका किसी परिचय की मोहताज तो नहीं है फिर भी रीति   तो निभानी  ही पड़ेगी . लेखिका का जन्म हिन्दुस्तान में हुआ और प्रारंभिक शिक्षा के बाद उन्होंने  .मास्को विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर की पदवी . स्वर्ण पदक के साथ अर्जित की. टीवी और प्रिंट मीडिया में काम  करने के बाद सम्प्रति लन्दन में स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कार्यरत है .

"स्मृति में रूस" यूँ   पुस्तक के नाम से ही अनुमान लगाया जा सकता है की इस  पुस्तक में लेखिका ने  अपने उच्च अध्ययन  के लिए पूर्व सोवियत संघ में अपने पंचवर्षीय  प्रवास के दौरान जिये गए क्षणों को  समेटा है. पुस्तक का  कवर पेज आकर्षक और नयनाभिराम है .जो पहले नजर में ही पढने के लिए न्योता देता है .

लेखिका का रूस पढने जाने की खबर सुनकर माँ की ममता और संतान से विछोह के  डर का सटीक चित्र उकेरा है .
"एक बार लड़की को विदेश भेजा तो फिर वही की होकर रह जाएगी "

                            किसी भी विद्यार्थी द्वारा अपने परिवार से दूर जाने की मनोस्थिति का चित्र भी देखिये .
"अब जब मेरा अचानक चयन हो गया था रूस जाने के लिए तो मै समझ नहीं पा रही थी की खुश होऊ या डरूं"

लेखिका ने उन सारी कठिनाइयों का वर्णन किया है जो की भाषा जनित है . रूस में आंग्ल भाषा का प्रचलित ना होना और लेखिका का  रूसी भाषा से अपरिचित होना , संवादहीनता के कारण तमाम दुश्वारियों का सामना करना पड़ा ..
मुझे परेशान देख वो लड़की ना जाने क्या पूछने लगी रूसी में और मै उसकी शक्ल देखकर बडबडाने लगी "रुस्की नियत ".

लेखिका  ने अपने   रूस प्रवास के सालों में वहा के  सामाजिक और आर्थिक ढांचे में परिवर्तन की सुगबुगाहट , रोजमर्रा की जरुरत की चीजे पाने की मशक्कत , वहाँ  बढती महगाई , मुद्रा स्फीति का बढ़ना और वहाँ की  मुद्रा रूबल का अवमूल्यन , जैसी घटनाओ  का रोचकता से वर्णन किया है .

"उस समय रूस में हर चीजों में राशनिंग थी . उन दिनों वहा पर चावल , नमक चीनी से लेकर सेनेटरी नेपकिन लेने के लिए घंटो तक लाइन में लगे रहना पड़ता था वो भी पता लग जाए की दुकान में समान आ गया हो "

रोचक अंदाज में  मास्को स्टेट विश्वविद्यालय में अपने प्रवेश के बारे में बताने के बाद ,अचानक एक गंभीर विषय पर लेखनी चली है .शीतकालीन  द्वि- ध्रुवी  विश्व में एक ध्रुव का केंद्र सोवियत संघ के  विघटन .के बाद की राजनैतिक हलचल , आर्थिक सुधारों की छटपटाहट, अपने देश से बेइंतहा प्यार करने वाले रूसियों का अचानक विदेश जाने की  मोह वृद्धि , विदेशी मुद्रा की कालाबाजारी , रोजगार का टोटा, इत्यादि विषयों पर गम्भीर चर्चा पढने को मिलता है .

इन विकट परिस्थितियों से जूझते एक रूसी दंपत्ति की भूख से बिलबिलाने की कारुणिक झलक पाठक के अन्तःस्थल को झकझोर जाता है
 "एक दिन रास्ते पर चलते हुए मैंने एक माँ और ४-६ साल की बच्ची को देखा . माँ ने एक केला ख़रीदा और आधा खाया फिर बच्ची को दिया की वाह भी खा ले .बच्ची ने खाया तो माँ ने उसके हाथ से चौथाई केला ले लिया की ये पापा के लिए है "



  पुस्तक में रूसी भाषा के मूर्धन्य लेखको जैसे गोर्की , टालस्टाय की चर्चा से लेकर रसियन भोज्य पदार्थो के बारे में विभिन्न परिप्रेक्ष्य में  रोचकता से परोसा गया है .रूस की स्थापत्य कला के विख्यात स्तम्भ क्रेमलिन से लेकर सेवेन सिस्टर्स के बारे में रोचक जानकारी . विभिन्न एतिहासिक स्थलों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी और वहा के समाज में प्रचलित कथाएं भी संग्रहित  है .

.ज्यादा विस्तार में ना जाते हुए इतना कह सकता हूँ की संस्मरण विधा की इस रोचक पुस्तक में लेखिका के खट्टे मीठे अनुभवों के साथ मै डूबता उतराता  रहा ..  साहित्यिक आडंबर ना ओढ़े हुए ये  पुस्तक आम पाठक के लिए लिखी गई है वही खास वर्ग को भी  पढने के लिए आकर्षित करेगी ,ऐसा मेरा दावा है.
और अंत में
संस्मरण  विधा को रोचकता से प्रस्तुत करने के लिए लेखिका को हार्दिक बधाई .एवं साधुवाद

पुस्तक -- स्मृतियों में रूस 
लेखिका - शिखा वार्ष्णेय 
प्रकाशक - डायमंड पब्लिकेशन 
मूल्य  -- 300 /रूपये

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