Friday, February 22, 2013

बधशाला-4

सुनकर जिसका नाम ! फिरंगी पर पड़ जाता था पाला
एक लालची ने धोखा से , उसको बंधन में डाला
फांसी पर चढ़ गया ! अमर, हो गया तात्या मरदाना
पूर्णाहुति बन गई ग़दर की , वीर तुम्हारी बधशाला

गीता गीता कहे ! न कहता , त्यागी त्यागी मतवाला
लिप्त हुआ माया में भूला , अपने को भोला भाला
गीता से ! अमरत्व बरसता है , फांसी के तख्ते पर
खुदी छोड़कर कभी न देखी, खुदीराम की बधशाला

नीच "रैंड" का अवसर पाकर , वीरों ने बध कर डाला
मरने से कब कहाँ डरा है , अरे अमर होने वाला
फांसी पर चढ़ गए झूमते , एक साथ तीनो भाई
वे चापेकर बंधु की अबतक , गुण गाती है बधशाला

लार्ड हार्डिंग पर दिल्ली में ,तूने ही था बम डाला
चला गया जापान ,आँख में , धूल झोंककर दिलवाला
"रास विहारी बोस" तुम्हारे , सब प्रयत्न हो गए सफल
अपनी आँखों देख गए तुम , अंग्रेजों की बधशाला.

माता ! तुमसे एक शर्त पर , तेरा सुत मिलने वाला
मुख देखूंगा नहीं ! देखकर , मुझे अगर आंसू डाला
हंसी ख़ुशी से मिल माता से , फिर सत्येन्द्र चढ़ा फाँसी
वह बडभागिन हँसते हँसते , देख रही थी सुत बधशाला .

कायर डायर का हमको , याद है कारनामा काला
नहीं जुल्म की अंतिम सीमा , बना तीर्थ जलियांवाला
पिंडदान करने कुटुंब का , उठो ! सभी पंजाब चलो
नया राष्ट्र निर्माण करेगी , उन वीरों की बधशाला