Monday, August 11, 2014

बधशाला -17


मेरे शव को हाथ लगाये , जिसके कर में छाला 
मेरी अर्थी में, घायल जो , हो कन्धा देने वाला 
जिसके दिल में आग लगी हो , वही चिता मेरी फूंके 
कर्म करे तो बांध कफ़न सर , सीधे जाये बधशाला 


गर्म रक्त से ! मेरा तर्पण , हो कोई करने वाला 
सहसबाहु का परशुराम ने , जैसे वंश मिटा डाला 
तृप्त आत्मा होगी मेरी , कहीं जुल्म का नाम न हो 
जहाँ मिले कोई भी जालिम , वहीँ खोल दो बधशाला 


जो कुछ समझा मैंने उतना, वीरों का यश लिख डाला 
क्षमा करो अपराध ! भूल है , नहीं है मेरा दिल काला 
रहे शेष जो उनकी पदरज , निज मस्तक पर धरता हूँ 
देश धर्म हित खोल चुके , या देख चुके जो बधशाला