Wednesday, March 21, 2012

शाश्वत प्यार .

जब निदाध से तापित होता 
 धरनी  का उर अपरम्पार 
उमड़ घुमड़ कजरारे वारिद 
सिंचन करते शिशिर फुहार 

जब तम पट में मुँह ढक राका
रोती गिरा अश्रु निहार 
सुभग सुधाकर उसे हँसाता 
ललित  कलाएं सभी प्रसार 

सरोजनी का मृदुल बदन जब 
नत होता सह चिंता भार
दिनकर कर -स्पर्श से उसमे 
करता अमित मोद संचार 

सरिताओं  के जीवन पर जब 
करता तपन कठोर प्रहार
व्योम मार्ग से जलधि भेजता 
उन तक निज उर की रसधार 

कठिन पवन के झोंको से जब 
होता विकल मधुप सुकुमार 
कमल-कली झट उसे बचाती 
आवृत कर निज अन्तर्द्वार

हृदयहीन होने पर भी है
कितना सहृदय व्यापार 
प्रकृति सुंदरी सत्य  बता दे 
किससे पाया इतना प्यार ?

Wednesday, March 14, 2012

अस्तित्व की खोज


कल गोधुलि में, किसी ने मेरे ,अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगाया
क्षण भर को वितृष्णा जाग उठी , अकिंचन मन भी अकुलाया

दुर्भेद्य अँधेरे में भी, मन दर्पण , प्रतिबिंबित करता मेरी छाया
लाख जतन कोटि परिश्रम , पर अस्तित्व बिम्ब नजर न आया

विस्फारित नेत्रों से नीलभ नभ में , ढूंढ़ता अपने स्फुटन को
मार्तंड की रश्मि से पूछा , टटोला फिर निशा के विघटन को

क्या उसके कलुषित ह्रदय  का , ये  भी कोई ताना बाना है?
या उसके  कुटिल व्यक्तित्व का ,  कोई पीत पक्ष  अनजाना है 

उठा तर्जनी किसी तरफ , चरित्र हनन, हो गया शोशा है
हम निज कुंठा जनित स्वरों से , अंतर्मन को दे रहे  धोखा है

हम खोज  रहे अस्तित्व अपना , जैसे कस्तूरी ढूंढे  मृग राज
बिखर नहीं सकता ,कालखंड में , जिसकी त्वरित गति है आज

Friday, March 2, 2012

वंचिता

संध्या ने नभ के सर में 
अपनी अरुणाई घोली 
दिनकर पर अभिनव रोली 
बिखरे भर भर झोली 

रंगीन करों में उसके 
देख  रंगभरी पिचकारी 
पश्चिम के पट में छिपने 
भागे  सहस्र करधारी

धूमिल प्रकाश  में लख यह 
नभ-रंगभूमि की लीला 
नत -नयना नलिनी का मुख
मुरझाया हो कर पीला

तब आ कर अलि -बालाएं 
निज मृदु गुंजन गानों में 
प्रिय सजनी सरोजनी को 
है समझाती  कानों में 

सखी ! सहज कुटिल इस रवि की 
यह लीला नित ही होती 
अब कठिन बना निज मृदु उर 
क्यों अवनत -बदना   रोती