Sunday, July 16, 2017

इह मृगया

सुनो तुम ईवा हो 
कभी सोने के रंग जैसी 
तो कभी फूलों की उमंग जैसी 
कभी कच्ची मखमली घास की छुवन
युग ,संवत्सर , स्वर्ग और भुवन 
तुम्हारा शरीर क्या है
दो नदियाँ मिलती है अलग होती है
तुम भाव की नदी बनकर धरती की माँझ हो
भाव की देह हो भाव का नीर हो
भाव की सुबह और भाव की सांझ हो
तुमने सुना है देह वल्कल क्या चीज़ है ?
तुम्हारे दोनों ऊरुओं के मध्य
घूमता है स्वर्णिम रौशनी का तेज चक्र
उत्ताप से नग्न वक्ष का कवच
मसृण और स्निग्ध हो जाता है
तुम रति हो फिर भी
तुम्हारी भास्वर कांतिमय देह
किसी कामी पुरुष की तरह स्रवित नहीं होती
सुनो ! आकाश भी छटपटाता है
धरती बधू को बाँहों में घेरने के लिए
वधू -धरित्री की भी ऐसी आकांक्षा होगी
नहीं पता मै लिख पाया या नहीं
लेकिन ये है इह मृगया
जाने गलत है या सही .

Friday, June 30, 2017

नमोस्कार ! बंधू -बांधवी लोगो ने कहा आज अंतर राष्ट्रिय ब्लॉगिंग दिवस है l हमहूँ मान लिए l सालों से बंद पड़े ब्लॉग को टटोला , बिचारा मुँह बिचकाये , धूल धूसरित , दैन्य भाव से देख रहा था मुझे.l अरे हाँ इस दैन्यता से प्रवीण पांडेय जी याद आये , "न दैन्यं न पलायनम" वाले .l चलो अब  इस ठिये पर आये तो सब याद आ जायेंगे . आज तो फ़िलहाल ब्लॉग बाबू का पासवर्ड ढूंढा , धूल साफ़ की , बढे  हुए केश मूच्छादि पर उस्तरा चलाया अब भाई साहब इंसान जैसे दिख रहे है .l
देखिये  अब यहाँ क्या लिखना है , इचिको भी समझ में नहीं आ रहा l लेकिन  बकौल फुरसतिया सुकुल  हम कुच्छो लिखेंगे , हमार कोई का बिगाड़ लेगा  और ख़राब लिखना ही लिखने की असली वाली सीढ़ी है, जो एकदम दीवाल से चिपकी रहती है . सुनिए , आज हम ज्यादा नहीं लिख सकते , दफ्तर में जी एस टी इंतज़ार कर रहा है और पत्नी फटकार रही है कि फिर शुरू हो गए इस मुए ब्लॉगिंग के साथ l लेकिन हम भी ठहरे बेशर्म टाइप के , इत्ता तो लिख दिए , कल से आप लोगो को फड़फड़ाती कविता से बोरियायेंगे .l
आज तो बस इत्ता ही . जय हो l