बोल कौन था पथ भ्रष्टो को , सत पथ पर लाने वाला
मानवता के लिए प्रेम से ,पिया हलाहल का प्याला
हुआ सिकंदर और अरस्तु , अफलातूं लुकमान तो क्या
अमर वीर सुकरात तुम्हारी , अमर रहेगी बधशाला
यहाँ न कोई हिंसा करना , लौट जाय लड़ने वाला
महादेव भगवान करेंगे , आप शत्रु का मुंह काला
हुए अन्धविश्वासी कायर , होना था सो वही हुआ
सोमनाथ में खोल गया , महमूद गजनवी बधशाला
राज पाट को त्याग वचन निज , अंत समय तक था पाला
पुत्र ,प्रिया को बेच बना खुद , मरघट का रखवाला
कर्म वीर कर्तव्य निभाया , विपदा से कब मुंह मोड़ा
हरिश्चन्द्र के सम असत्य की, किसने खोली बधशाला
यज्ञ निमंत्रण दिया न शिव को ,रहा दक्ष का उर काला
सती सह न सकी अपमान , उठी उनके उर में ज्वाला
बिना बुलाये कभी किसी का , कहाँ हुआ सम्मान भला
पिता यज्ञ में शैल सुता ने , अपनी खोली बधशाला
प्यासा था वनवीर खून का , उदयसिंह के मतवाला
तूने स्वामी सुत रक्षा हित , अपना सुत मरवा डाला
आंसू निकला नहीं एक भी , निकली मुख से हाय कहाँ
अमर रहेगी पन्ना मां की , वीर -भूमि में बधशाला
मानवता के लिए प्रेम से ,पिया हलाहल का प्याला
हुआ सिकंदर और अरस्तु , अफलातूं लुकमान तो क्या
अमर वीर सुकरात तुम्हारी , अमर रहेगी बधशाला
यहाँ न कोई हिंसा करना , लौट जाय लड़ने वाला
महादेव भगवान करेंगे , आप शत्रु का मुंह काला
हुए अन्धविश्वासी कायर , होना था सो वही हुआ
सोमनाथ में खोल गया , महमूद गजनवी बधशाला
राज पाट को त्याग वचन निज , अंत समय तक था पाला
पुत्र ,प्रिया को बेच बना खुद , मरघट का रखवाला
कर्म वीर कर्तव्य निभाया , विपदा से कब मुंह मोड़ा
हरिश्चन्द्र के सम असत्य की, किसने खोली बधशाला
यज्ञ निमंत्रण दिया न शिव को ,रहा दक्ष का उर काला
सती सह न सकी अपमान , उठी उनके उर में ज्वाला
बिना बुलाये कभी किसी का , कहाँ हुआ सम्मान भला
पिता यज्ञ में शैल सुता ने , अपनी खोली बधशाला
प्यासा था वनवीर खून का , उदयसिंह के मतवाला
तूने स्वामी सुत रक्षा हित , अपना सुत मरवा डाला
आंसू निकला नहीं एक भी , निकली मुख से हाय कहाँ
अमर रहेगी पन्ना मां की , वीर -भूमि में बधशाला