Wednesday, March 20, 2013

बधशाला -6

 बोल कौन था पथ भ्रष्टो को , सत पथ पर लाने वाला
मानवता के लिए प्रेम से ,पिया हलाहल का प्याला
हुआ सिकंदर और अरस्तु , अफलातूं  लुकमान  तो क्या
अमर वीर सुकरात तुम्हारी , अमर रहेगी बधशाला

यहाँ न कोई हिंसा करना , लौट जाय लड़ने वाला
महादेव भगवान करेंगे , आप शत्रु का मुंह काला
हुए अन्धविश्वासी कायर , होना था सो वही हुआ
सोमनाथ में खोल गया , महमूद गजनवी बधशाला

राज पाट को त्याग वचन निज , अंत समय तक था पाला
पुत्र ,प्रिया को बेच बना खुद , मरघट का रखवाला
कर्म वीर कर्तव्य निभाया , विपदा से कब मुंह मोड़ा
हरिश्चन्द्र के सम असत्य की, किसने खोली बधशाला

यज्ञ निमंत्रण दिया न शिव को ,रहा दक्ष का उर काला
सती सह न सकी अपमान , उठी उनके उर में ज्वाला
बिना बुलाये कभी किसी का , कहाँ हुआ सम्मान भला
पिता यज्ञ में शैल सुता ने , अपनी खोली बधशाला

प्यासा था वनवीर खून का , उदयसिंह के मतवाला
तूने स्वामी सुत रक्षा हित , अपना सुत मरवा डाला
आंसू निकला नहीं एक भी , निकली मुख से हाय कहाँ
अमर रहेगी पन्ना मां की , वीर -भूमि में बधशाला

Sunday, March 3, 2013

बधशाला -5



ऊपर के  लिंक को क्लिक करके आप बधशाला का शस्वर पाठ  सुन सकते है.




भीष्म पितामह सा व्रत धारी, था दिलेर वह दिलवाला 
डाली आज़ादी ने जिसके , गले में खूब विजयमाला 
पर -वाना बनकर दीवाना, हा ! अनंत की ओर उड़ा
अरे दैव ! निर्दयी खोल दी , क्या सुभाष की बधशाला


इधर उठा अफगान उधर , बंगाल मस्त था मतवाला 
कश्मीर से कन्याकुमारी , तक फैली जीवन की ज्वाला 
बालक. बूढ़े, युवा, युवतियां , बने देश के दीवाने 
अरे गुलामी की खोली थी , हमने जिसदिन बधशाला


"करो मरो" के मूलमंत्र की , जाग उठी जिस दम ज्वाला
सोता शावक जाग उठा था , तब नींद से मतवाला
बांध कफ़न सर से दीवाने , करने को बलिदान चले
अट्टहास करती रणचंडी , देख देख कर बधशाला 


कुछ दिन तक तो दुनिया से , इसे अलग था कर डाला
अरे ! जहाँ "चित्तू पांडे" का ,रहा खूब शासन आला
कौन भूल जायेगा ! बोलो, बलिया का बलिदान अमर
बम बरसाकर अंग्रेजों ने , जहाँ बनाई बधशाला .