Thursday, July 19, 2012

सागरमाथा के देश में

अपनी व्यावसायिक  प्रतिबद्धता और पैर  में शनिचर होने के कारण ,मुझे ना जाने कितने घाटों और तटों  का पानी पीना पड़ता है . इस  यायावरी ने मुझे  भारतवर्ष के उत्तर में कश्मीर की हिम आच्छादित वादियों   से लेकर डेक्कन  में केरल के मनोरम तटों तक और पूर्वोत्तर के  अगम्य , दुर्गम स्थानों से लेकर पश्चिम में द्वारका तट तक  घुमाया है . कार्य के सिलसिले में देश -विदेश की यात्राये मेरे लिए अपरिहार्य सी हो गई है . हर महीने कही न कही , किसी दुसरे  स्थान का दाना पानी मेरे नाम लिखा होता है.   महापंडित सांकृत्यायन की   "अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा "बचपन से लेकर अब तक स्मृतियों में कैद है..

इतनी  भूमिका बाँधने के पीछे मेरा मंतव्य बस ये बताना था की बंदा घूमता तो रहता है लेकिन उसने कभी भी .अपने अनुभवों को कलमबद्ध करने की हिम्मत या जहमत नहीं उठाई .आज सुबह मैंने फेसबुक पर एक चित्र लगाया तो श्री मनोज कुमार जी, शिखा वार्ष्णेय जी और वंदना दुबे अवस्थी जी ने आग्रह किया कि   चित्र के बारे में विस्तार से बताने के लिए एक ठो पोस्ट डाला जाय. हमने सोचा, मौका तो  है और दस्तूर  भी  बन जायेगा बस एक बार कलम चले तो .



गर्मी का मौसम और पारा अर्धशतक लगाता हुआ , कुछ लोग कहते है की उत्तर भारत में चढ़ता  पारा वहाँ के लोगों की कार्यक्षमता पर प्रभाव डालता है , मै तो सहमत नहीं इनसे . खैर इस भीषण गर्मी से कुछ दिनों की निजात पाने के लिए हमने अपनी वामांगी से सलाह की तो उनकी इच्छा अनुसार पर्वतराज हिमालय की शरण में  जाने का निर्णय लिया गया.और तय पाया गया की हम नेपाल स्थित सागरमाथा (एवेरेस्ट ) की ऊँचाई भी देखेंगे
 कानपुर से सड़क मार्ग द्वारा  लखनऊ  एयरपोर्ट  पहुचे जहाँ से नेपाल की विमानन कंपनी बुद्ध एयर लाईन्स से हम लोगों को काठमांडू तक की यात्रा करनी थी . सुरक्षा जाँच के बाद बोर्डिंग के लिए जब एयर क्राफ्ट के पास पहुचे तो चालीस सीटर विमान देखकर श्रीमती जी के माथे पर चिंता की लकीरे दिखी.जो नेपाली विमान परिचारिका के स्वागत मुस्कान के साथ उड़न छू .हो गई.. लगभग ७५ मिनट की उडान के बाद हम काठमांडू के त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई पत्तन पर सुरक्षित उतर गए ,  तमाम सुरक्षा खामियों और ढांचा  गत कमियों के उपरांत भी , पर्यटकों के चेहरे पर शिकायत के भाव नहीं दिख रहे थे.. हमारे सहयोगी ने अपने चालक को  भेजा था  हमको हमारे होटल पहुचाने के लिए जो कि  काठमांडू के सबसे चहल पहल वाले इलाके दरबार मार्ग पर स्थित था . काठमांडू उपत्यका में रिमझिम फुहार हमारे दग्ध तन  को शीतलता की अनुभूति दे रही थी . कुछ मिनटों के आराम के बाद  हम एक रेस्त्रा में पहुचे जहाँ  मेरे मित्र और सहयोगी हमारा इंतजार कर रहे थे .. स्वादिष्ट भोजन के साथ नेपाल की राजनैतिक   और आर्थिक स्थिति पर भी सबने अपने अधकचरे ज्ञान को बघारा..  जाने क्यूँ  हमारे पुरखे कह गए है की खाते समय नहीं बोलना चहिये जबकि मुझे लगता है कि लोग खाने की मेज पर ज्यादा मुखर होते है.

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  • दुसरे दिन तडके ही हम भगवान पशुपतिनाथ के दर्शन के लिए गए जो की ज्योतिर्लिंगों में से एक है . भक्तों  की भारी भीड़ में भगवान शिव के प्रति अगाध श्रद्धा का संचार देखते ही बन रहा था. पंक्ति में खड़ा होते हुए कैमरा और अन्य समान वाहन में ही छोड़ना पड़ा था. ये मंदिर नेपाल राजतन्त्र के श्रद्धा का केंद्र रहा है और यहाँ के मुख्य पुजारी दक्षिण भारतीय ब्रह्मण ही होते है ,लिच्छवी नरेश द्वारा बनवाया हुआ ये मंदिर पगोडा स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है .. दर्शन और नाश्ता करने के उपरांत हमें काठमांडू की सैर करने की इच्छा से निकल पड़े . साफ सुथरी पहाड़ी सडक, अनुशासित ट्रैफिक हमको पैदल चलने में सहायक थे . दरबार मार्ग जहा मेरा होटल था वो राजपथ है नेपाल का . सड़क के एक छोर पर शाह राजवंश  का राजमहल "नारायणहिति" अपने भाग्य पर इतराता और दुर्भाग्य पर आंसू बहाता खड़ा है . कुछ साल पहले तक ये नेपाल की  सत्ता और जनता की  आस्था का केंद्र था .लेकिन उस अभूतपूर्व   नरसंहार के बाद जिसमे पुरे राजपरिवार की हत्या कर दी गई थी वो अवाक् सा रह गया था. वर्तमान में सरकार ने इसके एक हिस्से को संग्रहालय और एक हिस्से को विदेश मंत्रालय के  पासपोर्ट कार्यालय में परिवर्तित कर दिया  
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  •  थोड़ी ही दूर पर एक बड़ा सा तालाब दिखा जिसके बीचो बीच में एक मंदिर . इस तालाब को रानी पोखरी के नाम से जानते है जो  राजरानियों की जलक्रीडा के लिए बनाया गया था . मजे की बात की अभी भी उसका जल साफ सुथरा दिख रहा था जबकि वो शायद अब प्रयोग में नहीं था . थोडा आगे बढे तो एक गगन चुम्बी टॉवर दिखा .काठमांडू की हृदयस्थली में स्थित ये बुर्ज "सुनधारा के नाम से जाना जाता हैऔर ये आधुनिक टीवी टावरों की तरह दिखता है . सबसे ऊपर जाने के लिए बुर्ज के अन्दर से सीढिया है . सबसे उपरी मंजिल को यहाँ के राजा , प्रजा को संबोधित करने के लिए प्रयोग करते थे . प्रचलित ये भी है की यहाँ से एक जल  धारा का उदगम था जिसका रंग सोने जैसा था इसलिए उसका नाम पड़ा सुन (स्वर्ण) धारा. वहा से चंद कदम की दुरी पर था नेपाल का सबसे बड़ा स्टेडियम" दशरथ रंगशाला " जो की  दक्षिण एशियाई खेलों  का भी मेजबान रह चुका है , अब तक हम थक चुके थे और क्षुधा भी सताने लगी थी, फिर हमने आज के अपने भ्रमण  को विश्राम दिया और लौट आये अपने होटल , जहा हमको सागरमाथा (एवेरेस्ट) जाने के लिए अगले दिन का प्लान बनाना था
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  • . पुनश्च ---नेपाल की राजनैतिक  , सामाजिक और आर्थिक ताने बाने पर लिखना तो चाहता था लेकिन पोस्ट की लम्बाई बढ़ते देख और अपने नौसिखियेपन के संकोच के तहत मैंने इसे अगली पोस्ट तक मुल्तवी कर दिया .
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Thursday, July 12, 2012

विश्व छला क्यों जाता ?

तारो से बाते करने
हँस तुहिन- बिंदु है आते
पर क्यों प्रभात बेला में
तारे नभ में छिप जाते ?

शशि  अपनी उज्जवलता से
जग उज्ज्वल करने आता
पर काले बादल का दल
क्यों उसको ढकने जाता ?

हँस इन्द्रधनुष अम्बर में
छवि राशि लुटाने आता
पर अपनी सुन्दरता खो
क्यों रो -रोकर मिट जाता

खिल उठते सुमन -सुमन जब
शोभा मय होता उपवन
पर तोड़ लिए जाते क्यों
खिल कर खोते क्यों जीवन ?

दीपक को प्यार जताने
प्रेमी पतंग है जाता
पर हँसते  हँसते उसको
क्यों अपने प्राण चढ़ाता ?

सहृदय जीव  ही आखिर क्यों
तन मन की बलि चढ़ाता
विश्वास शिराओं में गर बहता
फिर  विश्व छला क्यों  जाता ?











Tuesday, July 3, 2012

कौन सा तत्व ?

सुनो जी ! स्वप्न लोक में आज
दिखा मुझे सरोवर एक महान
देख था गगन रहा निज रूप
उसी में कर दर्पण का भान

नील थी स्वच्छ वारि की राशि
उदित था उस पार मिथुन मराल
पंख उन दोनों के स्वर्णाभ
कान्ति की किरणे रहे उछाल

यथा पावस -जलदो से मुक्त
नीला नभ -मंडल होवे शांत
अचानक प्रकटित हो कर साथ
दिखे युग शरद -शर्वरी -कान्त

हंस था खोज रहा आहार
तीव्रतम क्षुधा जनित था त्रास
किन्तु सुँदर सर मौक्तिक हीन
निरर्थक था सारा आयास

इसी क्रम में कुछ बीता काल
कंठ  गत हुए हंस के प्राण
अर्ध मृत प्रियतम दशा निहार
हंसिनी रोई प्रेम निधान

विलग वह विन्दु विन्दु नयनाम्बु
पतित होता था एक समान
रश्मि-रवि  की मिल कर तत्काल
बनाती उसको आभावान

हंस ने खोले मुकुलित नेत्र
दिखे उसको आंसू छविमान
खेलने लगा चंचु-पुट खोल
भ्रान्ति से उसको मुक्ता मान

हुआ नव जीवन का संचार
हुई सब विह्वलता भी दूर
निहित अलि ! कहो कौन सा तत्व ?
प्रेम की बूंदों में भरपूर