Thursday, January 6, 2011

कल जीवन से फिर मिला

कल वो सामने बैठी थी
कुछ संकोच ओढे  हुए
सजीव प्रतिमा, झुकी आंखे
पलकें अंजन रेखा से मिलती  थी



मेरे मन के निस्सीम गगन में
निर्जनता घर कर आयी थी
आकुल मन अब  विचलित है
मुरली बजने लगी जैसे निर्जन में


 
खुले चक्षु से यौवनमद का रस बरसे
अपलक मै निहार रहा श्रीमुख को
सद्य स्नाता चंचला जैसे
निकल आयी हो चन्द्र किरण  से



उसने जो दृष्टी उठाई तनिक सी
मिले नयन उर्ध्वाधर से
अधखुले अधरों में स्पंदन
छिड़ती मधुप तान खनक सी
 


ना जाने ले क्या अभिलाष
मेरे जीवन की नवल डाल
बौराए नव  तरुण रसाल
नव जीवन की फिर दिखी आस



सुखद भविष्य के सपनो में
निशा की घन पलकों में झांक रहा
बिभावरी बीती, छलक  रही उषा
जगी लालसा ह्रदय के हर कोने में .