कल वो सामने बैठी थी
कुछ संकोच ओढे हुए
सजीव प्रतिमा, झुकी आंखे
पलकें अंजन रेखा से मिलती थी
मेरे मन के निस्सीम गगन में
निर्जनता घर कर आयी थी
आकुल मन अब विचलित है
मुरली बजने लगी जैसे निर्जन में
खुले चक्षु से यौवनमद का रस बरसे
अपलक मै निहार रहा श्रीमुख को
सद्य स्नाता चंचला जैसे
निकल आयी हो चन्द्र किरण से
उसने जो दृष्टी उठाई तनिक सी
मिले नयन उर्ध्वाधर से
अधखुले अधरों में स्पंदन
छिड़ती मधुप तान खनक सी
ना जाने ले क्या अभिलाष
मेरे जीवन की नवल डाल
बौराए नव तरुण रसाल
नव जीवन की फिर दिखी आस
सुखद भविष्य के सपनो में
निशा की घन पलकों में झांक रहा
बिभावरी बीती, छलक रही उषा
जगी लालसा ह्रदय के हर कोने में .
कुछ संकोच ओढे हुए
सजीव प्रतिमा, झुकी आंखे
पलकें अंजन रेखा से मिलती थी
मेरे मन के निस्सीम गगन में
निर्जनता घर कर आयी थी
आकुल मन अब विचलित है
मुरली बजने लगी जैसे निर्जन में
खुले चक्षु से यौवनमद का रस बरसे
अपलक मै निहार रहा श्रीमुख को
सद्य स्नाता चंचला जैसे
निकल आयी हो चन्द्र किरण से
उसने जो दृष्टी उठाई तनिक सी
मिले नयन उर्ध्वाधर से
अधखुले अधरों में स्पंदन
छिड़ती मधुप तान खनक सी
ना जाने ले क्या अभिलाष
मेरे जीवन की नवल डाल
बौराए नव तरुण रसाल
नव जीवन की फिर दिखी आस
सुखद भविष्य के सपनो में
निशा की घन पलकों में झांक रहा
बिभावरी बीती, छलक रही उषा
जगी लालसा ह्रदय के हर कोने में .
खूबसूरत अहसास .
ReplyDeleteनव जीवन में आशा का संचार करती पंक्तियाँ .
सुन्दर कविता है .
नए साल में नव जीवन की समस्त शुभकामनाये..
साहित्य की सुन्दरता और सुन्दरता का साहित्य।
ReplyDeletebahut hi sunder rachna
ReplyDeletenav varsh ki hardik badhayi
इस बेहतरीन कविता ने सुन्दरता को साक्षात उपस्थित कर दिया है हर पंक्ति में।
ReplyDeleteआभार।
ना जाने ले क्या अभिलाष
ReplyDeleteमेरे जीवन की नवल डाल
बौराए नव तरुण रसाल
नव जीवन की फिर दिखी आस
ऐसे ही जीवन क़ा उल्लास बना रहे
खुले चक्षु से यौवनमद का रस बरसे
ReplyDeleteअपलक मै निहार रहा श्रीमुख को
सद्य स्नाता चंचला जैसे
निकल आयी हो चन्द्र किरण से
bahut hi khoobsurat ehsaas
खूबसूरत शब्द रचना ...।
ReplyDeleteitni sundar rachna ..ek engineer ke dwara...agar aapko bhi RANCHO mil gaya hota to shayad aap full time kavi hote..:)
ReplyDeleteसुंदर अहसास की जीवंत अभिव्यक्ति। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteफ़ुरसत में आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री के साथ
aashish ji
ReplyDeleteati sundar rachna, bahut hi khubsurati ke saath gudh shabdo ka chayan rachna me char chand laga raha hai. har ek panktiya badi gahrai se likhi hai aapne.
hardik badhai
poonam
बहुत ही सुन्दर शब्दों....बेहतरीन भाव....खूबसूरत कविता...
ReplyDeleteखुले चक्षु से यौवनमद का रस बरसे
ReplyDeleteअपलक मै निहार रहा श्रीमुख को
सद्य स्नाता चंचला जैसे
निकल आयी हो चन्द्र किरण से
kitna pyar baras raha in shabdo me....
follow karne se rok nahi paya...
ab barabar aaunga...:)
यह कविता बहुत ही प्यारी लगी।
ReplyDeleteशब्द और भाव, दोनों ही अति सुंदर।
बहुत खूब ...
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें !
आशीष जी, बहुत खूब लिखते हैं आप। जीवन से मिलना किसे नहीं भाता।
ReplyDelete---------
कादेरी भूत और उसका परिवार।
मासिक धर्म और उससे जुड़ी अवधारणाएं।
अलंकरणों से सजी लावण्यमयी कविता
ReplyDeleteबहुत खूब. बेहतरीन शब्दों और भावों से सजाया है कविता को.
ReplyDeleteसुखद भविष्य के सपनो में
ReplyDeleteनिशा की घन पलकों में झांक रहा
बिभावरी बीती, छलक रही उषा
जगी लालसा ह्रदय के हर कोने में .
कविता यूं लगी मनो एक मुलाक़ात जिंदगी के साथ. ....!
नए साल में नव जीवन की समस्त शुभकामनाये
ReplyDeleteखूबसूरत पलों को शब्दों में बंधने का प्रयास ...एक बहुत सुन्दर एहसास से लिखी रचना ..मन को सुकून देती हुई ...विगत की जिंदगी को साहसपूर्ण आगे बढाने का और सुखमय बनाने का स्वप्न ...शुभकामनाएं ...
ReplyDeleteनव जीवन में नवल आस नव वर्ष में हो साक्षात्.
ReplyDeleteआशीष जी,
ReplyDeleteसुन्दर शब्द-चित्र, अच्छा लिखते हैं आप !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
आशीष भाई, आज दोबारा कविता पढी, मजा आ गया। एक बार फिर से बधाई स्वीकारें।
ReplyDelete---------
बोलने वाले पत्थर।
सांपों को दुध पिलाना पुण्य का काम है?
बहुत अच्छी प्रस्तुति....बधाई!
ReplyDeleteप्रेममयी.. सुंदर आशावादी अहसास..... बेहतरीन
ReplyDeleteआपकी कविता रचनात्मकता का अदभुत नमूना है ..बहुत सुंदर
ReplyDeleteखुले चक्षु से यौवनमद का रस बरसे
ReplyDeleteअपलक मै निहार रहा श्रीमुख को
सद्य स्नाता चंचला जैसे
निकल आयी हो चन्द्र किरण से ...
कविता पढ़ कर आनंद आ गया ...आशीष जी .. सरिता बहा दी है आपने सदभावों की ... सुंदर शब्दसंरचना ...
वाह आशीष जी वाह,
ReplyDeleteसौन्दर्यबोध कराती खूबसूरत रचना.
बहुत सुन्दर कविता.
ReplyDeletenice poem
ReplyDeleteकल वो सामने बैठी थी
ReplyDeleteकुछ संकोच ओढे हुए
सजीव प्रतिमा, झुकी आंखे
पलकें अंजन रेखा से मिलती थी
आशीष जी पलकें क्या यहाँ तो पूरी तस्वीर ही रेखा से मिलती है .....
अरे... उमराव जान वाली ......
कोमल भावुक मोहक प्रेमोद्गार...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना...
प्रशंसनीय
ReplyDeleteबसंत का शंखनाद हो गया समझो !
ReplyDeleteदेरी से आने के लिए क्षमाप्रार्थी हूं.खूबसूरत अहसासों को समेटती एक भावपूर्ण प्रस्तुति. आभार.
ReplyDeleteआप को वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं!
सादर,
डोरोथी.
सौम्य शिष्ट श्रृंगार की मिसाल है यह रचना...
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर...
भाव और अभिव्यक्ति दोनों ही manmohak...
क्या बात है भाई!
ReplyDeleteपलकें अंजन रेखा से मिलती थी
टाइम वसूल लाइन!
बहुत खूबसूरत रचना
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना
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