फिर
विश्वकर्मा पूजा के लिए निर्धारित दिन आ पहुंचा , कहने को तो श्री
विश्वकर्मा को देवलोक का एकमात्र अभियंता का पद प्राप्त है लेकिन तीन साल
पहले उनकी पूजा अर्चना के बाद ( व्यावसायिक कर्म में शामिल है ) इस ब्लॉग
को बनाने की प्रेरणा मिली . शुरुवाती हिचकिचाहट और सीमित ज्ञान का डर , कुछ
मित्रों के मार्गदर्शन और सतत उत्साहवर्धन से वाष्पित हो गया और और फिर
कालांतर में संघनित होकर बूँद बूँद बरसने लगा निज मन सुख खातिर।
कुछ शब्दों को जोड़कर लिखने की कला में (तुकबंदी भी कह सकते है ) कुछ
पंक्तियाँ जोड़ जाड के लिखकर ऐसी अद्भुत अनुभूति होती थी जैसे ब्रम्हा को
सृष्टि की सबसे अद्भुत कृति बनाकर होती होगी . कविता कर्म का ककहरा भी
नहीं जानता था (वैसे अभी भी नहीं जानता हूँ ) नाही कविता के व्याकरण से
भिज्ञ था . बहुत सारे विद्वान मित्रो को पढना , उनको रचना धर्मिता से कुछ
सिखने की कोशिश करना मुझे सबसे प्रिय कार्य लगता है. ,
ब्लॉग लेखन साहित्य का अंग है या नही ये मेरे सोचने का विषय नही (अपने आप
को सुयोग्य नही पाता हूँ ) मै अपने बहुत सारे साथी ब्लोगरों को पढने की
भरसक कोशिश करता हूँ . विभिन्न विधाओ के सुरुचिपूर्ण आलेख और कविताओं का
रसपान का मौका यहाँ सुगमता पूर्वक उपलब्ध है . कुछ नाम भी लेने का मन है
जिनको मै पढ़ पाता हूँ ( काश सारे ब्लॉग पढ़ पाता ) . प्रवीण पाण्डेय जी की
लेखनी से निकले ललित निबन्ध मुझे बहुत आकर्षित करते है और शायद पूरे ब्लॉग
जगत को भी . फुरसतिया महाराज श्रीयुत अनूप शुक्ल जी का व्यंग लेखन
गुदगुदाता है . शिखा वार्ष्णेय जी की घुमक्कड़ी गाथा और संस्मरण कथा बांध के
रखती है तथा सुश्री अमृता तन्मय , अनुपमा पाठक , अंजना दी , की कवितायेँ
रस सिक्त कर जाती है .अनुपमा दी (त्रिपाठी ) और संगीता दी (स्वरुप) को पढना
आह्लादित करता है . विभिन्न विधाओं में पारंगत और बहुत सारे मित्र
ब्लोग्गर है जिनको पढने की युगत में रहता हूँ
.
इस अद्भुत विधा से मुझे कुछ मिला हो या नही , मैंने मानवी भावनाओ के अधीन
प्रेम सिक्त कुछ आदरणीय और प्रिय रिश्तो को भी जिया है, कई बार कठिन
परिस्थितियों में मित्रो का संबल महसूस किया . मुझे अपनी कविता ( अकविता
भी हो सकती है ) को आप सभी गुनीजनो के सामने प्रस्तुत कर जो हर्षानुभूति
होती है और आपकी शब्द टिपण्णी से जो उर्जा मिलती है वो किसी मसिजीवी के
लिए वरदान से कम नही है...
मेरा ब्लॉग लिखने कि आवृति कछुए कि चाल जैसी है और कई बार जामवंत कि जरुरत
महसूस होती है (अब ये मत कहियेगा कि मै अपने आप को हनुमान बोल रहा हूँ
). कई बार मित्रों ने याद दिलाया है कि महीनो से मैंने कुछ पोस्ट नही किया
और मै उनको बहादुर मानव / मानवी मानता हूँ कि मुझे झेलने के लिए (आ बैल
मुझे मार टाइप भी सुनने को मिला है :)) कटिबद्ध है
.
मै अपने प्रिय मित्रो को आश्वस्त करना चाहूँगा की उन्हें ,मेरी उटपटांग
शब्द रचना को झेलने से छुटकारा नही मिलने वाला है . और अभी डटे रहने का
इरादा है . भले ही आवृति कम हो . अंत में बस इतना कहकर समाप्त करना चाहूँगा
कि ब्लॉग्गिंग नही होती तो मेरे जैसा अल्पज्ञानी अपनी भावनाओं को शायद
शब्द नही दे पाता .सभी मित्रो का धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ और आभार प्रकट
करता हूँ .
.