Monday, September 16, 2013

आकुल अंतर के तीन वर्ष

फिर विश्वकर्मा पूजा के लिए निर्धारित दिन आ पहुंचा , कहने को तो श्री विश्वकर्मा को देवलोक का एकमात्र अभियंता का पद प्राप्त है लेकिन तीन साल पहले उनकी पूजा अर्चना के बाद ( व्यावसायिक कर्म में शामिल है ) इस ब्लॉग को बनाने की प्रेरणा मिली . शुरुवाती हिचकिचाहट और सीमित ज्ञान का डर , कुछ मित्रों के मार्गदर्शन और सतत उत्साहवर्धन से वाष्पित हो गया और और फिर कालांतर में संघनित होकर बूँद बूँद बरसने लगा निज मन सुख खातिर।
 कुछ शब्दों को जोड़कर लिखने की कला में (तुकबंदी भी कह सकते है ) कुछ पंक्तियाँ जोड़ जाड के लिखकर ऐसी अद्भुत अनुभूति होती थी जैसे ब्रम्हा को सृष्टि की सबसे अद्भुत कृति बनाकर होती होगी . कविता कर्म का ककहरा भी नहीं जानता था (वैसे अभी भी नहीं जानता हूँ ) नाही कविता के व्याकरण से भिज्ञ था . बहुत सारे विद्वान मित्रो को पढना , उनको रचना धर्मिता से कुछ सिखने की कोशिश करना मुझे सबसे प्रिय कार्य लगता है. ,
 ब्लॉग लेखन साहित्य का अंग है या नही ये मेरे सोचने का विषय नही (अपने आप को सुयोग्य नही पाता हूँ ) मै अपने बहुत सारे साथी ब्लोगरों को पढने की भरसक कोशिश करता हूँ . विभिन्न विधाओ के सुरुचिपूर्ण आलेख और कविताओं का रसपान का मौका यहाँ सुगमता पूर्वक उपलब्ध है . कुछ नाम भी लेने का मन है जिनको मै पढ़ पाता हूँ ( काश सारे ब्लॉग पढ़ पाता ) . प्रवीण पाण्डेय जी की लेखनी से निकले ललित निबन्ध मुझे बहुत आकर्षित करते है और शायद पूरे ब्लॉग जगत को भी . फुरसतिया महाराज श्रीयुत अनूप शुक्ल जी का व्यंग लेखन गुदगुदाता है . शिखा वार्ष्णेय जी की घुमक्कड़ी गाथा और संस्मरण कथा बांध के रखती है तथा सुश्री अमृता तन्मय , अनुपमा पाठक , अंजना दी , की कवितायेँ रस सिक्त कर जाती है .अनुपमा दी (त्रिपाठी ) और संगीता दी (स्वरुप) को पढना आह्लादित करता है . विभिन्न विधाओं में पारंगत और बहुत सारे मित्र ब्लोग्गर है जिनको पढने की युगत में रहता हूँ .
 इस अद्भुत विधा से मुझे कुछ मिला हो या नही , मैंने मानवी भावनाओ के अधीन प्रेम सिक्त कुछ आदरणीय और प्रिय रिश्तो को भी जिया है, कई बार कठिन परिस्थितियों में मित्रो का संबल महसूस किया . मुझे अपनी कविता ( अकविता भी हो सकती है ) को आप सभी गुनीजनो के सामने प्रस्तुत कर जो हर्षानुभूति होती है और आपकी शब्द टिपण्णी से जो उर्जा मिलती है वो किसी मसिजीवी के लिए वरदान से कम नही है...
 मेरा ब्लॉग लिखने कि आवृति कछुए कि चाल जैसी है और कई बार जामवंत कि जरुरत महसूस होती है (अब ये मत कहियेगा कि मै अपने आप को हनुमान बोल रहा हूँ ). कई बार मित्रों ने याद दिलाया है कि महीनो से मैंने कुछ पोस्ट नही किया और मै उनको बहादुर मानव / मानवी मानता हूँ कि मुझे झेलने के लिए (आ बैल मुझे मार टाइप भी सुनने को मिला है :)) कटिबद्ध है 
मै अपने प्रिय मित्रो को आश्वस्त करना चाहूँगा की उन्हें ,मेरी उटपटांग शब्द रचना को झेलने से छुटकारा नही मिलने वाला है . और अभी डटे रहने का इरादा है . भले ही आवृति कम हो . अंत में बस इतना कहकर समाप्त करना चाहूँगा कि ब्लॉग्गिंग नही होती तो मेरे जैसा अल्पज्ञानी अपनी भावनाओं को शायद शब्द नही दे पाता .सभी मित्रो का धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ और आभार प्रकट करता हूँ . .

17 comments:

  1. भावों की अभिव्यक्ति का यह मंच निरंतर फलता फूलता रहे...!
    तीन वर्ष की सतत यात्रा हेतु बधाई और भविष्य के लिये अनंत शुभकामनाएं!

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  2. आप डटें रहिये, हमें आनन्द आ रहा है, ढेरों शुभकामनायें।

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  3. डटे रहिये !
    बहुत शुभकामनायें !

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  4. हिंदी साहित्य की यात्रा में अपने साहित्यिक गौरव को सहेजने और निखारने का अभूतपूर्व कार्य कर रहे हैं आप आशीष भाई। ये यात्रा जारी रहे !कलम निरंतर चलती रहे व ब्लॉग पर हमें जल्दी जल्दी कवितायेँ पढ़ने मिलाती रहें। …!!अनेक शुभकामनायें एवं आशीष।

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  5. आपका लिखा हुआ काफी दिनों से पढ़ रही हूँ ... पहले कुछ पत्र पढ़े ...जिसमे वियोगी नायक की छवि दिखी जो अपनी प्रेमिका से अत्यंत प्रेम करता है और समूची सृष्टि में केवल वही दिखाई देती है उसे ....

    फिर बधशाला पढी ..जो अभी तक जारी है जिसका मैं अत्यंत उत्सुकता से इंतज़ार करती हूँ ... उसमे इतिहास की कुछ रोचक घटनाएँ हैं .... इसमे मुझे एक बात और दिखी ... वो ये कि जिस घटना के बारे में हमने पहले नहीं पढ़ा .... वो विवश कर देती है कि हम उस विषय से जुडी पुस्तक को पढ़कर उसके बारे में विस्तार से जानें ....

    दोहे , कवितायेँ ,संस्मरण सभी में अद्भुत आकर्षण है ,लेखन संतुलित और मर्यादित है , स्तरीय है .... भाषा ज्ञान भी समृद्ध है .... जो मुझे शब्द कोष उठाने पर विवश कर देता है ........:)
    बधाई आपको इतना अच्छा लिखने के लिए .. .. और शुभ कामनाएँ भी .. :)
    ब्लॉग के तीन साल पूरे होने के लिए भी बधाई स्वीकार करें ...ये यूँ ही फलता फूलता रहे .... :)

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  6. तीन वर्ष से निरंतर अपने ब्लॉग पर लिखते रहे हो .... सभी रचनाएँ चाहे वो प्रकृति से संबन्धित हों या फिर वधशाला .... उत्कृष्ट की श्रेणी में आती हैं ... अनवरत आपका प्रयास चलता रहे यही शुभकामना है ।

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  7. यूँ ही चलती रहे ये यात्रा.... ढेरों शुभकामनायें

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  8. लेखनी की गति द्रुत न सही गुण अवश्य विद्द्यमान है .....आपकी यात्रा जरी रहे .
    विश्वकर्मा पूजा की ढेरों शुभकामनाये

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  9. तीन वर्ष.................
    वाह!!!
    बहुत बहुत बधाई.....................

    आपके लेखन से बहुत कुछ सीखा है..
    आभार!!
    ढेर सारी शुभकामनाएं.

    अनु

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  10. बहुत बहुत बधाई.आपकी यात्रा ज।री रहे .
    विश्वकर्मा पूजा की ढेरों शुभकामनाये.......

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  11. उत्कृष्ट कोटि के साहित्य को अकविता कहना अन्याय है ...
    आप ऐसे ही लिखते रहें ... हम पढते रहें ... काम चलता रहे ...

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  12. ब्लॉग की यही विशेषता है कि उत्कृष्ट लेखन सहज ही मिल जाता है. आपकी वधशाला का इंतज़ार सभी को रहता है.
    जारी रखिये ये यात्रा, बेशक कछुए की चाल से ही सही :)
    बहुत बहुत बधाई और समस्त शुभकामनाएं.
    जल्दी ही वधशाला पुस्तक रूप में उपलब्ध हो.

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  13. बहुत बहुत बधाई आशीष जी। तीन सालों से आप ब्लॉग लिख रहे हैं यही बहुत बड़ी बात है फिर चाल कैसी भी हो क्या फर्क पड़ता है। उत्कृष्ट भाषा एवं शब्द चयन आपके लेखन का एक अभिन्न अंग है।इसे कभी नष्ट न होने दीजियेगा।

    जहाँ तक कविता या अकविता का प्रश्न है ,मैं इतना ही कहना चाहूंगी कि ब्लॉग एक डायरी की तरह है जहाँ हम अपने दिल की बात भिन्न भिन्न विधाओं में व्यक्त करते हैं। अभिव्यक्ति हमेशा मीटर में बंधी रहना पसंद नहीं करती सो शब्दों या मात्राओं का हिसाब कभी कभार डगमगा जाता है पर इससे हमारी भावनाओं की सच्चाई पे कोई असर नहीं पड़ता। लिखते रहिये , साँझा करते रहिये। उत्कृष्ट रचनायें अपनी जगह खुद ब खुद बना लेती हैं .….

    साभार
    अपर्णा

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  14. ढेरों बधाइयाँ ...कुशल अभियंता की अभियांत्रिकी शब्दों में भी स्पष्ट दिखाई पड़ती है...सफर जारी रहे और हम यहाँ पधारते रहें... शुभकामनाएँ!!!

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  15. अद्भुत भावों का सम्प्रेष्ण किया है आपने...इस आकुल अंतर ने हमारा आत्मबोध भी बढ़ा दिया है ... सर्वोत्तम की त्वरा से खोज.. वैसे आपके पाठकों को भी आपसे रससिक्त होने का अधिकार है ... सतत..

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