कमनीय -लता जो चढ़ी जा रही,
मन मुदित हो रहा तरुवर है
अमृत रस अब बरस रहा,
पुलकित हो रहा सरवर है
चारू -चन्द्र की चितवन,
चित्त को चंचल कर देती
धवल चादिनी राते,
सागर में कोलाहल भर देती
मन मुदित हो रहा तरुवर है
अमृत रस अब बरस रहा,
पुलकित हो रहा सरवर है
चारू -चन्द्र की चितवन,
चित्त को चंचल कर देती
धवल चादिनी राते,
सागर में कोलाहल भर देती
दिग दिगंत आमोद भरा
मकरंद हुई हिम कणिका
सागर उन्मत्त कलोल भरा
फेनिल फन चमके मणि सा