Friday, February 10, 2012

मधु -उत्सव

कमनीय  -लता जो चढ़ी जा रही, 
मन मुदित हो रहा तरुवर है 
अमृत रस अब बरस रहा, 
पुलकित हो रहा सरवर है 

चारू -चन्द्र की चितवन, 
चित्त को चंचल  कर देती  
धवल चादिनी राते, 
सागर में कोलाहल  भर देती

दिग दिगंत  आमोद भरा 
मकरंद हुई हिम कणिका
सागर उन्मत्त कलोल भरा 
फेनिल फन चमके मणि सा 

मधुमास पल्लवित धरती पर , 
पीताम्बर तन पर डाले
किसलय कुसुम सुगन्धित मदिर 
अनंग प्रफुल्लित डाले गलबाहें 

धरनी के राग  वितान तने
आकांक्षा-तृप्ति की संगति को 
अभिनव क्रीडांगन है सजा धजा 
कौतुक-चेतना देता काम-रति को