कमनीय -लता जो चढ़ी जा रही,
मन मुदित हो रहा तरुवर है
अमृत रस अब बरस रहा,
पुलकित हो रहा सरवर है
चारू -चन्द्र की चितवन,
चित्त को चंचल कर देती
धवल चादिनी राते,
सागर में कोलाहल भर देती
मन मुदित हो रहा तरुवर है
अमृत रस अब बरस रहा,
पुलकित हो रहा सरवर है
चारू -चन्द्र की चितवन,
चित्त को चंचल कर देती
धवल चादिनी राते,
सागर में कोलाहल भर देती
दिग दिगंत आमोद भरा
मकरंद हुई हिम कणिका
सागर उन्मत्त कलोल भरा
फेनिल फन चमके मणि सा
Eknaad hai is rachana me!
ReplyDeleteबसंत तो ठीक है..पर मैं तो शब्दकोष लेकर बैठी हूँ.यूँ पढ़ना बेहद अच्छा लग रहा है.सुन्दर शब्द,प्रवाह
ReplyDeleteइस उत्सव का मौसम भी है मौका भी ..मनाइए ..बहुत सुन्दर भाव और शब्द संयोजन .उत्कृष्ट रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर शाब्दिक चयन..... उम्दा रचना
ReplyDeleteरस से सराबोर कर गया यह प्रवाह..
ReplyDeleteवाह!!!बहुत ही सुंदर शाब्दिक चयन से सजी एक बेहद खूबसूरत रचना...आभार
ReplyDeleteसुंदर शब्दों के संयोजन से रची रचना अच्छी लगी आभार .....
ReplyDeleteआपकी किसी पोस्ट की चर्चा है नयी पुरानी हलचल पर कल शनिवार ११-२-२०१२ को। कृपया पधारें और अपने अनमोल विचार ज़रूर दें।
ReplyDeleteइस कविता की व्याख्या नहीं की जा सकती। कोई टीका नहीं लिखी जा सकती। सिर्फ महसूस की जा सकती है। इस कविता को मस्तिस्क से न पढ़कर दिल के स्तर पर पढ़ना जरूरी है – तभी यह कविता खुलेगी।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर शब्द संयोजन ....
ReplyDeleteबेहतरीन रचना.....
मधुमास पल्लवित धरती पर ,
ReplyDeleteपीताम्बर तन पर डाले
किसलय कुसुम सुगन्धित मदिर
अनंग प्रफुल्लित डाले गलबाहें ... गुलमर्ग , खिलनमर्ग सा बसंत
aapki kavita hamesha k tarah pure hindi, pure feelings ka great combination hoti hai .. jise dil dimag dono ko sath rakh kar hi padne par completw anand milta hai
ReplyDeleteमधुमासी मादकता से बौराया मन..सुगन्धित, मदिर.. अत्यंत सुन्दर लेखन..
ReplyDeleteमनोज कुमार जी ने सही तो कह दिया …………अब कहने को क्या बचा………………दिल मे उतर गयी।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत...
ReplyDeleteउत्तम...
बसंत शब्दों के झुरमुट से झांकने लगा है।
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता।
मधुमास पल्लवित धरती पर ,
ReplyDeleteपीताम्बर तन पर डाले
किसलय कुसुम सुगन्धित मदिर
अनंग प्रफुल्लित डाले गलबाहें ....
Pravaahmay ... sundar rachna ... prakriti aur prem jab mil jaate hain to aise hi kaavy ka srijan hota hai .... uttam bhaav ....
दिग दिगंत आमोद भरा
ReplyDeleteमकरंद हुई हिम कणिका
सागर उन्मत्त कलोल भरा
फेनिल फन चमके मणि सा
बहुत सुन्दर, बासन्ती गीत है आशीष जी.
aashish ji
ReplyDeletehamesha ki tarah hi shabdon ka sundar samanjasy v ek layatmakta si jhalakti hai aapki rachna me .man aanadit ho gaya is rachna ko padh kar-----
badhai
poonam
दिग दिगंत आमोद भरा
ReplyDeleteमकरंद हुई हिम कणिका
सागर उन्मत्त कलोल भरा
फेनिल फन चमके मणि सा
madhur geet aur sundar bhi
सुन्दर! कमाल वसंत का है या आपकी काव्य-प्रतिभा का? काव्य प्रतिभा का होगा अन्यथा अपने बगीचे के गदराये गेन्दे के फूल तो मैं भी देखता हूं - बिना एक पंक्ति भी लिखे!
ReplyDeleteकमाल तो बसंत का ही है सर , मै अकिंचन तो बस यूँ ही माध्यम बन गया . गेंदा फूल हो या पिटुनिया सभी बसंतियाते तो हैये है ना .
Deleteमधुमास पल्लवित धरती पर ,
ReplyDeleteपीताम्बर तन पर डाले
किसलय कुसुम सुगन्धित मदिर
अनंग प्रफुल्लित डाले गलबाहें
वाह.....
बसंत ऋतू का अद्भुत वर्णन ....
धरनी के राग वितान तने
ReplyDeleteआकांक्षा-तृप्ति की संगति को
अभिनव क्रीडांगन है सजा धजा
कौतुक-चेतना देता काम-रति को .
मधु मास की अद्भुत छटा बिखेर दी. बहुत सुंदर प्रस्तुति.
बहुत सुंदर!
ReplyDeleteमुग्ध हुए है हर सिंगार
ReplyDeleteबन सेज पिया की,
चंचल नैनो की चितवन
बोलती बात हिया की.
यह मधुमास की रात
मत करो जाने की
तुम बात.