Friday, September 26, 2014

बधशाला -19





अरे नीच जयचंद बना तू, भाई को खाने वाला
आँख फोड़कर हाय कैद में , राय पिथौरा को डाला
धन्य चंदबरदाई तुमको , धन्य तुम्हारे साहस को
खूब मुहम्मद गोरी की , गजनी में खोली बधशाला


ताड़ गया चालाकी वह भी , था आफत का परकाला
बड़ी शान से मुलाकात को , चला मरहठा मतवाला
लगा शिवाजी को सीने से , अफजलखां ने वार किया
मार बघनखा वही खोल दी, शेर शिवा ने बधशाला


गिरा गोद में घायल पक्षी , आतुर होकर देखा भाला
वहां बधिक आ गया भूख से , था व्याकुल मरने वाला
जीवन मरण आज गौतम को.,खूब समझ में आया था
किस पर दया करूँ! क्या दुनिया , इसी तरह है बधशाला

Thursday, September 4, 2014

बधशाला -18





हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई, कोई भी हो मतवाला 
जात पात और छुआ छूत का , यहाँ नहीं परदा काला
इसी घाट से राजा उतरे , यही रंक के लिए खुला 
भेद भाव को भूल सभी को , एक बनाती बधशाला.


तेरा इनका जिस्म एक सा , रंग रूप भी है आला
ये भी बेटे उसी पिता के , है जिसने तुझको पाला
एक बाप की संताने क्या , नहीं प्रेम से रहती है 
मिलो गले से और खोल दो , छुआ छूत की बधशाला .


मृगनयनी को छोड़ अरे तू , दाब बगल में मृगछाला 
आसन मार बैठ मरघट में , वीर मुंड के लै माला
सत्यम शिवम् सुन्दरम का तू , जाप किये जा ध्यान लगा 
तब जग के कण कण में तुझको , दिख पड़ेगी बधशाला