अरे नीच जयचंद बना तू, भाई को खाने वाला
आँख फोड़कर हाय कैद में , राय पिथौरा को डाला
धन्य चंदबरदाई तुमको , धन्य तुम्हारे साहस को
खूब मुहम्मद गोरी की , गजनी में खोली बधशाला
ताड़ गया चालाकी वह भी , था आफत का परकाला
बड़ी शान से मुलाकात को , चला मरहठा मतवाला
लगा शिवाजी को सीने से , अफजलखां ने वार किया
मार बघनखा वही खोल दी, शेर शिवा ने बधशाला
गिरा गोद में घायल पक्षी , आतुर होकर देखा भाला
वहां बधिक आ गया भूख से , था व्याकुल मरने वाला
जीवन मरण आज गौतम को.,खूब समझ में आया था
किस पर दया करूँ! क्या दुनिया , इसी तरह है बधशाला
जीवन मरण आज गौतम को.,खूब समझ में आया था
ReplyDeleteकिस पर दया करूँ! क्या दुनिया , इसी तरह है बधशाला
खूब....
आह .. आपकी यह वधशाला
ReplyDeleteजय हो ....कमाल की है वधशाला
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