Friday, March 2, 2012

वंचिता

संध्या ने नभ के सर में 
अपनी अरुणाई घोली 
दिनकर पर अभिनव रोली 
बिखरे भर भर झोली 

रंगीन करों में उसके 
देख  रंगभरी पिचकारी 
पश्चिम के पट में छिपने 
भागे  सहस्र करधारी

धूमिल प्रकाश  में लख यह 
नभ-रंगभूमि की लीला 
नत -नयना नलिनी का मुख
मुरझाया हो कर पीला

तब आ कर अलि -बालाएं 
निज मृदु गुंजन गानों में 
प्रिय सजनी सरोजनी को 
है समझाती  कानों में 

सखी ! सहज कुटिल इस रवि की 
यह लीला नित ही होती 
अब कठिन बना निज मृदु उर 
क्यों अवनत -बदना   रोती 

33 comments:

  1. Bahut hee sundar,komal geyta liye hue!

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  2. बहुत ही प्यारी और भावो को संजोये रचना......

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  3. संध्या ने नभ के सर में
    अपनी अरुणाई घोली
    दिनकर पर अभिनव रोली
    बिखरे भर भर झोली

    रंगीन करों में उसके
    देख रंगभरी पिचकारी
    पश्चिम के पट में छिपने
    भागे सहस्र करधारी
    कमाल की होली खेली है प्रकृति ने... बहुत सुन्दर.

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  4. तब आ कर अलि -बालाएं
    निज मृदु गुंजन गानों में
    प्रिय सजनी सरोजनी को
    है समझाती कानों में

    अभी तो बस कमाल है! बाक़ी बाद में!!

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  5. संध्या ने नभ के सर में
    अपनी अरुणाई घोली
    दिनकर पर अभिनव रोली
    बिखरे भर भर झोली .
    मैं तो इन खूबसूरत शब्दों से ही बाहर नहीं निकल पाती...कमाल है.
    प्रकृति का यह रूप कितना मनोहारी बन पड़ा है.

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  6. सुन्दर चित्रण किया , साथ ही आपका प्रकॄति प्रेम और उसकी समझ भी इस रचना में स्पष्ट रूप से दिखती है ........

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  7. बहुत सुंदर शब्दों में प्राकृतिक वर्णन ... उत्कृष्ट रचना । :)

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  8. धूमिल प्रकाश में लख यह
    नभ-रंगभूमि की लीला
    नत -नयना नलिनी का मुख
    मुरझाया हो कर पीला... kalatmak, bhawnatmak

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  9. बहुत ही सुंदर भावाव्यक्ति बधाई

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  10. बहुत ही सुंदर शब्द संयोजन से सजी बेहतरीन भावाव्यक्ति...

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  11. अद्भुत चित्रण करते शब्द.....

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  12. बड़ी जलवेदार उपमायें हैं। :)

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  13. वाह..
    बहुत सुन्दर...
    शब्दों और भाषा पर आपकी पकड़ काबिले तारीफ़ है...
    मेरे ब्लॉग पर आपकी उपस्थिति सुखद लगी..
    शुक्रिया.

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  14. सूर्य का प्रकाश के बदलने के साथ ही भाव बदलने लगते हैं।

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  15. सखी ! सहज कुटिल इस रवि की
    यह लीला नित ही होती
    अब कठिन बना निज मृदु उर
    क्यों अवनत -बदना रोती
    जीवन का मर्म छुपा है यहाँ ...
    कितनी सहजता से आपने अनमोल भावों को उकेरा है ...!!
    मानना पड़ेगा आपको ....!!!
    अद्भुत पकड़ कलम पर ....!!

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    1. अनुपमा जी , आभार आपका मनोबल बढ़ाने खातिर

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  16. संध्या ने नभ के सर में
    अपनी अरुणाई घोली
    दिनकर पर अभिनव रोली
    बिखरे भर भर झोली

    कविता में प्रयुक्त हुए अति सुंदर शब्दों जैसे शब्द और भाव नहीं हैं मेरे पास
    इसलिये केवल शुभकामनाएं दे रही हूं

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    1. जहेनसीब . शुक्रिया .

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  17. इस रचना की संवेदना और शिल्पगत सौंदर्य मन को भाव विह्वल कर गए हैं। मानवीय संवेदना की आंच में सिंधी हुई ये कविता हमें मानवीय रिश्ते की गर्माहट प्रदान करती है।
    लगता है फगुनाहट छा गया है।

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  18. रंगों के पर्व में विविध रंगों से सजी सुंदर कविता।

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  19. बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति| होली की शुभकामनाएं।

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  20. ट्रेलर तो उसी दिन देख लिया था मूवी सुपर्हिट है

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  21. रवि की लीला नित ही होती..पर वंचिता भी न धैर्य खोती .
    ह्रदय में मध्यम-मध्यम स्पन्दन करती हुई रचना व कोमलता लिए शिल्प .

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  22. रंजना जी की मेल से प्राप्त टिप्पणी .
    क्या कहूँ, विमुग्ध और निःशब्द कर दिया आपकी इस रचना के सौन्दर्य ने..
    प्रशंशा हेतु शब्द नहीं मेरे पास...माता आपकी लेखनी को प्रखरता दें, सदा ऐसे ही सहाय रहें..
    ब्लागस्पाट न खोल पाने के कारण प्रविष्टि पाठ से वंचित थी..

    सादर,
    रंजना.

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  23. रंग-पर्व को अतिरिक्त रंगत दे गयी आपकी रचना .......:)

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  24. रंगीन करों में उसके
    देख रंगभरी पिचकारी
    पश्चिम के पट में छिपने
    भागे सहस्र करधारी ...

    ये प्रभाव रंगीन हाथों का है या पिचकारी में भरे रंगों का ...
    बहुत ही सुन्दर काव्य आशीष जी ...
    आपको और परिवार में सभी को होली की शुभ कामनाएं ...

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  25. बहुत सुन्दर हृदयस्पर्शी भावाभिव्यक्ति....
    होली की हार्दिक शुभकामनायें !

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  26. वाह...........

    बहुत सुन्दर...
    अदभुद शब्द संयोजन...लाजवाब अभिव्यक्ति...

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  27. holi aur prkriti ko jod anupam shbd rang upasthit kiye hain Aashish ji .....

    kmal karte hain aap bhi ....:))

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  28. शब्दों की रंगोली भा गई।

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