संध्या ने नभ के सर में
अपनी अरुणाई घोली
दिनकर पर अभिनव रोली
बिखरे भर भर झोली
रंगीन करों में उसके
देख रंगभरी पिचकारी
पश्चिम के पट में छिपने
भागे सहस्र करधारी
धूमिल प्रकाश में लख यह
नभ-रंगभूमि की लीला
नत -नयना नलिनी का मुख
मुरझाया हो कर पीला
तब आ कर अलि -बालाएं
निज मृदु गुंजन गानों में
प्रिय सजनी सरोजनी को
है समझाती कानों में
सखी ! सहज कुटिल इस रवि की
यह लीला नित ही होती
अब कठिन बना निज मृदु उर
क्यों अवनत -बदना रोती
Bahut hee sundar,komal geyta liye hue!
ReplyDeleteबहुत ही प्यारी और भावो को संजोये रचना......
ReplyDeleteसंध्या ने नभ के सर में
ReplyDeleteअपनी अरुणाई घोली
दिनकर पर अभिनव रोली
बिखरे भर भर झोली
रंगीन करों में उसके
देख रंगभरी पिचकारी
पश्चिम के पट में छिपने
भागे सहस्र करधारी
कमाल की होली खेली है प्रकृति ने... बहुत सुन्दर.
तब आ कर अलि -बालाएं
ReplyDeleteनिज मृदु गुंजन गानों में
प्रिय सजनी सरोजनी को
है समझाती कानों में
अभी तो बस कमाल है! बाक़ी बाद में!!
संध्या ने नभ के सर में
ReplyDeleteअपनी अरुणाई घोली
दिनकर पर अभिनव रोली
बिखरे भर भर झोली .
मैं तो इन खूबसूरत शब्दों से ही बाहर नहीं निकल पाती...कमाल है.
प्रकृति का यह रूप कितना मनोहारी बन पड़ा है.
सुन्दर चित्रण किया , साथ ही आपका प्रकॄति प्रेम और उसकी समझ भी इस रचना में स्पष्ट रूप से दिखती है ........
ReplyDeleteबहुत सुंदर शब्दों में प्राकृतिक वर्णन ... उत्कृष्ट रचना । :)
ReplyDeleteधूमिल प्रकाश में लख यह
ReplyDeleteनभ-रंगभूमि की लीला
नत -नयना नलिनी का मुख
मुरझाया हो कर पीला... kalatmak, bhawnatmak
बहुत ही सुंदर भावाव्यक्ति बधाई
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर शब्द संयोजन से सजी बेहतरीन भावाव्यक्ति...
ReplyDeleteअद्भुत चित्रण करते शब्द.....
ReplyDeleteबड़ी जलवेदार उपमायें हैं। :)
ReplyDeleteवाह..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
शब्दों और भाषा पर आपकी पकड़ काबिले तारीफ़ है...
मेरे ब्लॉग पर आपकी उपस्थिति सुखद लगी..
शुक्रिया.
सूर्य का प्रकाश के बदलने के साथ ही भाव बदलने लगते हैं।
ReplyDeleteसखी ! सहज कुटिल इस रवि की
ReplyDeleteयह लीला नित ही होती
अब कठिन बना निज मृदु उर
क्यों अवनत -बदना रोती
जीवन का मर्म छुपा है यहाँ ...
कितनी सहजता से आपने अनमोल भावों को उकेरा है ...!!
मानना पड़ेगा आपको ....!!!
अद्भुत पकड़ कलम पर ....!!
अनुपमा जी , आभार आपका मनोबल बढ़ाने खातिर
Deleteसंध्या ने नभ के सर में
ReplyDeleteअपनी अरुणाई घोली
दिनकर पर अभिनव रोली
बिखरे भर भर झोली
कविता में प्रयुक्त हुए अति सुंदर शब्दों जैसे शब्द और भाव नहीं हैं मेरे पास
इसलिये केवल शुभकामनाएं दे रही हूं
जहेनसीब . शुक्रिया .
Deleteइस रचना की संवेदना और शिल्पगत सौंदर्य मन को भाव विह्वल कर गए हैं। मानवीय संवेदना की आंच में सिंधी हुई ये कविता हमें मानवीय रिश्ते की गर्माहट प्रदान करती है।
ReplyDeleteलगता है फगुनाहट छा गया है।
रंगों के पर्व में विविध रंगों से सजी सुंदर कविता।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति| होली की शुभकामनाएं।
ReplyDeleteट्रेलर तो उसी दिन देख लिया था मूवी सुपर्हिट है
ReplyDeleteरवि की लीला नित ही होती..पर वंचिता भी न धैर्य खोती .
ReplyDeleteह्रदय में मध्यम-मध्यम स्पन्दन करती हुई रचना व कोमलता लिए शिल्प .
रंजना जी की मेल से प्राप्त टिप्पणी .
ReplyDeleteक्या कहूँ, विमुग्ध और निःशब्द कर दिया आपकी इस रचना के सौन्दर्य ने..
प्रशंशा हेतु शब्द नहीं मेरे पास...माता आपकी लेखनी को प्रखरता दें, सदा ऐसे ही सहाय रहें..
ब्लागस्पाट न खोल पाने के कारण प्रविष्टि पाठ से वंचित थी..
सादर,
रंजना.
बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteरंग-पर्व को अतिरिक्त रंगत दे गयी आपकी रचना .......:)
ReplyDeleteरंगीन करों में उसके
ReplyDeleteदेख रंगभरी पिचकारी
पश्चिम के पट में छिपने
भागे सहस्र करधारी ...
ये प्रभाव रंगीन हाथों का है या पिचकारी में भरे रंगों का ...
बहुत ही सुन्दर काव्य आशीष जी ...
आपको और परिवार में सभी को होली की शुभ कामनाएं ...
बहुत सुन्दर हृदयस्पर्शी भावाभिव्यक्ति....
ReplyDeleteहोली की हार्दिक शुभकामनायें !
वाह...........
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
अदभुद शब्द संयोजन...लाजवाब अभिव्यक्ति...
holi aur prkriti ko jod anupam shbd rang upasthit kiye hain Aashish ji .....
ReplyDeletekmal karte hain aap bhi ....:))
शब्दों की रंगोली भा गई।
ReplyDeletegreat presentation.ये वंशवाद नहीं है क्या?
ReplyDeleteअति सुंदर ..
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