जब निदाध से तापित होता
धरनी का उर अपरम्पार
उमड़ घुमड़ कजरारे वारिद
सिंचन करते शिशिर फुहार
जब तम पट में मुँह ढक राका
रोती गिरा अश्रु निहार
सुभग सुधाकर उसे हँसाता
उमड़ घुमड़ कजरारे वारिद
सिंचन करते शिशिर फुहार
जब तम पट में मुँह ढक राका
रोती गिरा अश्रु निहार
सुभग सुधाकर उसे हँसाता
ललित कलाएं सभी प्रसार
सरोजनी का मृदुल बदन जब
नत होता सह चिंता भार
दिनकर कर -स्पर्श से उसमे
करता अमित मोद संचार
सरिताओं के जीवन पर जब
करता तपन कठोर प्रहार
व्योम मार्ग से जलधि भेजता
उन तक निज उर की रसधार
कठिन पवन के झोंको से जब
होता विकल मधुप सुकुमार
कमल-कली झट उसे बचाती
आवृत कर निज अन्तर्द्वार
हृदयहीन होने पर भी है
कितना सहृदय व्यापार
प्रकृति सुंदरी सत्य बता दे
किससे पाया इतना प्यार ?
सरोजनी का मृदुल बदन जब
नत होता सह चिंता भार
दिनकर कर -स्पर्श से उसमे
करता अमित मोद संचार
सरिताओं के जीवन पर जब
करता तपन कठोर प्रहार
व्योम मार्ग से जलधि भेजता
उन तक निज उर की रसधार
कठिन पवन के झोंको से जब
होता विकल मधुप सुकुमार
कमल-कली झट उसे बचाती
आवृत कर निज अन्तर्द्वार
हृदयहीन होने पर भी है
कितना सहृदय व्यापार
प्रकृति सुंदरी सत्य बता दे
किससे पाया इतना प्यार ?
वाह...........
ReplyDeleteआप बताएं...किससे/कैसे पाया इतना अथाह ज्ञान...
शब्दों से खेलते हैं आप...
बहुत सुन्दर...
अभिव्यक्ति जी , कुछ ज्यादा नहीं हो गया ?? हा हा .
Deleteआभार आपका .
i said what i felt...ज्यादा ही सही..
Deleteregards.
anu
हृदयहीन होने पर भी है
ReplyDeleteकितना सहृदय व्यापार
प्रकृति सुंदरी सत्य बता दे
किससे पाया इतना प्यार ?
सचमुच. प्रकृति की हृदयहीनता से कभी-कभी और स्नेह से रोज़ ही दो-चार होते हैं हम सब. इतने स्नेह ममता में से कुछ अंश इंसान नहीं ले सकता? बहुत सुन्दर कविता.
सही कहा आपने वंदना जी . हम प्रकृति के साथ खेल रहे है
Deleteवाह!
ReplyDeleteतभी तो ईश्वर का ही स्वरुप है प्रकृति!
सत्य वचन
Deleteउज्जवल ,प्रभामय सृजन..विस्मय -विमुग्ध हुआ मन..
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका
Deleteचिर नवीनता लिए होती है आपकी रचनाएँ..मेक-ओवर से परे..
Deleteहिंदी की नैया अब आप जैसों के ही हाथ है.
ReplyDeleteइतने सुन्दर शब्द
बहुत खूबसूरत... भाव भी, शब्द भी और सन्देश भी.
ना जी मै चप्पू चलाना नहीं जानता , ये नाव जो है दक्ष नाविक केपास ही सुरक्षित है . हा हा
Deleteप्रकृति के हर उपादानों में तो देना एक नैसर्गिक गुण है, पर बदले में हम प्रकृति को निचोड़ रहे हैं, शोषण कर रहे हैं। जितनी कोमल कविता की रचना की है हमें भी उतने ही कोमलता से प्रकृति के प्रति रुख रखना चाहिए। वरना एक दिन हम बूंद-बूंद जल को तरसेंगे।
ReplyDeleteसरिताओं के जीवन पर जब
करता तपन कठोर प्रहार
व्योम मार्ग से जलधि भेजता
उन तक निज उर की रसधार
आपकी जल संचय वाली कविता मुझे कंठस्थ करनी है .
Deleteचकाचक है जी।
ReplyDeleteहिंदी की नैया नहीं भाई हिंदी का पूरा जहाज आपके हाथ में हैं।
संभाले रहियो जी। :)
हिंदी को टायटेनिक थोड़े होने देना है .
Deleteअति उत्कृष्ट ....प्रभु का आशीष बरस रहा है आप पर ....
ReplyDeleteकुछ कठिन शब्दों के अर्थ दे दें तो बहुत अच्छा होगा ..!!
ऊपर वाले के आशीष की जरुरत तो कभी ख़तम नहीं होगी ना .
Deleteकठिन शब्दों का मतलब लिख देता हूँ . विलम्ब के लिए क्षमा .
बेहतरीन
ReplyDeleteसादर
आभार
Deleteप्रकृति हमें कितना सुन्दर बना जाती है, हमें भान ही नहीं हो पाता है उसका।
ReplyDeleteभान हो जाए तो हम भी वैसे ही सोचने ना लगे .
Deleteप्रकृति के सारे दृश्य आँखों के सामने आ गए .... चाँद बादल आसमान नदियां कमल सभी कुछ तो समेट लिया है ... कोमल शब्दों से बुनी उत्कृष्ट रचना
ReplyDeleteप्रेरणा देती रहे आप .
Deleteअद्भुत रचना .....
ReplyDeleteधन्यवाद आपका .
Deleteवाह ..
ReplyDeleteधन्यवाद आपका .
Deletebahut sundar
ReplyDeleteधन्यवाद आपका .
Deleteआपको नव संवत्सर 2069 की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँ।
ReplyDelete----------------------------
कल 24/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
छायावादी युग की वापसी का सौगात लेकर आयी है आपकी रचनाये
ReplyDeleteइनका संग्र जल्द छपे और नेट के अलावा आम जन को भी ये पढने को मिले ऐसी कामना करता हू
नव संवत्सर 2069 की हार्दिक शुभकामनाएँ।
नीचे से देखने में अच्छा दिखता है आसमान ,
Deleteबहुत सुंदर रचना है ... :)
ReplyDeleteधन्यवाद आपका .
Delete
ReplyDelete♥
सरोजनी का मृदुल बदन जब
नत होता सह चिंता भार
दिनकर कर -स्पर्श से उसमे
करता अमित मोद संचार
सरिताओं के जीवन पर जब
करता तपन कठोर प्रहार
व्योम मार्ग से जलधि भेजता
उन तक निज उर की रसधार
कठिन पवन के झोंको से जब
होता विकल मधुप सुकुमार
कमल-कली झट उसे बचाती
आवृत कर निज अन्तर्द्वार
हृदयहीन होने पर भी है
कितना सहृदय व्यापार
प्रकृति सुंदरी सत्य बता दे
किससे पाया इतना प्यार ?
बहुत सुंदर लिखा है आपने ...
बधाई !
बहुत अच्छा लिखा है ..
आना पडेगा बार बार आपके यहां :)
रचना ने ऐसे रससिक्त किया है कि विषम शब्दहीनता की स्थति में पहुंचा हुआ है मन...
ReplyDeleteकहूँ भी तो क्या कहूँ...??
आपकी लेखनी को नमन...
क्या लिखा है भाई आपने!! बहुत सुन्दर हिंदी (हालाँकि मेरे लिए थोड़ी क्लिष्ट थी ;) ...
ReplyDeleteबहुत शुभकामनाएं आपको!
हृदयहीन होने पर भी है
ReplyDeleteकितना सहृदय व्यापार
प्रकृति सुंदरी सत्य बता दे
किससे पाया इतना प्यार ?bahut badhiya.....
सरोजनी का मृदुल बदन जब
ReplyDeleteनत होता सह चिंता भार
दिनकर कर -स्पर्श से उसमे
करता अमित मोद संचार
बहुत सुन्दर... आनंद आ गया गाकर...
सादर बधाई....
जो मेरा वो प्रतिपल लुटाती
ReplyDeleteनही कुछ पाने की आस,
मन व्यथित होता तब जब
प्राणी को मेरा अस्तित्व ना आता रास
प्रीत निभाती मै जिससे
वही मुझे बनाता अपना ग्रास
सोच के व्याकुल हो जाती
क्या होगा तेरा, जब ना रहूंगीं तेरे पास
काश हम सब सुन पाते जो प्रकृति हमसे कहना चाहती है ....
भइया आपकी रचना में साहित्य समझ और भावना का एक अनुपम संगम देखने को मिलता है
हृदयहीन होने पर भी है
ReplyDeleteकितना सहृदय व्यापार
प्रकृति सुंदरी सत्य बता दे
किससे पाया इतना प्यार ?
...सच शाश्वत प्यार का अगाध भंडार तो प्रकृति ही है..
बहुत सुन्दर रचना...
हृदयहीन होने पर भी है
ReplyDeleteकितना सहृदय व्यापार
प्रकृति सुंदरी सत्य बता दे
किससे पाया इतना प्यार ?
वाह, बहुत ही सुंदर कविता।
प्रकृति का स्वभाव केवल प्यार करना ही है।
कठिन पवन के झोंको से जब
ReplyDeleteहोता विकल मधुप सुकुमार
कमल-कली झट उसे बचाती
आवृत कर निज अन्तर्द्वार ...
वाह ... छाया वादी युग की पुनः शुरुआत दिख रही है ... बहुत ही सुन्दर शब्द संयोजन और मधुर काव्य सरिता ...
इतना सुंदर और सुव्यवस्थित शब्द संयोजन बहुत कम ही देखने को मिलता है
ReplyDeleteकठिन पवन के झोंको से जब
होता विकल मधुप सुकुमार
कमल-कली झट उसे बचाती
आवृत कर निज अन्तर्द्वार
हृदयहीन होने पर भी है
कितना सहृदय व्यापार
प्रकृति सुंदरी सत्य बता दे
किससे पाया इतना प्यार ?
प्रकृति तो हमें सिर्फ़ प्यार ही देना चाहती है पर हम मनुष्य उसे हृदयहीन होने पर विवश कर देते हैं वर्ना तो प्रकृति की गोद में जो सुकून और शाँति है वो और कहाँ
बहुत ही सुंदर रचना ,,भाषा पर आप की पकड़, आप की रचनाओं को बार बार पढ़ने के लिये विवश कर देगी
कहाँ से लाते है आप इतने खूबसूरत शब्दों से सजी भाषा :)यूं तो हिन्दी सभी लिखते हैं मगर आपकी हिन्दी आपकी अभिव्यक्ति को अनोखा ही रूप देदेती है बहुत ही सुंदर भाषा शब्द एवं भाव संयोजन से सजी बेहतरीन भवाव्यक्ति....
ReplyDeleteDelicate.. chhone se hi maili ho jane wali bhasha... aur bhav to anupam.. :)
ReplyDeleteआशीष जी पता नहीं क्या बात है मेरी पोस्ट किसी को दिखाई नहीं दे रही .....फिर आपको कैसे दिखाई दी ....?
ReplyDeleteअरे इस पोस्ट पे मेरा कमेन्ट कैसे नहीं है ....
ReplyDeleteइसे तो मैं तभी पढ़ गई थी जब आपने लिंक भेजा था ....
और कमेन्ट भी किया था ...
शायद पोस्ट नहीं हो पाया ...
प्रकृति सुंदरी सत्य बता दे
किससे पाया इतना प्यार ?
ये प्रकृति सुंदर कहीं वो तो नहीं ....?
अब मैं क्या बोलूँ...सबने जो लिखा वही मैं भी कहूँगी...खासकर अनुलता की बातः)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeleteप्रकृति सुंदरी सत्य बता दे
ReplyDeleteकिससे पाया इतना प्यार ?
....कवि मनसे...इतना प्यार केवल एक कवि के मन में ही हो सकता है ....तभी तो चहुँ और दिखाई दे रहा है ..बेहद सुन्दर...
वाह, क्या बात है!
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत कविता .....इतने सुन्दर मोती जैसे और नेह से ओतप्रोत शब्द .... :)
ReplyDeleteप्रकृति की लीला अपरंपार है। जहां उसकी हृदयहीनता झकझोर देती है वहीं उसका स्नेह देख बुद्धि चकरा जाती है। खूबसूरती से अंतिम बंद में आपने कविता में जान डाल दी है।..बधाई।
ReplyDelete