Wednesday, March 21, 2012

शाश्वत प्यार .

जब निदाध से तापित होता 
 धरनी  का उर अपरम्पार 
उमड़ घुमड़ कजरारे वारिद 
सिंचन करते शिशिर फुहार 

जब तम पट में मुँह ढक राका
रोती गिरा अश्रु निहार 
सुभग सुधाकर उसे हँसाता 
ललित  कलाएं सभी प्रसार 

सरोजनी का मृदुल बदन जब 
नत होता सह चिंता भार
दिनकर कर -स्पर्श से उसमे 
करता अमित मोद संचार 

सरिताओं  के जीवन पर जब 
करता तपन कठोर प्रहार
व्योम मार्ग से जलधि भेजता 
उन तक निज उर की रसधार 

कठिन पवन के झोंको से जब 
होता विकल मधुप सुकुमार 
कमल-कली झट उसे बचाती 
आवृत कर निज अन्तर्द्वार

हृदयहीन होने पर भी है
कितना सहृदय व्यापार 
प्रकृति सुंदरी सत्य  बता दे 
किससे पाया इतना प्यार ?

55 comments:

  1. वाह...........
    आप बताएं...किससे/कैसे पाया इतना अथाह ज्ञान...

    शब्दों से खेलते हैं आप...
    बहुत सुन्दर...

    ReplyDelete
    Replies
    1. अभिव्यक्ति जी , कुछ ज्यादा नहीं हो गया ?? हा हा .
      आभार आपका .

      Delete
    2. i said what i felt...ज्यादा ही सही..
      regards.
      anu

      Delete
  2. हृदयहीन होने पर भी है
    कितना सहृदय व्यापार
    प्रकृति सुंदरी सत्य बता दे
    किससे पाया इतना प्यार ?
    सचमुच. प्रकृति की हृदयहीनता से कभी-कभी और स्नेह से रोज़ ही दो-चार होते हैं हम सब. इतने स्नेह ममता में से कुछ अंश इंसान नहीं ले सकता? बहुत सुन्दर कविता.

    ReplyDelete
    Replies
    1. सही कहा आपने वंदना जी . हम प्रकृति के साथ खेल रहे है

      Delete
  3. वाह!
    तभी तो ईश्वर का ही स्वरुप है प्रकृति!

    ReplyDelete
  4. उज्जवल ,प्रभामय सृजन..विस्मय -विमुग्ध हुआ मन..

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका

      Delete
    2. चिर नवीनता लिए होती है आपकी रचनाएँ..मेक-ओवर से परे..

      Delete
  5. हिंदी की नैया अब आप जैसों के ही हाथ है.
    इतने सुन्दर शब्द
    बहुत खूबसूरत... भाव भी, शब्द भी और सन्देश भी.

    ReplyDelete
    Replies
    1. ना जी मै चप्पू चलाना नहीं जानता , ये नाव जो है दक्ष नाविक केपास ही सुरक्षित है . हा हा

      Delete
  6. प्रकृति के हर उपादानों में तो देना एक नैसर्गिक गुण है, पर बदले में हम प्रकृति को निचोड़ रहे हैं, शोषण कर रहे हैं। जितनी कोमल कविता की रचना की है हमें भी उतने ही कोमलता से प्रकृति के प्रति रुख रखना चाहिए। वरना एक दिन हम बूंद-बूंद जल को तरसेंगे।

    सरिताओं के जीवन पर जब
    करता तपन कठोर प्रहार
    व्योम मार्ग से जलधि भेजता
    उन तक निज उर की रसधार

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपकी जल संचय वाली कविता मुझे कंठस्थ करनी है .

      Delete
  7. चकाचक है जी।
    हिंदी की नैया नहीं भाई हिंदी का पूरा जहाज आपके हाथ में हैं।
    संभाले रहियो जी। :)

    ReplyDelete
    Replies
    1. हिंदी को टायटेनिक थोड़े होने देना है .

      Delete
  8. अति उत्कृष्ट ....प्रभु का आशीष बरस रहा है आप पर ....
    कुछ कठिन शब्दों के अर्थ दे दें तो बहुत अच्छा होगा ..!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. ऊपर वाले के आशीष की जरुरत तो कभी ख़तम नहीं होगी ना .
      कठिन शब्दों का मतलब लिख देता हूँ . विलम्ब के लिए क्षमा .

      Delete
  9. प्रकृति हमें कितना सुन्दर बना जाती है, हमें भान ही नहीं हो पाता है उसका।

    ReplyDelete
    Replies
    1. भान हो जाए तो हम भी वैसे ही सोचने ना लगे .

      Delete
  10. प्रकृति के सारे दृश्य आँखों के सामने आ गए .... चाँद बादल आसमान नदियां कमल सभी कुछ तो समेट लिया है ... कोमल शब्दों से बुनी उत्कृष्ट रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. प्रेरणा देती रहे आप .

      Delete
  11. आपको नव संवत्सर 2069 की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँ।

    ----------------------------
    कल 24/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    ReplyDelete
  12. छायावादी युग की वापसी का सौगात लेकर आयी है आपकी रचनाये
    इनका संग्र जल्द छपे और नेट के अलावा आम जन को भी ये पढने को मिले ऐसी कामना करता हू
    नव संवत्सर 2069 की हार्दिक शुभकामनाएँ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. नीचे से देखने में अच्छा दिखता है आसमान ,

      Delete
  13. बहुत सुंदर रचना है ... :)

    ReplyDelete




  14. सरोजनी का मृदुल बदन जब
    नत होता सह चिंता भार
    दिनकर कर -स्पर्श से उसमे
    करता अमित मोद संचार

    सरिताओं के जीवन पर जब
    करता तपन कठोर प्रहार
    व्योम मार्ग से जलधि भेजता
    उन तक निज उर की रसधार

    कठिन पवन के झोंको से जब
    होता विकल मधुप सुकुमार
    कमल-कली झट उसे बचाती
    आवृत कर निज अन्तर्द्वार

    हृदयहीन होने पर भी है
    कितना सहृदय व्यापार
    प्रकृति सुंदरी सत्य बता दे
    किससे पाया इतना प्यार ?



    बहुत सुंदर लिखा है आपने ...
    बधाई !
    बहुत अच्छा लिखा है ..

    आना पडेगा बार बार आपके यहां :)

    ReplyDelete
  15. रचना ने ऐसे रससिक्त किया है कि विषम शब्दहीनता की स्थति में पहुंचा हुआ है मन...

    कहूँ भी तो क्या कहूँ...??

    आपकी लेखनी को नमन...

    ReplyDelete
  16. क्या लिखा है भाई आपने!! बहुत सुन्दर हिंदी (हालाँकि मेरे लिए थोड़ी क्लिष्ट थी ;) ...
    बहुत शुभकामनाएं आपको!

    ReplyDelete
  17. हृदयहीन होने पर भी है
    कितना सहृदय व्यापार
    प्रकृति सुंदरी सत्य बता दे
    किससे पाया इतना प्यार ?bahut badhiya.....

    ReplyDelete
  18. सरोजनी का मृदुल बदन जब
    नत होता सह चिंता भार
    दिनकर कर -स्पर्श से उसमे
    करता अमित मोद संचार

    बहुत सुन्दर... आनंद आ गया गाकर...
    सादर बधाई....

    ReplyDelete
  19. जो मेरा वो प्रतिपल लुटाती
    नही कुछ पाने की आस,
    मन व्यथित होता तब जब
    प्राणी को मेरा अस्तित्व ना आता रास
    प्रीत निभाती मै जिससे
    वही मुझे बनाता अपना ग्रास
    सोच के व्याकुल हो जाती
    क्या होगा तेरा, जब ना रहूंगीं तेरे पास
    काश हम सब सुन पाते जो प्रकृति हमसे कहना चाहती है ....
    भइया आपकी रचना में साहित्य समझ और भावना का एक अनुपम संगम देखने को मिलता है

    ReplyDelete
  20. हृदयहीन होने पर भी है
    कितना सहृदय व्यापार
    प्रकृति सुंदरी सत्य बता दे
    किससे पाया इतना प्यार ?
    ...सच शाश्वत प्यार का अगाध भंडार तो प्रकृति ही है..
    बहुत सुन्दर रचना...

    ReplyDelete
  21. हृदयहीन होने पर भी है
    कितना सहृदय व्यापार
    प्रकृति सुंदरी सत्य बता दे
    किससे पाया इतना प्यार ?

    वाह, बहुत ही सुंदर कविता।
    प्रकृति का स्वभाव केवल प्यार करना ही है।

    ReplyDelete
  22. कठिन पवन के झोंको से जब
    होता विकल मधुप सुकुमार
    कमल-कली झट उसे बचाती
    आवृत कर निज अन्तर्द्वार ...

    वाह ... छाया वादी युग की पुनः शुरुआत दिख रही है ... बहुत ही सुन्दर शब्द संयोजन और मधुर काव्य सरिता ...

    ReplyDelete
  23. इतना सुंदर और सुव्यवस्थित शब्द संयोजन बहुत कम ही देखने को मिलता है

    कठिन पवन के झोंको से जब
    होता विकल मधुप सुकुमार
    कमल-कली झट उसे बचाती
    आवृत कर निज अन्तर्द्वार

    हृदयहीन होने पर भी है
    कितना सहृदय व्यापार
    प्रकृति सुंदरी सत्य बता दे
    किससे पाया इतना प्यार ?

    प्रकृति तो हमें सिर्फ़ प्यार ही देना चाहती है पर हम मनुष्य उसे हृदयहीन होने पर विवश कर देते हैं वर्ना तो प्रकृति की गोद में जो सुकून और शाँति है वो और कहाँ

    बहुत ही सुंदर रचना ,,भाषा पर आप की पकड़, आप की रचनाओं को बार बार पढ़ने के लिये विवश कर देगी

    ReplyDelete
  24. कहाँ से लाते है आप इतने खूबसूरत शब्दों से सजी भाषा :)यूं तो हिन्दी सभी लिखते हैं मगर आपकी हिन्दी आपकी अभिव्यक्ति को अनोखा ही रूप देदेती है बहुत ही सुंदर भाषा शब्द एवं भाव संयोजन से सजी बेहतरीन भवाव्यक्ति....

    ReplyDelete
  25. Delicate.. chhone se hi maili ho jane wali bhasha... aur bhav to anupam.. :)

    ReplyDelete
  26. आशीष जी पता नहीं क्या बात है मेरी पोस्ट किसी को दिखाई नहीं दे रही .....फिर आपको कैसे दिखाई दी ....?

    ReplyDelete
  27. अरे इस पोस्ट पे मेरा कमेन्ट कैसे नहीं है ....
    इसे तो मैं तभी पढ़ गई थी जब आपने लिंक भेजा था ....
    और कमेन्ट भी किया था ...
    शायद पोस्ट नहीं हो पाया ...

    प्रकृति सुंदरी सत्य बता दे
    किससे पाया इतना प्यार ?

    ये प्रकृति सुंदर कहीं वो तो नहीं ....?

    ReplyDelete
  28. अब मैं क्या बोलूँ...सबने जो लिखा वही मैं भी कहूँगी...खासकर अनुलता की बातः)

    ReplyDelete
  29. बहुत सुन्दर !

    ReplyDelete
  30. प्रकृति सुंदरी सत्य बता दे
    किससे पाया इतना प्यार ?
    ....कवि मनसे...इतना प्यार केवल एक कवि के मन में ही हो सकता है ....तभी तो चहुँ और दिखाई दे रहा है ..बेहद सुन्दर...

    ReplyDelete
  31. वाह, क्या बात है!

    ReplyDelete
  32. बहुत ख़ूबसूरत कविता .....इतने सुन्दर मोती जैसे और नेह से ओतप्रोत शब्द .... :)

    ReplyDelete
  33. प्रकृति की लीला अपरंपार है। जहां उसकी हृदयहीनता झकझोर देती है वहीं उसका स्नेह देख बुद्धि चकरा जाती है। खूबसूरती से अंतिम बंद में आपने कविता में जान डाल दी है।..बधाई।

    ReplyDelete