Monday, April 2, 2012

सुनो ! मत छेड़ो सुख तान

मधुर  सौख्य के विशद भवन में
छिपा हुआ  अवसान

निर्झर के स्वच्छंद गान में,
छिपी हुई वह साध

जिसे व्यक्त करते ही उसको,
लग जाता अपराध
इस से ही  वह अविकल प्रतिपल
गाता दुःख के गान !   सुनो मत छेड़ो सुख तान

महा सिन्धु के तुमुल नाद में,

है भीषण उन्माद
जिसकी लहरों के कम्पन में,
है अतीत की याद
तड़प तड़प इससे  रह जाते
 उसके कोमल प्रान!  सुनो मत छेड़ो सुख तान


कोकिल के गानों पर ,
बंधन के है पहरेदार
कूक कूक कर केवल बसंत में ,
रह जाती मन मार
अपने गीत -कोष से
जग को देती दुःख का दान ! सुनो मत छेड़ो सुख तान

हम पर भी बंधन का पहरा
रहता है दिन रात
अभी ना आया है जीवन का
सुखमय स्वर्ण प्रभात
इसीलिए अपने गीतों में
रहता दुःख का भान! सुनो मत छेड़ो सुख तान







34 comments:

  1. बंधन ज़्यादातर दुख: का ही संवाहक होता है ... बहुत सुंदर रचना ...

    सुनो मत छेड़ो .... हर छंद के बाद इस पंक्ति को यदि पूरा लिखा जाए तो पढ़ने में गेयता रहेगी ...
    सुनो मत छेड़ो सुख तान

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  2. न छेड़ते छेड़ते भी इतना छेड़ गये। :)

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    1. बहुत सुन्दर सृजन , बधाई.

      कृपया मेरे ब्लॉग "meri kavitayen"पर भी पधारने का कष्ट करें, आभारी होऊंगा.

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  3. टिप्पणी संख्या 2: बड़ी ही भावपूर्ण कविता है। अद्भुत टाइप। कलाजयी भी।

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  4. महा सिन्धु के तुमुल नाद में,
    है भीषण उन्माद
    जिसकी लहरों के कम्पन में,
    है अतीत की याद
    तड़प तड़प इससे रह जाते
    उसके कोमल प्रान! सुनो मत छेड़ो सुख तान
    bahut badhiya

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  5. भईया अब तो आप कविता संग्रह छपवा लो छायावाद के चार नामो के आगे एक नाम और जुड़ जाएगा.
    मुझे हमेशा की तरह प्रसाद और दिनकर याद आते है आप को पढ़ कर

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  6. आज कविता और पाठक के बीच दूरी बढ़ गई है। संवादहीनता के इस माहौल में आपकी यह कविता इस दूरी को पाटने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना जा सकता है।
    कविता इतनी मार्मिक है कि सीधे दिल तक उतर आती है। आपकी इस रचना में मानव / प्रकृति के सूक्ष्म किंतु व्यक्त सौंदर्य में आध्यात्मिक छाप है।

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  7. @ मधुर सौख्य के विशद भवन में
    छिपा हुआ अवसान

    अब उस अवसान को विदा कर दीजिये आशीष जी ....
    और कविता तो हर बार की तरह लाजवाब ....

    और अब तो आप कविता संग्रह छपवा hi lijiye ....:))

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  8. बहुत बहुत खूबसूरत..................................
    हरकीरत जी की बात मान लें......और एक पुस्तक की एडवांस बुकिंग कर लीजिए.
    शुभकामनाएँ :-)

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  9. डॉ पवन, हीर और अनु की बात पर अमल किया जाये..तुरंत ..:).
    वैसे बहुत ही भावपूर्ण और गेय कविता है.बड़ी मुश्किल से मिलती हैं आजकल ऐसी कविता पढ़ने को.

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  10. कोकिल के गानों पर ,
    बंधन के है पहरेदार
    कूक कूक कर केवल बसंत में ,
    रह जाती मन मार

    मर्मस्पर्शी सशक्त व्यथा .....अद्भुत ...अनुपम ....
    कोयल की कू की तरह सीधे ह्रदय तक पहुँच रहा है काव्य .....
    बहुत सुंदर रचना ...

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  11. कोकिल के गानों पर ,
    बंधन के है पहरेदार
    कूक कूक कर केवल बसंत में ,
    रह जाती मन मार
    अपने गीत -कोष से
    जग को देती दुःख का दान ! सुनो मत छेड़ो सुख तान

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  12. हम पर भी बंधन का पहरा
    रहता है दिन रात
    अभी ना आया है जीवन का
    सुखमय स्वर्ण प्रभात
    इसीलिए अपने गीतों में
    रहता दुःख का भान! सुनो मत छेड़ो सुख तान
    अच्छा?? हमने तो सुना था कि महिलाओं पर बंधन का पहरा रहता था... :) वैसे कविता बहुत सुन्दर है. बधाई.

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    1. वन्दना जी भावनाओं के बन्धन से तो कोई भी परे नही, और शायद ये बन्धन ही हमारे जीवन का आधार होते हैं....

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  13. इतना सुन्दर तान जब छेड़ा जाय तो सुनना ही नहीं गुनना भी चाहिए .जो दुःख को दूर कर दे .कोमल व अति सुन्दर गान .

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  14. सुख दुख दोनों आते मन में, छेड़ो कोई गान..

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  15. बहुत ही गहन किन्तु बेहद खूबसूरत भावपूर्ण अभिव्यक्ति....

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  16. बहुत बढ़िया रचना,सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन पोस्ट,....

    MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: मै तेरा घर बसाने आई हूँ...

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  17. आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 05-04-2012 को यहाँ भी है

    .... आज की नयी पुरानी हलचल में ......सुनो मत छेड़ो सुख तान .

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  18. भावपूर्ण अभिव्यक्ति..बधाई...MY RECENT POSTtalash or sukun.

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  19. bhavpoorn sundar rachna..
    Welcome To New Post:
    बलि

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  20. महा सिन्धु के तुमुल नाद में,
    है भीषण उन्माद
    जिसकी लहरों के कम्पन में,
    है अतीत की याद
    तड़प तड़प इससे रह जाते
    उसके कोमल प्रान! सुनो मत छेड़ो सुख तान
    बहुत सुन्दर ...अंतस को छूती रचना ...पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ आशीषजी

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  21. हम पर भी बंधन का पहरा
    रहता है दिन रात
    अभी ना आया है जीवन का
    सुखमय स्वर्ण प्रभात
    इसीलिए अपने गीतों में
    रहता दुःख का भान! सुनो मत छेड़ो सुख तान ...

    इस बंधन में सुख रो खुद ही ढूँढना है .... प्रभात भी खुद ही लानी है ... दुःख के भान से बाहर स्वयं ही आना है ...
    बहुत सुन्दर शब्द संयिजन से बनी अप्रतिम रचना ...

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  22. हम पर भी बंधन का पहरा
    रहता है दिन रात
    अभी ना आया है जीवन का
    सुखमय स्वर्ण प्रभात
    इसीलिए अपने गीतों में
    रहता दुःख का भान!

    कौन जहाँ में दुःख से अलग,किसे है भाया जीवन स्वच्छंद , वही रह सका अन्न्त काल तक, जिसने गाये दर्द में भी खुशियों के छंद

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  23. महा सिन्धु के तुमुल नाद में,
    है भीषण उन्माद
    जिसकी लहरों के कम्पन में,
    है अतीत की याद
    बहुत सुन्दर

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  24. कोकिल के गानों पर ,
    बंधन के है पहरेदार
    कूक कूक कर केवल बसंत में ,
    रह जाती मन मार
    अपने गीत -कोष से
    जग को देती दुःख का दान ! सुनो मत छेड़ो सुख तान

    सुंदर शब्दों के चयन से कविता का भावसौंदर्य दुगुना हो गया है।

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  25. बहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुति । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

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  26. मनोभावों को बेहद खूबसूरती से पिरोया है आपने....... हार्दिक बधाई।

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  27. are baap re!!! bahut kathin kavita likhte hain aap to!!! main hindi men kaise comment likh saktee hoon?

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    1. विनीता जी ,हिंदी में लिखने के लिए आप जी मेल की सहायता ले सकती है या फिर मेरे ब्लॉग पर एक सॉफ्टवेर है जहा लिखा है लिखिए अपनी भाषा में , वहां अगर आप रोमन में टाइप करोगी तो देवनागरी में बदल जायेगा . आभार आपकी टिपण्णी के लिए .

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  28. सुख दुःख की तान और कविता का इतना सुन्दर गान!
    अनुपम कविता!

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  29. मधुर सौख्य के विशद भवन में
    छिपा हुआ अवसान

    निर्झर के स्वच्छंद गान में,
    छिपी हुई वह साध
    जिसे व्यक्त करते ही उसको,
    लग जाता अपराध
    इस से ही वह अविकल प्रतिपल
    गाता दुःख के गान !

    सुनो मत छेड़ो सुख तान

    वाऽह ! क्या बात है !

    आशीष जी
    बहुत उत्कृष्ट गीत है…

    सच कहूं तो… लगता ही नहीं कि किसी ब्लॉगर कवि का सृजन है …
    :)
    खूबसूरत रचना !

    …आपकी लेखनी से सुंदर रचनाओं का सृजन ऐसे ही होता रहे, यही कामना है …
    शुभकामनाओं सहित…

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  30. उत्कृष्ट रचना आशीष जी ... यहां खींच लायी :)

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  31. उत्कृष्ट रचना आशीष जी ... यहां खींच लायी :)

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