छल छल करती सरिता में क्यों
छलका करुण प्रवाह?
निर्झर क्यों झर झर बिखराता
नयन नीर का वाह ?
लतिका के नत आनन पर क्यों ?
झलका अन्तर्दाह ?
तरु क्यूँ पत्र -अधर -कम्पन से
भरते नीरव आह ?
सांध्य गगन की मलिनाकृति से
क्यों प्रकटित अवसाद ?
श्यामल भूधर झींगुर रव मिष
क्यों करते दुःख नाद ?
ह्रदय की पीड़ा से उपजे प्रश्नों के उत्तर कौन देगा आखिर ??
ReplyDeleteबेहतरीन कविता !!
अनु
bahut sundar kavita
ReplyDeleteभव्य और आकर्षक चेतनामयी प्रकृति के पीड़ित ह्रदय का जीवंत चित्रण ..... एक -एक शब्द जैसे दिल में उतर गया ... बधाई .. :)
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteक्या कहने ... अद्भुत
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता ......
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी भाव ।
ReplyDeleteअसीम वेदना झलकाती उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ....!!संग्रहणीय रचना है ....आशीष भाई ...!!बहुत सुंदर
वाह ...उम्दा
ReplyDeleteकुछ प्रश्नों के उत्तर कभी नहीं मिलते
सुन्दर सृजन. अच्छा लगा आपकी कविता पढकर.
ReplyDeleteअति सुंदर ..... प्रवाहमयी भाव
ReplyDeleteजब निर्झर झरता रहता है तो
ReplyDeleteये ' क्यों '' ही थामे भी रहता है..
इतने सवाल???????????
ReplyDeleteप्रकृति का मानवीकरण
ReplyDeleteगूढ़ प्रश्न, बहुत सुन्दर
ReplyDeleteवाह, खूबसूरत,लाजवाब रचना.
ReplyDeleteप्रवाहमय ... कल कल बहती हुई सी ... सुन्दर रचना ...
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