क्या लिखूं ? जो गूढ़ हो .
ज्ञान पर आरूढ़ हो .
पुष्टि मांगती है मेधा
सिद्ध हो या मूढ़ हो .
क्या लिखूं ? जो छंद हो
सद चित हो, आनंद हो
मन पे ऐसा हो असर
ज्यों जीभ पर मकरंद हो ,
क्या लिखूं ? जो राग हो .
विराग हो ,अनुराग हो
कौन्तेय जैसा धर्मधारी
कृष्ण सा बीतराग हो .
क्या लिखूं ? जो स्वस्ति हो .
हो भक्ति या , विरक्ति हो
प्रदक्षिणा हो ज्ञान की
नैराश्य , न आसक्ति हो .
.
वह लिखूं जो सुविचार हो
सगुण और निर्विकार हो
द्वेष दम्भ अतिरंजित न हो
हो न्यून पर ओंकार हो .
likhiye , likhiye bas likhiye .. aisa hi sundar sundar :)
ReplyDeleteआपके लिखे को हम बस पढ़ सकते हैं, टिप्पणी हमारे बूते नहीं :)
ReplyDeleteitna to likh diya.....
ReplyDeleteaur bhi kuch likhna hain kya baaki....:)
main mukesh ji ki baat se sehmat hun
क्या लिखूँ , जो टिपप्णी हो
ReplyDeleteसार्थक और संक्षिप्त हो
मैं वह लिखूँ ,जो मनभाई हो
या मेरे मन में आयी हो
बस यही बताओ ,जब पहले ही
इतनी अच्छी लिखी गयी हो
मैं क्या लिखूँ ,क्या - क्या लिखूँ :)
बहुत ही खुबसूरत ख्यालो से रची रचना......
ReplyDeleteहमेशा की तरह बेजोड़ अभिव्यक्ति
ReplyDeleteस्वस्ति व संपूर्णता लिए सुवासित होते सगुण सुविचार एवं सद्भाव ....!!सुंदर संरचना ....!!
ReplyDeleteनमन आपकी लेखनी को .आप लिखिए बस हम पढ़ते रहे
ReplyDeleteसही ही कहा है ....कि क्या लिखूँ ...
ReplyDeleteऐसी कोई सटीक टिपण्णी नहीं जो ..अभी की जा सके
बेजोड लेखनी ...बहुत खूब
जब त्रिपथगा स्याही बनके लेखनी में जा समाये
ReplyDeleteजब कोई ध्रुव तारा तुमको आके खुद राहें सुझाये
सोचना क्या चाँदनी जब कागज़ों पर फैल जाए
जो लिखोगे शुभ ही होगा व्यर्थ संशय मन में आये
बहुत ही सुन्दर छंदबद्ध रचना है ....... शुभकामनाएं
ReplyDeleteजो चाहे लिखिए....आपकी लेखनी में शहद भरा है...मिठास से इतर कुछ न लिखाया जाएगा.....
ReplyDeleteअनु
वीणापाणी के आशीष से
ReplyDeleteगर्वित सदा ये शीश है
लिखा वही जो अशेष है
बोलो प्रश्न क्यूँ फिर शेष है ?
लिखते रहिये और हम सब के मनोमस्तिष्क को तृप्त करते रहिये… स्नेहाशीष भाई
वाह!
ReplyDeletehttp://hindibloggerscaupala.blogspot.in/अंक ४१ शुक्रवारीय चौपाल में आपकी रचना को शामिल किया गया हैं कृपया अवलोकन हेतु अवश्य पधारे ..धन्यवाद
ReplyDeleteवह लिखूं जो सुविचार हो !
ReplyDeleteउम्दा विचार !
आशीष बहुत सुन्दर लिखते हो ...कहती तो अनुज हूँ ..पर तुम्हारे लेखन के आगे नत मस्तक हूँ...!!सच...!!!!
ReplyDeleteकथ्य, शिल्प, भाव, लय ... सभी कुछ इतना लाजवाब की बस ... एक ही भाव अद्वितीय ...
ReplyDeleteइस ओंकार का गूंज रहा है नाद..
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