कही अतुल जलभृत वरुणालय
गर्जन करे महान
कही एक जल कण भी दुर्लभ
भूमि बालू की खान
उन्नत उपल समूह समावृत
शैल श्रेणी एकत्र
शिला सकल से शून्य धान्यमय
विस्तृत भू अन्यत्र
एक भाग को दिनकर किरणे
रखती उज्जवल उग्र
अपर भाग को मधुर सुधाकर
रखता शांत समग्र
निराधार नभ में अनगिनती
लटके लोक विशाल
निश्चित गति फिर भी है उनकी
क्रम से सीमित काल
कारण सबके पंचभूत ही
भिन्न कार्य का रूप
एक जाति में ही भिन्नाकृति
मिलता नहीं स्वरुप
लेकर एक तुच्छ कीट से
मदोन्मत्त मातंग
नियमित एक नियम से सारे
दिखता कही न भंग
कैसी चतुर कलम से निकला
यह क्रीडामय चित्र
विश्वनियन्ता ! अहो बुद्धि से
परे विश्व वैचित्र्य.
bada hi sundar chitran .....nabh aur dhara ka....:)
ReplyDeleteकहीं प्रचुरता और कहीं अभाव ... फिर भी हर जगह जीवन है , सौंदर्य है ... और कविता है ... और कवि की नज़र से कुछ नहीं बचता .. बहुत सुन्दर लिखा ... :)....
ReplyDeleteलेकर एक तुच्छ कीट से
ReplyDeleteमदोन्मत्त मातंग
नियमित एक नियम से सारे
दिखता कही न भंग
........आह अति सुन्दर ..छायावादी युग का भ्रमण कराती सुन्दर रचना !!
बहुत ही अच्छा लगा ... जी...
ReplyDeleteवाह.....
ReplyDeleteकितना सुन्दर चित्रण.......लगता नहीं कोई आजकल के कवि को पढ़ रहे हैं.
वेदों पुराणों सा लेखन है आपका...
too good!!!
अनु
उत्साहवर्धन के लिए आभार आपका .
Deleteइसको अच्छा कहते हैं :)
ReplyDeleteआपके पास ज्ञान की कमी है .........\
ये बेहद अच्छा है ॥ !!
काश !!
ऐसा ही अच्छा हम भी लिख पाते :)
भैया जी :)
खूबसूरत प्रस्तुति
ReplyDeleteकहीं लेखनी सजा रही सुंदर सुंदर शब्द
ReplyDeleteकहीं सोच सोच भी न निकले एक मनोरम वर्णः)
कैसी चतुर कलम से निकला
ReplyDeleteयह क्रीडामय चित्र
विश्वनियन्ता ! अहो बुद्धि से
परे विश्व वैचित्र्य.
अद्भुत चिंतन शैली -वाह !
नई पोस्ट लोकतंत्र -स्तम्भ
kya kahen ... ham to nishabdh hain .
ReplyDeleteबहुत सही आशीष .....प्रकृति के नियम कभी नहीं बदलते...अगर बदल जाएं तो हाहाकार हो जाये .....क्यों नहीं मनुष्य उसका अनुसरण करता ...और हाँ बहोत सुन्दर लिखा है आपने .....:)
ReplyDeleteउत्कृष्ट रचना …सुन्दर तथा शुद्ध शब्दों में अपनी भावनाओं का चित्रण आपने बहुत ही अच्छे ढंग से किया है आपने… बधाई
ReplyDeleteगहराई लिए है आपका लेखन ..... अति सुंदर
ReplyDeleteविश्व मे रचा बसा वैचित्र कभी कभी आश्चर्यचकित कर देता है .....और आपकी इस सुंदर रचना के लिए जैसे शब्द कम पड़ रहे हैं .....!!!बहुत सुंदर रचना ...!!
ReplyDeleteEk ki kalam ne brahmand gadha,aur doosare ki kalam ne itani sunder kavita... Poora brahmand aur usaka dainandin saamne ghoom gaya... Sachitra si bhavpoorna prastuti
ReplyDelete