आजकल कुछ व्यावसायिक व्यस्तता इतनी बढ़ गयी है की कुछ सोचने और लिखने का समय नहीं निकाल पा रहा हूँ. उम्मीद है आपका लोगों का अनुराग बना रहेगा . अभी कुछ दिन पहले मेरी माताश्री जो हिंदी में परास्नातक और डोक्टोरेट है उनका एक पत्र मेरे हाथ लगा जो उन्होंने मेरी अग्रजा को लिखा था जब वो उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका गयी . उनकी लिखी वो पंक्तिया आप सबसे बांटकर मुझे अच्छा महसूस हो रहा है .उम्मीद है आप गुनीजनो को पसंद आएगी .
अरे अभी तक तुम यही हो ?
यह तो आगे बढ़ने का वक्त है
जहाज में चढ़ने का वक्त है
मत भूलो तुम्हारी शिराओ में मेरा रक्त है
मस्तूल तन चुके है बहती बयार से
सब थक गए है तेरे इंतजार से
मेरा आशीर्वाद तुम स्वीकार करना
जाते जाते मेरी बातें याद रखना
भाव मित्रता का रखना , ना होने देना उसमे अति
सच्चे मित्र पा जाओ तो दिल से रखना वो संगति
हर अनजाने का हाथ थामने में ना समय गवाना
खुद किसी से निष्प्रयोजन ना ही झगड़ जाना
ध्यान से सबको सुनना पर, उपदेश देना कम
राय सबकी सुनना पर. खुद के निर्णय में थोडा थम
तड़क भड़क से दूर रहना, नहीं बढती इनसे शान
सीधी और सरल जिंदगी से, मिलती जीवन की पहचान
मर्यादा में ही रहना, चाहे खाओ घास फूस
जीवन भर अपने प्रति ,अगर तुम सच्ची रहोगे
कभी किसी से झूठे पन का, बोझा नहीं सहोगे
तुम चाँद सी ही रहोगी , चाहे फाग हो या पूस
तुम प्रखर हो उदात्त हो,एक हो घणो में
पर एक माँ के ह्रदय से निकली उक्त पंक्तिया
अपनी लाडली से बिछड़ने पर हुई रिक्तियां
शुकून दे सकेगी शायद विछोह के इन क्षणों में
अरे अभी तक तुम यही हो ?
यह तो आगे बढ़ने का वक्त है
जहाज में चढ़ने का वक्त है
मत भूलो तुम्हारी शिराओ में मेरा रक्त है
मस्तूल तन चुके है बहती बयार से
सब थक गए है तेरे इंतजार से
मेरा आशीर्वाद तुम स्वीकार करना
जाते जाते मेरी बातें याद रखना
भाव मित्रता का रखना , ना होने देना उसमे अति
सच्चे मित्र पा जाओ तो दिल से रखना वो संगति
हर अनजाने का हाथ थामने में ना समय गवाना
खुद किसी से निष्प्रयोजन ना ही झगड़ जाना
ध्यान से सबको सुनना पर, उपदेश देना कम
राय सबकी सुनना पर. खुद के निर्णय में थोडा थम
तड़क भड़क से दूर रहना, नहीं बढती इनसे शान
सीधी और सरल जिंदगी से, मिलती जीवन की पहचान
मर्यादा में ही रहना, चाहे खाओ घास फूस
जीवन भर अपने प्रति ,अगर तुम सच्ची रहोगे
कभी किसी से झूठे पन का, बोझा नहीं सहोगे
तुम चाँद सी ही रहोगी , चाहे फाग हो या पूस
तुम प्रखर हो उदात्त हो,एक हो घणो में
पर एक माँ के ह्रदय से निकली उक्त पंक्तिया
अपनी लाडली से बिछड़ने पर हुई रिक्तियां
शुकून दे सकेगी शायद विछोह के इन क्षणों में
माँ की सीख अनमोल है
ReplyDeleteमाँ प्रथम और अनंतिम गुरु है
माँ तुझे प्रणाम
होनहार बच्चों के योग्य मां बाप अपने जीवन के अनुभवों का निचोड़ ऐसे ही वक्त और पंक्तियों में व्यक्त करते हैं --
ReplyDelete.
ReplyDeleteध्यान से सबको सुनना पर, उपदेश देना कम
राय सबकी सुनना पर. खुद के निर्णय में थोडा थम
तड़क भड़क से दूर रहना, नहीं बढती इनसे शान
सीधी और सरल जिंदगी से, मिलती जीवन की पहचान
बेहतरीन रचना । एक माँ ही इतनी सुन्दर सीख दे सकती है । माताजी कों प्रणाम ।
.
ध्यान से सबको सुनना पर, उपदेश देना कम
ReplyDeleteराय सबकी सुनना पर. खुद के निर्णय में थोडा थम
तड़क भड़क से दूर रहना, नहीं बढती इनसे शान
सीधी और सरल जिंदगी से, मिलती जीवन की पहचान
माँ की बहुत अनुभवी सीख है ....और भी लाभ उठाएंगे इस सीख से ...अच्छी प्रस्तुति
bahut achhi sikh di hai maa ne
ReplyDeletemaa ka dil hota hi yesa hai
...
हम्म मतलब आपमें काव्य गुण वंशानुगत हैं . माताजी ने कितनी खूबसूरती से सटीक और व्यावहारिक सीख शब्दों में उतारी है.शुक्रिया इस उच्च कोटि की रचना को यहाँ हमसब के साथ बांटने का.और माताजी को प्रणाम. .
ReplyDeleteध्यान से सबको सुनना पर, उपदेश देना कम
ReplyDeleteराय सबकी सुनना पर. खुद के निर्णय में थोडा थम
तड़क भड़क से दूर रहना, नहीं बढती इनसे शान
सीधी और सरल जिंदगी से, मिलती जीवन की पहचान
yahi seekh sanjivni hai
ध्यान से सबको सुनना पर, उपदेश देना कम
ReplyDeleteराय सबकी सुनना पर. खुद के निर्णय में थोडा थम
तड़क भड़क से दूर रहना, नहीं बढती इनसे शान
सीधी और सरल जिंदगी से, मिलती जीवन की पहचान
माँ हमेशा अपने बच्चों को अच्छा ही सिखाती है , बशर्ते की उसकी सोच इस माँ जैसी हो, नहीं तो बच्चों को बिगाड़ने में भी माँ कभी कभी सहभागी होती है.
माँ को मेरा सादर नमन.
वाह!
ReplyDeleteयह आशीष बना रहे।
आशा और विश्वास से लबरेज़ रचना पढकर आत्मिक सुख मिला। हम जो हैं, जैसे भी हैं इन्ही की अशीष और त्याग के बदौलत हैं।
ध्यान से सबको सुनना पर, उपदेश देना कम
ReplyDeleteराय सबकी सुनना पर. खुद के निर्णय में थोडा थम
तड़क भड़क से दूर रहना, नहीं बढती इनसे शान
सीधी और सरल जिंदगी से, मिलती जीवन की पहचान
सदैव प्रासंगिक रहने वाली पंक्तियाँ ..... जो जीवन में सार्थक राह सुझाती हैं..... सुंदर
संग्रहणीय पत्र, नये स्थान पर और नयी परिस्थितियों में यही शब्द संबल होते हैं।
ReplyDeletesuch a valuable letter, infact its a jwell,
ReplyDeletejust fantastic !
maat shree ko pranam
aapko dhanye bad itni amulye kriti share karne ke liye
ध्यान से सबको सुनना पर, उपदेश देना कम
ReplyDeleteराय सबकी सुनना पर. खुद के निर्णय में थोडा थम
तड़क भड़क से दूर रहना, नहीं बढती इनसे शान
सीधी और सरल जिंदगी से, मिलती जीवन की पहचान
शायद आपके व्लाग पर पहली बार आया हूँ|इतनी अच्छी शिक्षा एक माँ ही दे सकती है| माँ को नमन और आपको शुभकामनायें!
मर्यादा में ही रहना, चाहे खाओ घास फूस
ReplyDeleteजीवन भर अपने प्रति ,अगर तुम सच्ची रहोगे
कभी किसी से झूठे पन का, बोझा नहीं सहोगे
तुम चाँद सी ही रहोगी , चाहे फाग हो या पूस ....
मां के आशीर्वाद स्वरूप जीवन दर्शन से परिपूर्ण मातुश्री की सुंदर रचना के लिए बधाई।
ध्यान से सबको सुनना पर, उपदेश देना कम
ReplyDeleteराय सबकी सुनना पर. खुद के निर्णय में थोडा थम ...
कुछ पंक्तियों में जीवन का सार लिखा है ... गहरी सूझ का परिचय दिया है ...
बहुत अच्छी लगी सब बातें ..
माँ के ये अनमोल शब्द गाँठ बाँधने वाले हैं .....
ReplyDeleteये ख़त तो आपकी अग्रजा के पास होना चाहिए था आपके पास कैसे ....?
माता जी को नमन .....
कुछ और लेखनी हो तो उनकी डालियेगा ब्लॉग पे ......
आप कुशल तो हैं ....?
और बेटी भी .....?
सुन्दर सीख। अच्छी लगी यह कविता। माताजी की और कवितायें पढ़वाओ!
ReplyDeleteअनुराग बनाये रहेंगे चिन्ता नको। नौकरी को बजा दो फ़िर आओ कविताई के दंगल में।
माँ का स्नेह पत्र पढ़ा, आप दोनों खुशकिस्मत हो ! हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDelete