इन दिनों कुछ मौसम बदला है
कलतक चुभा करती थीं ये खिड़कियाँ
अब नज़रें पीछा करतीं हैं
मुक्त गगन के उड़ते पंछी
इन दिनों कुछ तो बदला है
सुगंध हवाओ में रची बसी
खिड़की की बंद कगारों से
टकराकर एहसास भी लौट जाते थे
सुकून कही किसी कोने में दुबककर
अतृप्त से मन में खो जाते थे
निरभ्र आकाश अहर्निश
मेरे खालीपन का द्योतक था
इस लौकिक काया में कुछ भी
अब्दों से घटा ना कुछ रोचक था
सजल नैनो में तिमिर था छाया
स्पंदित होती थी व्यथा
मन के अरण्य में विकलता
संज्ञाशून्य विचरती थी यथा
कल हमने खिड़की के पट खोले
विभ्रम की घडिया अतीत हुई
कलरव इस सांध्य मलय का
मलयानिल मकरंद घोले
अब पट रजनी के भाते है
प्रेम- सुतीर्थ स्नान सुहाता है
प्राण पपीहा की सरस ध्वनि
जीवन वर्त्ति सा भाता है ..
कलतक चुभा करती थीं ये खिड़कियाँ
अब नज़रें पीछा करतीं हैं
मुक्त गगन के उड़ते पंछी
इन दिनों कुछ तो बदला है
सुगंध हवाओ में रची बसी
खिड़की की बंद कगारों से
टकराकर एहसास भी लौट जाते थे
सुकून कही किसी कोने में दुबककर
अतृप्त से मन में खो जाते थे
निरभ्र आकाश अहर्निश
मेरे खालीपन का द्योतक था
इस लौकिक काया में कुछ भी
अब्दों से घटा ना कुछ रोचक था
सजल नैनो में तिमिर था छाया
स्पंदित होती थी व्यथा
मन के अरण्य में विकलता
संज्ञाशून्य विचरती थी यथा
कल हमने खिड़की के पट खोले
विभ्रम की घडिया अतीत हुई
कलरव इस सांध्य मलय का
मलयानिल मकरंद घोले
अब पट रजनी के भाते है
प्रेम- सुतीर्थ स्नान सुहाता है
प्राण पपीहा की सरस ध्वनि
जीवन वर्त्ति सा भाता है ..
इस रचना की संवेदना और शिल्पगत सौंदर्य मन को भाव विह्वल कर गए हैं। कविता में मनःस्थिति कौशल के साथ व्यक्त होती है। उदासी का घनत्व कविता में साफ़-साफ़ दीखता है। पर साथ ही अपने को सिरजने की मौन जद्दोजहद को आपने परिचित बिंबों से उतारा है। यह स्पष्ट है कि शिल्प के वैशिष्ट से कविता असाधारण हो गई है।
ReplyDeleteप्राण पपीहा की सरस ध्वनि
ReplyDeleteजीवन वर्त्ति सा भाता है
bahut sunder
..
इन दिनों कुछ मौसम बदला है ... kuch to mann badla hai, badhiyaa
ReplyDeleteसंयोग वियोग के मिश्रित भावों की श्रृंगारिक कविता
ReplyDeleteसबसे पहले तो लौट आने की बधाई ....
ReplyDeleteमनोज जी ने तो सब कुछ कह ही दिया है ....
अद्भुत भाषा विन्यास है आपके पास ....
बहुत ही सशक्त रचना से शुरुआत ....
बधाई स्वीकारें ....
औए ज़िन्दगी में आई इस बदलाहट की
ढेरों मुबारकबाद आपको .....!!
रचना में सुन्दर शब्दों का प्रयोग किया है.
ReplyDeleteमनोज जी ने काफी अच्छी समीक्षा कर दी है
आपको बधाई व शुभ कामनाएं
बहुत सुन्दर सशक्त प्रस्तुति..
ReplyDeleteप्रकृति के अंगों का प्रयोग जीवन के संदर्भों में सुन्दरतम ढंग से।
ReplyDeleteकल हमने खिड़की के पट खोले
ReplyDeleteविभ्रम की घडिया अतीत हुई ...
Let Bygones be bygone !
Start living in present . Each and every moment is precious .
.
सुंदर बिम्ब और उनके साथ बेहतरीन भावों को शाब्दिक अलंकरण के साथ पेश किया है आपने.....
ReplyDeleteशब्दों का सुरुचिपूर्ण प्रयोग ...प्रकृति से लिए बिम्ब ...अतीत से निकल कर सकारात्मकता की ओर बढने का प्रयास ...सब कुछ रचना में दिख रहा है ...बहुत सुन्दर शिल्प है ...अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteशिल्प और कथ्य की बातें तो गुणीजन जाने ..मौसम बदल गया ,भाव बदल गया यकीनन वक्त भी बदलने वाला है.
ReplyDeleteखूबसूरत भाव ,सुन्दर शब्द और सकारात्मक सोच ने बहुत ही सुन्दर बना दिया है कविता को.
मलयानिल मकरंद घोले
ReplyDeleteअब पट रजनी के भाते है
प्रेम- सुतीर्थ स्नान सुहाता है
प्राण पपीहा की सरस ध्वनि
जीवन वर्त्ति सा भाता
touching lines
अब नज़रें पीछा करतीं हैं
ReplyDeleteमुक्त गगन के उड़ते पंछी
इन दिनों कुछ तो बदला है
सुगंध हवाओ में रची बसी
खिड़की की बंद कगारों से
टकराकर एहसास भी लौट जाते थे
सुकून कही किसी कोने में दुबककर
अतृप्त से मन में खो जाते थे
जीवन के अनुभवों के कई रंग हैं।
आपकी इस कविता में आशा के रंग की झलक परिलक्षित हो रही है।
लग रहा है आपने परिवर्तन के युग का वैयक्तिक स्तर पर आभास कर लिया है। साधुवाद।
ReplyDeleteशब्दों का प्रयोग देखने लायक है.क्या बात है.
ReplyDeleteवाह ...बहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्द ।
ReplyDeleteअत्यंत प्रभावशाली एवं मार्मिक ढंग से मनोभावों को आपने अभिव्यक्ति दी है....अभिभूत हो गया मन पढ़कर....
ReplyDeleteसुदर शब्दों का समन्वय भावमयी प्रस्तुति
ReplyDeleteसुन्दर रचना....
ReplyDeleteसही है। अंदाजेबयां बता रहा है - बदले-बदले सरकार नजर आते हैं। :)
ReplyDeleteबहुत सही कहा आपने...बिना पट खोले आप रोशनी से नहीं मिल सकते...
ReplyDeleteइन दिनों कुछ मौसम बदला है
ReplyDeleteकलतक चुभा करती थीं ये खिड़कियाँ ...
सुन्दर और भावपूर्ण रचना । बधाई।
सुंदर रचना ,सब कुछ तो मनोज जी ने कह दिया ,बधाई
ReplyDeleteaashish ji
ReplyDeleteaapki yah rachna itani achhi lagi ki main ise bar -bar padh gai.
shabdo ka adhbhut sangam aapki rachna ki bhavabhivykti ko aur bhi shobhaymaan kar deta hai.
bahut hi man ko gahre chhooti ek jivant prastuti .idhar main lagataar kaffi dino se net par nahi aa
pa rahi hun.thoda swasthy theek nahi chal raha hai.
asha hai aap der se post karne v comment karne par der hone par xhma karenge.
dhanyvaad
poonam
आज दुबारा आपकी रचना खींच लायी...
ReplyDeleteसत्य है ह्रदय द्वार खुल जाए और उसमे कोमल मदिर प्रणय पवन प्राणों तक पहुंचे तो पल में संसार बदल जाता है....
बहुत ही मनमोहक रचना रची है आपने......
सुन्दर और भावपूर्ण रचना । बधाई।
ReplyDeleteमौसम कैसा भी हो बदलता जरुर है ...
ReplyDeleteखिडकियों से लौट आयी सुहानी बहार की बहुत बधाई!
zaandar peshkas
ReplyDeleteshukriya
इन दिनों कुछ मौसम बदला है
ReplyDeleteकलतक चुभा करती थीं ये खिड़कियाँ
अब नज़रें पीछा करतीं हैं
मुक्त गगन के उड़ते पंछी
Bahut khoob!
प्राण पपीहा की सरस ध्वनि
ReplyDeleteजीवन वर्त्ति सा भाता है ..bhut acche se sabdo ko piroya hai apne.... very nice...
बहुत ही बढ़िया सर!
ReplyDeleteसादर
मुग्ध हूँ...
ReplyDeleteबेहद गहन और प्रभावशाली रचना।
ReplyDeleteवाह वाह... खुबसूरत शब्द और भाव संयोजन....
ReplyDeleteमनोहारी रचना...
सादर...