व्यतीत हुए दिन धुर विषाद के
फैला आलोक तिमिर छितराया
प्राची के अरुण मुकुट में
प्रतिबिंबित स्वर्णिम हर्ष की छाया
सुख से सूखे इस जीवन में
शाद्वल सा कुछ स्फुटित हुआ
जीवन पथ के उष्ण शैलों पर
श्यामल तृण सा पनप उठा
जीवन गगरी जो खाली थी
अश्रु- घाट बन गया था तन
विस्मृत सपने फिर सजीव हुए
दिख रहे जुगनू लघु हीरक कण
खिड़की से गोचर नव नभ कानन
रमणीक, आदि कवि के छंद सा
उस दूर क्षितिज में मंथर विचरता
राका का मधु छलकाता आनन
प्रखर चांदनी में विसर रहा मन का अवसाद
सुरभि लहरियों का आलिंगन
कामना स्रोत जगाती है
मन मयूर अह्वलादित, छंट गए प्रमाद .
.
फैला आलोक तिमिर छितराया
प्राची के अरुण मुकुट में
प्रतिबिंबित स्वर्णिम हर्ष की छाया
सुख से सूखे इस जीवन में
शाद्वल सा कुछ स्फुटित हुआ
जीवन पथ के उष्ण शैलों पर
श्यामल तृण सा पनप उठा
जीवन गगरी जो खाली थी
अश्रु- घाट बन गया था तन
विस्मृत सपने फिर सजीव हुए
दिख रहे जुगनू लघु हीरक कण
खिड़की से गोचर नव नभ कानन
रमणीक, आदि कवि के छंद सा
उस दूर क्षितिज में मंथर विचरता
राका का मधु छलकाता आनन
प्रखर चांदनी में विसर रहा मन का अवसाद
सुरभि लहरियों का आलिंगन
कामना स्रोत जगाती है
मन मयूर अह्वलादित, छंट गए प्रमाद .
.
बहुत सुंदर प्रकृति से लेकर उसको जीवन से जोड़ कर जो दर्शन प्रस्तुत किया है वो समझने के लिए दर्शन पढ़ना होगा.
ReplyDeleteअरे वाह! ये तो आशा ही आशा पसरी है सब तरफ़! जय हो!
ReplyDeleteव्यतीत हुए दिन धुर विषाद के
ReplyDeleteफैला आलोक तिमिर छितराया
प्राची के अरुण मुकुट में
प्रतिबिंबित स्वर्णिम हर्ष की छाया
Padhke waqayee laga,jaise sab or komal,sunharee sooraj kee kirane faileen hon!
आनंद आ गया
ReplyDeleteशुद्ध छायावाद परिलक्षित होता है आपकी रचनाओं में
बहुत सुन्दर..प्रकृति का ख़ूबसूरत शब्दचित्र..
ReplyDelete• इस ऊबड़-खाबड़ गद्य कविता समय में आपने अपनी भाषा का माधुर्य और गीतात्मकता को बचाए रखा है।
ReplyDelete• कविता में जीवन की सुगंध, प्रकृति के रूप में प्रकट हुए हैं, और ऐसा लग रहा है कि विचार इस रूप में हैं, जिनमें गुथी जीवन की कडि़यां कानों में स्वर लहरियों की तरह घुलने लगती है। जो चित्र हमारे सामने बना है वह अदम्य साहस और भविष्य को देखने वाली आंखों का है।
विस्मृत सपने फिर सजीव हुए
ReplyDeleteदिख रहे जुगनू लघु हीरक कण
बहुत सुन्दर ...आशा का संचार करती सुन्दर भावाभिव्यक्ति ...
विस्मृत सपने फिर सजीव हुए
ReplyDeleteदिख रहे जुगनू लघु हीरक कण
सुंदर ..सकारात्मक जीवन दर्शन ...
प्रखर चांदनी में विसर रहा मन का अवसाद
ReplyDeleteसुरभि लहरियों का आलिंगन
कामना स्रोत जगाती है
bahut hi badhiyaa
उत्साह के उत्थान को अर्पित शब्दस्तुति।
ReplyDeleteआज बहुत कम ही ब्लॉग है जहाँ पर इस तरह की रचनायें पढने को मिलती है । ये हमे उस समय में ले जाती है , जब रचनाओं का अनुवाद किया जाता था ।
ReplyDeleteजयशंकर प्रसाद जी की शैली के काफी करीब लगी आपके ये रचना ।
आपकी हिंदी पर पकड़ कुछ ज़बरदस्त है. काफी मुश्किल शब्दों का इस्तेमाल नज़र आता है. लिखते अच्छा है.
ReplyDeleteबढ़िया शब्द सामर्थ्य ...शुभकामनायें आपको !!
ReplyDeleteशब्द और भाव साथ साथ थिरकें -तथास्तु !
ReplyDeleteउस दूर क्षितिज में मंथर विचरता
ReplyDeleteराका का मधु छलकाता आनन
प्रखर चांदनी में विसर रहा मन का अवसाद
सुरभि लहरियों का आलिंगन
कामना स्रोत जगाती है
मन मयूर अह्वलादित, छंट गए प्रमाद .
Excellent creation .
Very inspiring lines...
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फैला आलोक तिमिर छितराया ...
ReplyDeleteबधाई इस आलोक की .....
कविता तो बेमिसाल है ही .....
अद्भुत प्रतिभा है आपमें ....
बहुत सुंदर कविता.
ReplyDeleteआशीष जी,
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है आपने। कुछ प्रांजलता का अभाव लगा और साथ ही भाव-भूमि में थोड़ा विखराव सा लगा। लेकिन आपमें काव्य-सृजन की प्रतिभा है। आभार
जीवन पथ के उष्ण शैलों पर
ReplyDeleteश्यामल तृण सा पनप उठा
जीवन गगरी जो खाली थी
अश्रु-घाट बन गया था तन
विस्मृत सपने फिर सजीव हुए
दिख रहे जुगनू लघु हीरक कण
‘तमसो मा ज्योतिर्गमय‘ को प्रतिबिम्बित करती सुगढ़ कविता।
तत्सम शब्दों का कुशल प्रयोग करने में सिद्धहस्त हैं आप।
सुबह की बेला का सजीव चित्रण साढ़े हुए शब्दों में बहुत अच्छा लगा. सुंदर कविता.
ReplyDeleteमनोज भैया और पलाश जी के शब्द दर शब्द मेरे मान लें......
ReplyDeleteअद्वितीय लेखनी है आपकी...ब्लॉग जगत में ऐसा बहुत नहीं मिलता पढने को...
हमारा सौभाग्य है कि आपका लेखन हमें पढने को सुलभ हुआ है...
बहुत बहुत आभार..
सुंदर छन्द बद्ध ... लय मे बँधी ... सुंदर शब्दों से सजित रचना ...
ReplyDeleteचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 15 -03 - 2011
ReplyDeleteको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
सुन्दर शब्दावली, प्राकृतिक बिम्बों का कुशल प्रयोग और भावों की सकारात्मकता ने रचना को बेजोड़ बना दिया है ! इतनी सुन्दर प्रस्तुति के लिये बधाई एवं शुभकामनायें !
ReplyDeleteप्रकृति ने इतने मनोहारी रूप दिखाये तो अवसाद तो छंटना ही था !
ReplyDeleteप्रकृति के मनोहारी रूपों का बहुत सजगता से चित्रण किया है आपने ...थोडा सा गद्य भी झलकता है आपकी कविता में लेकिन भाव में बाधक नहीं ...आपका आभार मेरे ब्लॉग पर आकर उत्साहवर्धन के लिए
ReplyDeleteअश्रु- घाट बन गया था तन
ReplyDeleteविस्मृत सपने फिर सजीव हुए
दिख रहे जुगनू लघु हीरक कण
खिड़की से गोचर नव नभ कानन
भावनाओं का बहुत सुंदर चित्रण . ...बधाई.
क्या बात है क्या बात है ...अच्छा लगता है सकारात्मकता वाले भावों को सुन्दर शब्द संयोजन से सजे देखना.
ReplyDeleteये भाव ये सामर्थ्य बनी रहे ..हेर सारी शुभकामनाएं.इस रंग विरंगी होली की
shukariyaa .....
ReplyDeleteaap bhi OBO ke sadasy baniye n khoob rang jamta hai wahaan ......
बहुत सुन्दर कविता ! उम्दा प्रस्तुती! ! बधाई!
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें!
बहुत ही सुन्दर शब्द रचना ......
ReplyDeleteआपको रंगपर्व होली पर असीम शुभकामनायें !
आपको और समस्त परिवार को होली की हार्दिक बधाई और मंगल कामनाएँ ....
ReplyDeleteहोली की ढेरो शुभकामनायें !
ReplyDeleteशाद्वल सा कुछ स्फुटित हुआ
ReplyDeleteजीवन पथ के उष्ण शैलों पर
श्यामल तृण सा पनप उठा
जीवन गगरी जो खाली थी
अश्रु- घाट बन गया था तन
विस्मृत सपने फिर सजीव हुए
बहुत ही अच्छा लगता है प्रकृति के मनोहारी रूपों का बहुत सजगता से चित्रण और सकारात्मकता वाले भावों को सुन्दर शब्द संयोजन से सजे देखना. होली की ढेरो शुभकामनायें.
प्रकृति के मनोहारी रूपों का बहुत सजगता से चित्रण किया है आपने
ReplyDeleteprasaad ji ki "biti vibhavari, jaag ri!" ka smaran ho aaya....sundar!!
ReplyDelete:)
सुन्दर/सार्थक अभिव्यक्ति
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