Friday, March 11, 2011

दिल के झरोखें से

व्यतीत हुए दिन धुर विषाद के
फैला आलोक तिमिर छितराया
प्राची के अरुण मुकुट में
प्रतिबिंबित स्वर्णिम हर्ष की छाया
सुख से सूखे इस जीवन में
शाद्वल सा कुछ स्फुटित हुआ
 जीवन पथ के उष्ण  शैलों पर
श्यामल तृण सा पनप उठा
जीवन गगरी जो खाली थी
अश्रु- घाट बन गया था तन
विस्मृत सपने फिर सजीव हुए
दिख रहे जुगनू लघु हीरक कण
खिड़की से गोचर  नव नभ कानन
 रमणीक, आदि कवि के छंद सा
उस दूर क्षितिज में मंथर विचरता
राका का मधु छलकाता आनन
प्रखर चांदनी में विसर रहा मन का अवसाद
सुरभि लहरियों का आलिंगन
कामना स्रोत जगाती है
मन मयूर अह्वलादित, छंट गए प्रमाद .









.



37 comments:

  1. बहुत सुंदर प्रकृति से लेकर उसको जीवन से जोड़ कर जो दर्शन प्रस्तुत किया है वो समझने के लिए दर्शन पढ़ना होगा.

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  2. अरे वाह! ये तो आशा ही आशा पसरी है सब तरफ़! जय हो!

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  3. व्यतीत हुए दिन धुर विषाद के
    फैला आलोक तिमिर छितराया
    प्राची के अरुण मुकुट में
    प्रतिबिंबित स्वर्णिम हर्ष की छाया
    Padhke waqayee laga,jaise sab or komal,sunharee sooraj kee kirane faileen hon!

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  4. आनंद आ गया
    शुद्ध छायावाद परिलक्षित होता है आपकी रचनाओं में

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  5. बहुत सुन्दर..प्रकृति का ख़ूबसूरत शब्दचित्र..

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  6. • इस ऊबड़-खाबड़ गद्य कविता समय में आपने अपनी भाषा का माधुर्य और गीतात्मकता को बचाए रखा है।
    • कविता में जीवन की सुगंध, प्रकृ‍ति के रूप में प्रकट हुए हैं, और ऐसा लग रहा है कि विचार इस रूप में हैं, जिनमें गुथी जीवन की कडि़यां कानों में स्‍वर लहरियों की तरह घुलने लगती है। जो चित्र हमारे सामने बना है वह अदम्य साहस और भविष्‍य को देखने वाली आंखों का है।

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  7. विस्मृत सपने फिर सजीव हुए
    दिख रहे जुगनू लघु हीरक कण

    बहुत सुन्दर ...आशा का संचार करती सुन्दर भावाभिव्यक्ति ...

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  8. विस्मृत सपने फिर सजीव हुए
    दिख रहे जुगनू लघु हीरक कण

    सुंदर ..सकारात्मक जीवन दर्शन ...

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  9. प्रखर चांदनी में विसर रहा मन का अवसाद
    सुरभि लहरियों का आलिंगन
    कामना स्रोत जगाती है
    bahut hi badhiyaa

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  10. उत्साह के उत्थान को अर्पित शब्दस्तुति।

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  11. आज बहुत कम ही ब्लॉग है जहाँ पर इस तरह की रचनायें पढने को मिलती है । ये हमे उस समय में ले जाती है , जब रचनाओं का अनुवाद किया जाता था ।
    जयशंकर प्रसाद जी की शैली के काफी करीब लगी आपके ये रचना ।

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  12. आपकी हिंदी पर पकड़ कुछ ज़बरदस्त है. काफी मुश्किल शब्दों का इस्तेमाल नज़र आता है. लिखते अच्छा है.

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  13. बढ़िया शब्द सामर्थ्य ...शुभकामनायें आपको !!

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  14. शब्द और भाव साथ साथ थिरकें -तथास्तु !

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  15. उस दूर क्षितिज में मंथर विचरता
    राका का मधु छलकाता आनन
    प्रखर चांदनी में विसर रहा मन का अवसाद
    सुरभि लहरियों का आलिंगन
    कामना स्रोत जगाती है
    मन मयूर अह्वलादित, छंट गए प्रमाद .

    Excellent creation .

    Very inspiring lines...

    .

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  16. फैला आलोक तिमिर छितराया ...

    बधाई इस आलोक की .....

    कविता तो बेमिसाल है ही .....
    अद्भुत प्रतिभा है आपमें ....

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  17. बहुत सुंदर कविता.

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  18. आशीष जी,
    बहुत अच्छा लिखा है आपने। कुछ प्रांजलता का अभाव लगा और साथ ही भाव-भूमि में थोड़ा विखराव सा लगा। लेकिन आपमें काव्य-सृजन की प्रतिभा है। आभार

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  19. जीवन पथ के उष्ण शैलों पर
    श्यामल तृण सा पनप उठा
    जीवन गगरी जो खाली थी
    अश्रु-घाट बन गया था तन
    विस्मृत सपने फिर सजीव हुए
    दिख रहे जुगनू लघु हीरक कण

    ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय‘ को प्रतिबिम्बित करती सुगढ़ कविता।
    तत्सम शब्दों का कुशल प्रयोग करने में सिद्धहस्त हैं आप।

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  20. सुबह की बेला का सजीव चित्रण साढ़े हुए शब्दों में बहुत अच्छा लगा. सुंदर कविता.

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  21. मनोज भैया और पलाश जी के शब्द दर शब्द मेरे मान लें......

    अद्वितीय लेखनी है आपकी...ब्लॉग जगत में ऐसा बहुत नहीं मिलता पढने को...

    हमारा सौभाग्य है कि आपका लेखन हमें पढने को सुलभ हुआ है...

    बहुत बहुत आभार..

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  22. सुंदर छन्द बद्ध ... लय मे बँधी ... सुंदर शब्दों से सजित रचना ...

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  23. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 15 -03 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.uchcharan.com/

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  24. सुन्दर शब्दावली, प्राकृतिक बिम्बों का कुशल प्रयोग और भावों की सकारात्मकता ने रचना को बेजोड़ बना दिया है ! इतनी सुन्दर प्रस्तुति के लिये बधाई एवं शुभकामनायें !

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  25. प्रकृति ने इतने मनोहारी रूप दिखाये तो अवसाद तो छंटना ही था !

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  26. प्रकृति के मनोहारी रूपों का बहुत सजगता से चित्रण किया है आपने ...थोडा सा गद्य भी झलकता है आपकी कविता में लेकिन भाव में बाधक नहीं ...आपका आभार मेरे ब्लॉग पर आकर उत्साहवर्धन के लिए

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  27. अश्रु- घाट बन गया था तन
    विस्मृत सपने फिर सजीव हुए
    दिख रहे जुगनू लघु हीरक कण
    खिड़की से गोचर नव नभ कानन

    भावनाओं का बहुत सुंदर चित्रण . ...बधाई.

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  28. क्या बात है क्या बात है ...अच्छा लगता है सकारात्मकता वाले भावों को सुन्दर शब्द संयोजन से सजे देखना.
    ये भाव ये सामर्थ्य बनी रहे ..हेर सारी शुभकामनाएं.इस रंग विरंगी होली की

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  29. shukariyaa .....

    aap bhi OBO ke sadasy baniye n khoob rang jamta hai wahaan ......

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  30. बहुत सुन्दर कविता ! उम्दा प्रस्तुती! ! बधाई!
    आपको एवं आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें!

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  31. बहुत ही सुन्दर शब्द रचना ......

    आपको रंगपर्व होली पर असीम शुभकामनायें !

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  32. आपको और समस्त परिवार को होली की हार्दिक बधाई और मंगल कामनाएँ ....

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  33. होली की ढेरो शुभकामनायें !

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  34. शाद्वल सा कुछ स्फुटित हुआ
    जीवन पथ के उष्ण शैलों पर
    श्यामल तृण सा पनप उठा
    जीवन गगरी जो खाली थी
    अश्रु- घाट बन गया था तन
    विस्मृत सपने फिर सजीव हुए

    बहुत ही अच्छा लगता है प्रकृति के मनोहारी रूपों का बहुत सजगता से चित्रण और सकारात्मकता वाले भावों को सुन्दर शब्द संयोजन से सजे देखना. होली की ढेरो शुभकामनायें.

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  35. प्रकृति के मनोहारी रूपों का बहुत सजगता से चित्रण किया है आपने

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  36. prasaad ji ki "biti vibhavari, jaag ri!" ka smaran ho aaya....sundar!!

    :)

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  37. सुन्दर/सार्थक अभिव्यक्ति

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