होली आयी , लोग रंग गए . कोई प्रेम के रंग में , कोई भंग के तरंग में . मेरे एक मित्र है जो पेशे से पत्रकार है उनसे बातचीत के दौरान कुछ हलके फुल्के क्षणों में ये विचार आये तो मैंने सोचा इन्हें कलम बद्ध कर ही लिया जाय . काशी के अस्सी घाट वाला कवि सम्मलेन पर चर्चा हुई . अब आप लोग अनुमान लगा सकते है की कैसा मूड रहा होगा ऐसी परिचर्चा के बाद . अब इसे होली के परिप्रेक्ष्य में निर्मल हास्य की तरह ही लिया जाना चाहिए .
खबर को अख़बार से उड़ाकर कर हम खबरनवीस बन जाते है
बदल थोडा सा कलेवर उसका , ना छपासों के रकीब बन जाते है
अगरचे मिल गया राह में कोई , एक स्वनामधन्य सा पत्रकार
कैसे उसका प्रयोग किया जाय , ये सोच कर होते हम बेकरार
अख़बार ख़बरों का सागर . कोई कहता छलके है गागर
निकल गया उसमे से दो चार बूंद, तो काहे फाटे है बादर
अब हम अगर गोते लगाकर ढूढ़ लाते है, कुछ खोखली सीप
ना जाने क्यू लोग झाँकने लगते है, खाली बोतल में लगा कीप
कल शाम उड़ा ले गया अख़बार की कतरन, हवा का थपेड़ा
जिसे ढूंढने में जाने कितने पापड़ बेले , उसे क्या पता निगोड़ा
लोग कहते है तुलसी ने बाल्मीकि से, विषयवस्तु ले ली थी उधार
हम तो किसी से लेकर पूरा लेख भी . लिखते नहीं किनसे साभार
सर्वाधिकार सुरक्षित है ,लिखने से क्या हम टीपने से बाज आते है?
नक़ल कर मन वीणा के , ना जाने कितने तारो वाले साज बजाते है ..
ये टीपना सर्वत्र है, सार्वभौम है , सत्य के सिवा और कुछ भी नहीं है
कोई अध्यादेश ,करदे हमको इससे वंचित , ऐसा उसमे दम ही नहीं है
खबर को अख़बार से उड़ाकर कर हम खबरनवीस बन जाते है
बदल थोडा सा कलेवर उसका , ना छपासों के रकीब बन जाते है
अगरचे मिल गया राह में कोई , एक स्वनामधन्य सा पत्रकार
कैसे उसका प्रयोग किया जाय , ये सोच कर होते हम बेकरार
अख़बार ख़बरों का सागर . कोई कहता छलके है गागर
निकल गया उसमे से दो चार बूंद, तो काहे फाटे है बादर
अब हम अगर गोते लगाकर ढूढ़ लाते है, कुछ खोखली सीप
ना जाने क्यू लोग झाँकने लगते है, खाली बोतल में लगा कीप
कल शाम उड़ा ले गया अख़बार की कतरन, हवा का थपेड़ा
जिसे ढूंढने में जाने कितने पापड़ बेले , उसे क्या पता निगोड़ा
लोग कहते है तुलसी ने बाल्मीकि से, विषयवस्तु ले ली थी उधार
हम तो किसी से लेकर पूरा लेख भी . लिखते नहीं किनसे साभार
सर्वाधिकार सुरक्षित है ,लिखने से क्या हम टीपने से बाज आते है?
नक़ल कर मन वीणा के , ना जाने कितने तारो वाले साज बजाते है ..
ये टीपना सर्वत्र है, सार्वभौम है , सत्य के सिवा और कुछ भी नहीं है
कोई अध्यादेश ,करदे हमको इससे वंचित , ऐसा उसमे दम ही नहीं है
सत्यम ब्रूयात प्रियं ब्रूयात का समुचित प्रयोग करते हुए सटीक बात कही है
ReplyDeleteव्यंगात्मक आनंद की सीधे निष्पत्ति
हा हा हा हा हा हा ,शानदार लिखा है भाई
ReplyDeleteरेखा श्रीवास्तव जी द्वारा मेल से भेजी गयी टिपण्णी
ReplyDeleteअरे तुम तो हास्य भी लिख लेते हो, वैसे बिल्कुल सच है. ईमानदारी का चोला ओढने वाला कितना ईमानदार है ये तो हम भी जानते हैं और वह भी.
होली पर तुम्हारा मूड बढ़िया लगा. कभी कभी बेमौसम हास्य भी मजा देता है इसलिए होली के अलावा भी लिखो और धीरे से बखिया उधेड़ दो
व्यंग विधा में लिखने की बधाई। बहुत सटीक विश्लेषण है आपका । आनंद आ गया।
ReplyDeleteहा हा हा ..एक दम सटीक और मस्त लिखा है.आपको व्यंग ही लिखना चाहिए.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया.
Ha,ha,ha! Ye bahut badhiya raha!
ReplyDeleteलोग कहते है तुलसी ने बाल्मीकि से, विषयवस्तु ले ली थी उधार
ReplyDeleteहम तो किसी से लेकर पूरा लेख भी . लिखते नहीं किनसे साभार
सर्वाधिकार सुरक्षित है ,लिखने से क्या हम टीपने से बाज आते है?
नक़ल कर मन वीणा के , ना जाने कितने तारो वाले साज बजाते है ..
बहुत खूब कहा....
शानदार व्यंगमय रचना....
भंग के तरंग में आप अगर इतनी गंभीर रचना कर डालते हैं जिसे समझने के लिए एक से अधिक बार पढने की ज़रूरत पड़ती हो, तो ऐसी तरंग में आप हमेशा रहें।
ReplyDeleteमुझे सबसे अच्छी लगी, ये बात, “हम तो किसी से लेकर पूरा लेख भी . लिखते नहीं किनसे साभार”
बहुत ही सटीक, कहाँ किसी में इतनी दम है।
ReplyDeleteयह तो आज की दुनिया का चलन बन गया है , आप लेख की बात कह रहे है ,लोग तो जाने क्या क्या ले लेते है और आभार तो क्या मन मे भी कभी उसके उपकार का अहसास तक नही करते ।
ReplyDeleteहाँ आप अगर गलती से भी कोई गलती कर दे तो फिर देखिये आपके नाम का चर्चा होते समय नही लगेगा ।
आज सिर्फ ब्लाग की दुनिया मे ही नही जिन्दगी के भी अधिकार कहाँ सुरक्षित हैं ?
कुछ गलत लिखा हो तो क्षमाप्रार्थी हूँ ........
bahut badhiyaa bahut hi badhiyaa
ReplyDeleteभंग की तरंग थी या था मन का बवंडर , अक्सर लोग सच बोल कह देते हैं कि हम ज़रा सुरूर में थे .... :):)
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ...अच्छा कटाक्ष है
हा हा हा क्या बात कही है दी ! वो गाना याद आ गया." मुझको यारों माफ़ करना मैं नशे में हूँ :) :)
ReplyDeleteजय हो! जनता की बेहद मांग पर इस तरह की जनता कविता की सर्जना जारी रखें। मजे आ गये जी।
ReplyDeleteऔर ये शिखाजी माफ़ी मांगने के लिये काहे कह रही हैं? अगर कुछ भूल-चूक हो गयी होगी तो बुरा न मानो होली में एडजस्ट की जायेगी। कानपुर में तो आज भी रंग चला।
:)
टीपू सुलतान के वंशजों का गुण गान भी अच्छा रहा !
ReplyDeleteसर्वाधिकार सुरक्षित है ,लिखने से क्या हम टीपने से बाज आते है?
ReplyDeleteनक़ल कर मन वीणा के , ना जाने कितने तारो वाले साज बजाते है ..
सारी व्यथा कथा ही कह डाली आपने ...शब्दों का अद्भुत संयोग है आपकी रचना में ...आपका आभार
अब हम अगर गोते लगाकर ढूढ़ लाते है, कुछ खोखली सीप
ReplyDeleteना जाने क्यू लोग झाँकने लगते है, खाली बोतल में लगा कीप
बहुत बढ़िया ....ज़बरदस्त पंक्तियाँ हैं...
बहुत बढ़िया ...अच्छा कटाक्ष है
ReplyDeleteवाह पहली बार पढ़ा आपको बहुत अच्छा लगा.
ReplyDeleteसुंदर पोस्ट भाई आशीष जी बधाई और शुभकामनाएं |
ReplyDeleteराहत इन्दौरी साहेब का एक शेर याद आ रहा है
ReplyDeleteगज़ल लिखने की क्या जरुरत है
खरीद लायेंगे शेर लिखे लिखाए हुए |
टीपने में भी मजा आता है जी ज्यादा टीपते था हम तो उन्हें बचपन में टीपू सुल्तान कहते थे
अब हम अगर गोते लगाकर ढूढ़ लाते है, कुछ खोखली सीप
ReplyDeleteना जाने क्यू लोग झाँकने लगते है, खाली बोतल में लगा कीप
aashishh ji .bahut hi badhiya kamal ka likhte hain aap to.bilkul sateek aur bynag bhari post .
aakhir haqikat o samne lane ki bhi himmat honi chahiye.har panktiyan sachhai ka aaina dikhati hai.
bahut khoob
dhanyvaad
poonam
कल शाम उड़ा ले गया अख़बार की कतरन, हवा का थपेड़ा
ReplyDeleteजिसे ढूंढने में जाने कितने पापड़ बेले , उसे क्या पता निगोड़ा
सभी शेर एक से बढ़कर एक..... वाह!
सर्वाधिकार सुरक्षित है ,लिखने से क्या हम टीपने से बाज आते है?
ReplyDeleteनक़ल कर मन वीणा के , ना जाने कितने तारो वाले साज बजाते है ।
नए दृष्टिकोण से निहारा है आपने, व्यंग्य की धार काफी तेज है।
वाह ...बहुत खूब कहा है आपने ...लाजवाब प्रस्तुति ।
ReplyDeleteसर्वाधिकार सुरक्षित है ,लिखने से क्या हम टीपने से बाज आते है?
ReplyDeleteनक़ल कर मन वीणा के , ना जाने कितने तारो वाले साज बजाते है ..
आपकी ये पंक्तियाँ तो उस मोहतरमा पर फिट बैठी हैं जो हमारी ग़ज़ल की पंक्तियाँ अपने नाम से छाप
चोरी पे सीनाजोरी कर रही हैं .....
आपकी रचनाएँ दिल में उतरती हैं ....
abhidha mein likha gaya vyangya adhik sashakt hota hai...bilkul thik likha hai...
ReplyDelete:)
Aryaman