Thursday, July 12, 2012

विश्व छला क्यों जाता ?

तारो से बाते करने
हँस तुहिन- बिंदु है आते
पर क्यों प्रभात बेला में
तारे नभ में छिप जाते ?

शशि  अपनी उज्जवलता से
जग उज्ज्वल करने आता
पर काले बादल का दल
क्यों उसको ढकने जाता ?

हँस इन्द्रधनुष अम्बर में
छवि राशि लुटाने आता
पर अपनी सुन्दरता खो
क्यों रो -रोकर मिट जाता

खिल उठते सुमन -सुमन जब
शोभा मय होता उपवन
पर तोड़ लिए जाते क्यों
खिल कर खोते क्यों जीवन ?

दीपक को प्यार जताने
प्रेमी पतंग है जाता
पर हँसते  हँसते उसको
क्यों अपने प्राण चढ़ाता ?

सहृदय जीव  ही आखिर क्यों
तन मन की बलि चढ़ाता
विश्वास शिराओं में गर बहता
फिर  विश्व छला क्यों  जाता ?











24 comments:

  1. क्या पीड़ा बयान की है!

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  2. आये है जीने के लिए
    या मृत्यु के लिए जीते है
    कही मृत्यु तो वही नहीं
    हम जिसको जीवन कहते है.

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  3. जिनके पास सहृदय दिल है, त्याग वही करना जानते हैं। पाषाण हृदय से इसकी उम्मीद नहीं की जा सकती।

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  4. दीपक को प्यार जताने
    प्रेमी पतंग है जाता
    पर हँसते हँसते उसको
    क्यों अपने प्राण चढ़ाता ?
    गहरे प्रश्न हैं ....लेकिन हर जगह त्याग और समर्पण की अभिव्यक्ति हुई है ...!

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  5. कठिन प्रश्न है...
    उत्तर की खोज शायद सभी को है...

    सुन्दर रचना
    अनु

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  6. आपके इस उज्ज्वल काव्य पर कुछ लिख पाना बहुत आसान नहीं है ...वेदना इतनी गहरी है कि अनुभूत करना भी मुश्किल है ...प्रश्न ऐसे हैं जिनका जवाब प्रभु भी नहीं दे सकते ...तभी तो अदृश्य बने रहते हैं ....
    सहृदय जीव ही आखिर क्यों
    तन मन की बलि चढ़ाता
    विश्वास शिराओं में गर बहता
    फिर विश्व छला क्यों जाता ?

    प्रखर ....अद्भुत काव्य ...!!

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  7. तारो से बाते करने
    हँस तुहिन- बिंदु है आते
    पर क्यों प्रभात बेला में
    तारे नभ में छिप जाते ?

    तारों का राज निशा में रहता है
    उषा की किरण के साथ
    वो सूरज को दे देता है

    *****
    शशि अपनी उज्जवलता से
    जग उज्ज्वल करने आता
    पर काले बादल का दल
    क्यों उसको ढकने जाता ?

    चाँदनी ही काफी नहीं है धरती के लिए
    इसी लिए चाँद बादलों को ओढ़ लेता है

    ******

    हँस इन्द्रधनुष अम्बर में
    छवि राशि लुटाने आता
    पर अपनी सुन्दरता खो
    क्यों रो -रोकर मिट जाता

    इंद्र्धनुष एक भ्रम जाल है
    रो कर मिटना ही
    उसके अस्तित्व का कमाल है

    *******

    खिल उठते सुमन -सुमन जब
    शोभा मय होता उपवन
    पर तोड़ लिए जाते क्यों
    खिल कर खोते क्यों जीवन ?

    क्षणिक पल ही जब होता
    पुष्पों का जीवन
    अधिकाधिक प्रसन्नता देने को
    कर देते अपना जीवन अर्पण
    *******

    दीपक को प्यार जताने
    प्रेमी पतंग है जाता
    पर हँसते हँसते उसको
    क्यों अपने प्राण चढ़ाता ?

    प्रेम में पड़ा पतंगा
    प्राण न्योछावर करता है
    प्रेम में समर्पण की सीख
    हर प्राणी को देता है
    ********

    सहृदय जीव ही आखिर क्यों
    तन मन की बलि चढ़ाता
    विश्वास शिराओं में गर बहता
    फिर विश्व छला क्यों जाता ?


    कोमल मन ही
    दूसरों की सोचा करते हैं
    पत्थर भला कब कुछ
    अर्पण करते हैं
    विश्वास की नींव पर ही
    अविश्वास को भी पाते हैं
    बार-बार छले जाने पर भी
    अविश्वास नहीं कर पाते हैं ।


    एक संवेदनशील कवि के मन की पीड़ा को बखूबी लिखा है ... बहुत सुंदर रचना

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    1. क्या बात है संगीता दी , चार -पाँच क्या छः चाँद लगा दिये आपने मेरी साधारण सी कविता में

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    2. अब दी के इस कमेन्ट के बाद क्या बचा लिखने को ??? :(.

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  8. मन को उद्वेलित करने वाली रचना....

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  9. गज़ब के भाव हैं ..और शायद पहली बार मुझे १०० % समझ में आई है आपकी कविता :).
    कई बार पढ़ी. बहुत सुन्दर प्यारी सी कविता..

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  10. गहरे उतरता प्रश्न .....अति सुंदर भाव

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  11. सहृदय जीव ही आखिर क्यों
    तन मन की बलि चढ़ाता
    विश्वास शिराओं में गर बहता
    फिर विश्व छला क्यों जाता ?

    इन प्रश्नों के उत्तर हैं क्या हमारे पास???
    वैसे मैं शिखा जी की बात से १००% सहमत हूँ

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  12. खिल उठते सुमन -सुमन जब
    शोभा मय होता उपवन
    पर तोड़ लिए जाते क्यों
    खिल कर खोते क्यों जीवन ?
    Mit jana hee jeevan ka antim saty hai....bakhoobi bayan kiya hai aapne!

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  13. विश्व छलित है, आत्म ज्वलित है,
    मन की राह कठिनतर होती।

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  14. दीपक को प्यार जताने
    प्रेमी पतंग है जाता
    पर हँसते हँसते उसको
    क्यों अपने प्राण चढ़ाता ?

    शाश्वत प्रश्नों को आपने कविता का सुंदर रूप दिया है।

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  15. सहृदय जीव ही आखिर क्यों
    तन मन की बलि चढ़ाता
    विश्वास शिराओं में गर बहता
    फिर विश्व छला क्यों जाता ? ...

    बहुत खूब ... सार्थक प्रश्न खड़ा करता है ये छंद ... विशवास तो कभी नही रहा इंसानी खून में ... रहा भी तो बस डंडे के जोर पर ही रहा है ... अच्छे दिल वाला ही मरता आया है हमेशा से ... अकाट्य, सत्य कों लिखा है बेहतरीन पंक्तियों में ...

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  16. सहृदय जीव ही आखिर क्यों
    तन मन की बलि चढ़ाता
    विश्वास शिराओं में गर बहता
    फिर विश्व छला क्यों जाता ?

    सही लिखा है आपने और सही प्रश्न उठाया है ...
    सहृदयी ही क्यूँ मरता है ...
    सुंदर रचना !!

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  17. यदि विश्व
    केवल एक ही रंग में समा जाता तो
    कभी कलकल करता सुन्दर काव्य
    कवि-ह्रदय से छलक कर नहीं आता
    और हमें यूँ खींच कर भी नहीं लाता..
    शब्द का अभाव होने पर भी टिप्पणी भी नहीं कराता..

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  18. सहृदय जीव ही आखिर क्यों
    तन मन की बलि चढ़ाता
    विश्वास शिराओं में गर बहता
    फिर विश्व छला क्यों जाता ?
    क्या बात है!! बहुत बाज़िव सवाल हैं आशीष जी.

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  19. सहृदय जीव ही आखिर क्यों
    तन मन की बलि चढ़ाता
    विश्वास शिराओं में गर बहता
    फिर विश्व छला क्यों जाता ?

    बहुत प्यारी और शानदार रचना...:)

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  20. सहृदय जीव ही आखिर क्यों
    तन मन की बलि चढ़ाता
    विश्वास शिराओं में गर बहता
    फिर विश्व छला क्यों जाता ?
    भावमय करते शब्‍दों का संगम ... आभार

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  21. सहृदय जीव ही आखिर क्यों
    तन मन की बलि चढ़ाता
    विश्वास शिराओं में गर बहता
    फिर विश्व छला क्यों जाता ?
    गहन अभिव्यक्ति संवेदना सहित जीवन मूल्यों संग

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  22. सहृदय जीव ही आखिर क्यों
    तन मन की बलि चढ़ाता
    विश्वास शिराओं में गर बहता
    फिर विश्व छला क्यों जाता ? yahi swaal aham hai ...aapke chune shabd bahut hi badhiya lage mujhe ...

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