सुनो जी ! स्वप्न लोक में आज
दिखा मुझे सरोवर एक महान
देख था गगन रहा निज रूप
उसी में कर दर्पण का भान
नील थी स्वच्छ वारि की राशि
उदित था उस पार मिथुन मराल
पंख उन दोनों के स्वर्णाभ
कान्ति की किरणे रहे उछाल
यथा पावस -जलदो से मुक्त
नीला नभ -मंडल होवे शांत
अचानक प्रकटित हो कर साथ
दिखे युग शरद -शर्वरी -कान्त
हंस था खोज रहा आहार
तीव्रतम क्षुधा जनित था त्रास
किन्तु सुँदर सर मौक्तिक हीन
निरर्थक था सारा आयास
इसी क्रम में कुछ बीता काल
कंठ गत हुए हंस के प्राण
अर्ध मृत प्रियतम दशा निहार
हंसिनी रोई प्रेम निधान
विलग वह विन्दु विन्दु नयनाम्बु
पतित होता था एक समान
रश्मि-रवि की मिल कर तत्काल
बनाती उसको आभावान
हंस ने खोले मुकुलित नेत्र
दिखे उसको आंसू छविमान
खेलने लगा चंचु-पुट खोल
भ्रान्ति से उसको मुक्ता मान
हुआ नव जीवन का संचार
हुई सब विह्वलता भी दूर
निहित अलि ! कहो कौन सा तत्व ?
प्रेम की बूंदों में भरपूर
दिखा मुझे सरोवर एक महान
देख था गगन रहा निज रूप
उसी में कर दर्पण का भान
नील थी स्वच्छ वारि की राशि
उदित था उस पार मिथुन मराल
पंख उन दोनों के स्वर्णाभ
कान्ति की किरणे रहे उछाल
यथा पावस -जलदो से मुक्त
नीला नभ -मंडल होवे शांत
अचानक प्रकटित हो कर साथ
दिखे युग शरद -शर्वरी -कान्त
हंस था खोज रहा आहार
तीव्रतम क्षुधा जनित था त्रास
किन्तु सुँदर सर मौक्तिक हीन
निरर्थक था सारा आयास
इसी क्रम में कुछ बीता काल
कंठ गत हुए हंस के प्राण
अर्ध मृत प्रियतम दशा निहार
हंसिनी रोई प्रेम निधान
विलग वह विन्दु विन्दु नयनाम्बु
पतित होता था एक समान
रश्मि-रवि की मिल कर तत्काल
बनाती उसको आभावान
हंस ने खोले मुकुलित नेत्र
दिखे उसको आंसू छविमान
खेलने लगा चंचु-पुट खोल
भ्रान्ति से उसको मुक्ता मान
हुआ नव जीवन का संचार
हुई सब विह्वलता भी दूर
निहित अलि ! कहो कौन सा तत्व ?
प्रेम की बूंदों में भरपूर
बहुत सुन्दर......
ReplyDeleteप्रयास किया तो समझ आ ही गयी आपकी सुन्दर रचना.....
कोमल अभिव्यक्ति...
अनु
पहली बात इसे पढ़कर ..
ReplyDeleteहंस ने खोले मुकुलित नेत्र
दिखे उसको आंसू छविमान
खेलने लगा चंचु-पुट खोल
भ्रान्ति से उसको मुक्ता मान
अनायास मन में गुप्त जी की
नाक का मोती अधर की कांति से ..
की याद हो आई। आपकी शैली दिनोंदिन निखार पर है।
दूसरी बात शुष्क मन में बहार लाने वाली रचना है यह। आपका सृजनात्मक कौशल हर पंक्ति में झांकता दिखाई देता है। जिस ओर इशारा है उसको कुछ निश्चित तत्त्वों की सीमा में नहीं बाँधा जा सकता क्योंकि उसकी संभावनाएँ और क्षमताएँ चुकी नहीं हैं।
शिल्प,सृजनात्मक कौशल, भाषा शैली सब उत्कृष्ट है.अब तो मनोज जी ने भी कह दिया.
ReplyDeleteपर आप हमारी बात कब मानेंगे ? कविता के साथ उसका सन्दर्भ देना कब सीखेंगे?.
वैसे कोई नहीं इसी बहाने दिमागी कसरत हो जाती है :)
हंस ने खोले मुकुलित नेत्र
ReplyDeleteदिखे उसको आंसू छविमान
खेलने लगा चंचु-पुट खोल
भ्रान्ति से उसको मुक्ता मान
हुआ नव जीवन का संचार
हुई सब विह्वलता भी दूर
निहित अलि ! कहो कौन सा तत्व ?
प्रेम की बूंदों में भरपूर
सुन्दर सृजन!
अद्भुत लय!
हंस ने खोले मुकुलित नेत्र
ReplyDeleteदिखे उसको आंसू छविमान
खेलने लगा चंचु-पुट खोल
भ्रान्ति से उसको मुक्ता मान
क्या बात है!!! कमाल की फ़ैंट्सी रची है!!! नये से नये प्रतीक चुनना और उनके द्वारा अपनी बात कहना कोई आपसे सीखे.. :) बहुत सुन्दर कविता है आशीष जी.
अद्वितीय कल्पना ..प्रेम का आलौकिक रूप ...और बहुत सुंदर भाव ...हंस पर सवार ..साक्षात माँ सरस्वति के दर्शन ..गुरु पूर्णिमा पर ...!!
ReplyDeleteजब पूरी समझ आयी तब टिप्पणी कर रही हूँ ....!!
कृपया लिखने की रफ्तार बढ़ायें....
शुभकामनायें ...!!
प्रेम का वैशिष्ट जल के किस रुप में छलक आये, क्या पता?
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 05 -07-2012 को यहाँ भी है
ReplyDelete.... आज की नयी पुरानी हलचल में .... अब राज़ छिपा कब तक रखे .
कल्पना लोक में पहुंचा दिया ... हंसनी के आँसू मुक्ता से कम थोड़े ही थे .... बल्कि सच्चे मोती थे ... बहुत सुंदर और प्रेमपगी रचना
ReplyDeleteहर बार की तरह अद्भुत ......!
ReplyDeleteइसे आप किसी पत्रिका को क्यों नहीं भेजते .....?
बड़ी प्यारी रचना ...
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
आशीष जी अवाक हूँ ,हतप्रभ हूँ पहले ठीक से समझ तो लूं
ReplyDeleteभाषा की सुंदरता के जादू से बाहर निकलूं तब तो कुछ कह पाऊंगी ,,
बूँद बूँद अमृत आत्मसात कर रही हूँ
.
.
.
प्रशंसा के लिये उप्युक्त शब्दों का अकाल है इस अल्पज्ञानी के पास ,,क्षमा करें
उसी तत्व की खोज ही अस्तित्व की पुकार है ..प्रेम और विरह का कितना मधुर... स्वप्न-साकार है.. अहो!
ReplyDeleteइसी क्रम में कुछ बीता काल
ReplyDeleteकंठ गत हुए हंस के प्राण
अर्ध मृत प्रियतम दशा निहार
हंसिनी रोई प्रेम निधान..........bahut sundar
अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने इस अभिव्यक्ति में ... आभार
ReplyDeleteहुआ नव जीवन का संचार
ReplyDeleteहुई सब विह्वलता भी दूर
निहित अलि ! कहो कौन सा तत्व ?
प्रेम की बूंदों में भरपूर
...अद्भुत रचना...
अद्भुत ....प्रभावित करते भाव....
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
ReplyDeleteइंडिया दर्पण पर भी पधारेँ।
हुआ नव जीवन का संचार
ReplyDeleteहुई सब विह्वलता भी दूर
निहित अलि ! कहो कौन सा तत्व ?
प्रेम की बूंदों में भरपूर ...
शिप रचने में तो आप का कोई जवाब नहीं है ... और शिल्प उत्तम भाव के साथ हो तो सोने पे सुहागा हो जाता है जैसे की ये रचना ...
अद्भुत सृजन... सुन्दर कल्पना
ReplyDeletemere pass shabd ki kami hai...:)
ReplyDeleteबहुत अदभुत सुन्दर रचना ख़ास कर यह पंक्तियाँ निहित अलि ! कहो कौन सा तत्व ?
ReplyDeleteप्रेम की बूंदों में भरपूर