Saturday, June 23, 2012

.है ये कितनी श्यामलता

है ये कितनी श्यामलता ?
रजनी ये कैसी भोली है , है चन्द्र इसे नित
नित  छलता

रह रह छोड़ इसे शशि जाता
तनिक ना मन में छली लजाता
सहृदयता से रखे ना नाता

अति कुटिल चाल ये चलता
है ये कितनी श्यामलता ?

जब वह निर्मम रहे भवन में
छटा छिटकती इसके तन में
ज्योति जागती है जीवन में

रहती अतिशय है उज्ज्वलता
है ये कितनी श्यामलता ?

तारक-हार ना गए कही है
बिखर गए सब पड़े यही है
कुमुद -नयन भी खुले नहीं है

क्यों है इतनी विह्वलता ?
है ये कितनी श्यामलता ?

रजनि बनो अब तुम भी निष्ठुर
कठिन बनाओ निज कोमल उर
प्रेम पंथ है अतिशय दुस्तर

ग्रह योग कहाँ है मिलता ?
है ये कितनी श्यामलता ?




19 comments:

  1. बहुत रोचक है। मजेदार। लेकिन शीर्षक का कहीं प्रयोग तो किया जाये कविता में भाई। :)

    ReplyDelete
    Replies
    1. हा हा , इसे कहते है खुरपेंच . ये लीजिये बदल दिया

      Delete
  2. चांद में श्यामलता की कल्पना!!! कमाल है! बदमाशी तो है चांद की सच्ची :)
    पहली बार किसी कवि ने चांद की चालाकी पकड़ी होगी!!! बधाई :)

    ReplyDelete
  3. मासूम सी छेड़ छाड़ है कविता में .....

    तो जनाब सहृदयता बनाये रखें .....:))

    @ तारक-हार ना गए कही है..
    बस ये पंक्ति कुछ समझ नहीं आई

    @ रजनि बनो अब तुम भी निष्ठुर

    ReplyDelete
    Replies
    1. @ तारक-हार ना गए कही है..
      बस ये पंक्ति कुछ समझ नहीं आई

      हीर जी , इस पंक्ति से मेरा तात्पर्य था की रजनी के गले की शोभा बढ़ाने वाले तारों के हार .उम्मीद है स्पष्ट हो गया होगा .

      Delete
  4. कविता में रजनी की दुख है या दुख रजनी देती है
    सब को छॊड़ रजनी चली जाती या सब रजनी को छोड़ चल देते हैं।
    शैली सदा की तरह रोचक है।

    ReplyDelete
  5. अद्भुत ..... अति सुंदर शाब्दिक अलंकार लिए प्रस्तुति...

    ReplyDelete
  6. जीवन के प्रारब्ध की कहाँनी है आपकी कविता ....रजनी का प्रारब्ध ही अंधकार है ...चांद का प्रारब्ध ही छल है ,सूरज से रोशनी पाता है तिस पर कलायें...छलिया है ...पर सबसे महत्वपूर्ण बात है कवि का प्रारब्ध उसकी कविता है ...उसकी रचना है ...!!आपने सुंदर रचना रची है ...प्रभु कृपा है आप पर ...लिखते रहें ...!!शुभकामनायें.

    ReplyDelete
  7. तारक-हार ना गए कही है
    बिखर गए सब पड़े यही है
    कुमुद -नयन भी खुले नहीं है

    क्यों है इतनी विह्वलता ?
    है ये कितनी श्यामलता ?

    बहुत सुंदर .... बेचारा चाँद भी तो वहीं पड़ा रहता है .... खुद ही छला जाता है ...रजनी ही तो रवि के प्रताप से छुप जाती है :):)
    बहुत सुंदर मनभावन रचना

    ReplyDelete
  8. भोली साँवली रात,
    ओढ़े चाँदनी गात..

    ReplyDelete
  9. वाकई रजनी को अब अपने तेवर दिखने चाहिए तभी चाँद महाशय सुधरेंगे :).
    प्यारी सी कविता है इस बार .

    ReplyDelete
    Replies
    1. हाँ !!! प्यारी सी कविता है इस बार .....
      :-)

      ईमानदार टिप्पणी की है शिखा जी ने....
      हमारी भी सहमति है...
      प्यारी यूँ कि पूरी समझ आई (तकरीबन )

      अनु

      Delete
    2. हा हा . अब आप लोग कहती है तो होगी प्यारी कविता.इस बार . कोशिश करेंगे की फिर से प्यारी वाली लिखूं . कम से दो तो होनी ही चहिये .

      Delete
  10. काव्य की सुन्दरता बिखर रही है..ऐसो ही है प्रेम-पंथ..

    ReplyDelete
  11. वंदना अवस्थी जी की बात से सहमत हूँ।

    ReplyDelete
  12. आपका शब्द संयोजन कमाल का होता है ... रजनी के भोले रूप कों उजागर किया है ... जिसको हर कोई छल जाता है ...

    ReplyDelete
  13. अति सुंदर शाब्दिक अलंकार लिए प्रस्तुति...

    ReplyDelete
  14. वाह..जैसे मन के भाव सुन्दर वैसे हीं सुन्दर शब्द समेटे हुए रचना....

    ReplyDelete
  15. सरल सहज बहती भावाभिव्यक्ति .... आनंद आ गया .......

    ReplyDelete