है ये कितनी श्यामलता ?
रजनी ये कैसी भोली है , है चन्द्र इसे नित नित छलता
रह रह छोड़ इसे शशि जाता
तनिक ना मन में छली लजाता
सहृदयता से रखे ना नाता
अति कुटिल चाल ये चलता
है ये कितनी श्यामलता ?
जब वह निर्मम रहे भवन में
छटा छिटकती इसके तन में
ज्योति जागती है जीवन में
रहती अतिशय है उज्ज्वलता
है ये कितनी श्यामलता ?
तारक-हार ना गए कही है
बिखर गए सब पड़े यही है
कुमुद -नयन भी खुले नहीं है
क्यों है इतनी विह्वलता ?
है ये कितनी श्यामलता ?
रजनि बनो अब तुम भी निष्ठुर
कठिन बनाओ निज कोमल उर
प्रेम पंथ है अतिशय दुस्तर
ग्रह योग कहाँ है मिलता ?
है ये कितनी श्यामलता ?
रजनी ये कैसी भोली है , है चन्द्र इसे नित नित छलता
रह रह छोड़ इसे शशि जाता
तनिक ना मन में छली लजाता
सहृदयता से रखे ना नाता
अति कुटिल चाल ये चलता
है ये कितनी श्यामलता ?
जब वह निर्मम रहे भवन में
छटा छिटकती इसके तन में
ज्योति जागती है जीवन में
रहती अतिशय है उज्ज्वलता
है ये कितनी श्यामलता ?
तारक-हार ना गए कही है
बिखर गए सब पड़े यही है
कुमुद -नयन भी खुले नहीं है
क्यों है इतनी विह्वलता ?
है ये कितनी श्यामलता ?
रजनि बनो अब तुम भी निष्ठुर
कठिन बनाओ निज कोमल उर
प्रेम पंथ है अतिशय दुस्तर
ग्रह योग कहाँ है मिलता ?
है ये कितनी श्यामलता ?
बहुत रोचक है। मजेदार। लेकिन शीर्षक का कहीं प्रयोग तो किया जाये कविता में भाई। :)
ReplyDeleteहा हा , इसे कहते है खुरपेंच . ये लीजिये बदल दिया
Deleteचांद में श्यामलता की कल्पना!!! कमाल है! बदमाशी तो है चांद की सच्ची :)
ReplyDeleteपहली बार किसी कवि ने चांद की चालाकी पकड़ी होगी!!! बधाई :)
मासूम सी छेड़ छाड़ है कविता में .....
ReplyDeleteतो जनाब सहृदयता बनाये रखें .....:))
@ तारक-हार ना गए कही है..
बस ये पंक्ति कुछ समझ नहीं आई
@ रजनि बनो अब तुम भी निष्ठुर
@ तारक-हार ना गए कही है..
Deleteबस ये पंक्ति कुछ समझ नहीं आई
हीर जी , इस पंक्ति से मेरा तात्पर्य था की रजनी के गले की शोभा बढ़ाने वाले तारों के हार .उम्मीद है स्पष्ट हो गया होगा .
कविता में रजनी की दुख है या दुख रजनी देती है
ReplyDeleteसब को छॊड़ रजनी चली जाती या सब रजनी को छोड़ चल देते हैं।
शैली सदा की तरह रोचक है।
अद्भुत ..... अति सुंदर शाब्दिक अलंकार लिए प्रस्तुति...
ReplyDeleteजीवन के प्रारब्ध की कहाँनी है आपकी कविता ....रजनी का प्रारब्ध ही अंधकार है ...चांद का प्रारब्ध ही छल है ,सूरज से रोशनी पाता है तिस पर कलायें...छलिया है ...पर सबसे महत्वपूर्ण बात है कवि का प्रारब्ध उसकी कविता है ...उसकी रचना है ...!!आपने सुंदर रचना रची है ...प्रभु कृपा है आप पर ...लिखते रहें ...!!शुभकामनायें.
ReplyDeleteतारक-हार ना गए कही है
ReplyDeleteबिखर गए सब पड़े यही है
कुमुद -नयन भी खुले नहीं है
क्यों है इतनी विह्वलता ?
है ये कितनी श्यामलता ?
बहुत सुंदर .... बेचारा चाँद भी तो वहीं पड़ा रहता है .... खुद ही छला जाता है ...रजनी ही तो रवि के प्रताप से छुप जाती है :):)
बहुत सुंदर मनभावन रचना
भोली साँवली रात,
ReplyDeleteओढ़े चाँदनी गात..
वाकई रजनी को अब अपने तेवर दिखने चाहिए तभी चाँद महाशय सुधरेंगे :).
ReplyDeleteप्यारी सी कविता है इस बार .
हाँ !!! प्यारी सी कविता है इस बार .....
Delete:-)
ईमानदार टिप्पणी की है शिखा जी ने....
हमारी भी सहमति है...
प्यारी यूँ कि पूरी समझ आई (तकरीबन )
अनु
हा हा . अब आप लोग कहती है तो होगी प्यारी कविता.इस बार . कोशिश करेंगे की फिर से प्यारी वाली लिखूं . कम से दो तो होनी ही चहिये .
Deleteकाव्य की सुन्दरता बिखर रही है..ऐसो ही है प्रेम-पंथ..
ReplyDeleteवंदना अवस्थी जी की बात से सहमत हूँ।
ReplyDeleteआपका शब्द संयोजन कमाल का होता है ... रजनी के भोले रूप कों उजागर किया है ... जिसको हर कोई छल जाता है ...
ReplyDeleteअति सुंदर शाब्दिक अलंकार लिए प्रस्तुति...
ReplyDeleteवाह..जैसे मन के भाव सुन्दर वैसे हीं सुन्दर शब्द समेटे हुए रचना....
ReplyDeleteसरल सहज बहती भावाभिव्यक्ति .... आनंद आ गया .......
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