नव घन जल से भरकर
अंकों में चपल तरंगे
इस लघु सरिता के तन में
उमड़ी है अमिट तरंगे
निज प्रिय वारिधि दर्शन को
उन्माद उत्कंठा मन में
बस एक यही आकांक्षा
है समां गई कण कण में
निज अखिल शक्ति भर गति में
वह त्वरित चली जाती है
कष्टों की करुण कहानी
क्या कभी याद आती है ?
पथ की अति विस्तृतता का
भय तनिक ना विचलित करता
निज लघुता का चिंतन भी
मानस की शांति ना हरता
नहीं सोचती पथ में ही
यह मेरी लघुतम काया
निज अस्तित्व मिटा लेगी
बच सकती शेष ना छाया
जीवन से बढ़कर कुछ भी
यदि पा जाती वो आली
बलि कर देती दर्शन हित
वह भी सरिता मतवाली
अंकों में चपल तरंगे
इस लघु सरिता के तन में
उमड़ी है अमिट तरंगे
निज प्रिय वारिधि दर्शन को
उन्माद उत्कंठा मन में
बस एक यही आकांक्षा
है समां गई कण कण में
निज अखिल शक्ति भर गति में
वह त्वरित चली जाती है
कष्टों की करुण कहानी
क्या कभी याद आती है ?
पथ की अति विस्तृतता का
भय तनिक ना विचलित करता
निज लघुता का चिंतन भी
मानस की शांति ना हरता
नहीं सोचती पथ में ही
यह मेरी लघुतम काया
निज अस्तित्व मिटा लेगी
बच सकती शेष ना छाया
जीवन से बढ़कर कुछ भी
यदि पा जाती वो आली
बलि कर देती दर्शन हित
वह भी सरिता मतवाली
टंकार के बाद प्रत्यंचा से छूटे लक्ष्यभेदी तीर की तरह इस कविता के भाव सीधे अर्जुन के तीर की तरह मछली की आंख (निशाने) पर लगते हैं।
ReplyDeleteइस मार्ग पर, जिसे अध्यात्म का मार्ग कहा जाता है, अपना सर्वस्व विसर्जन के बाद ही, वह मिलता है जिसको पा लेने के बाद कुछ पाना शेष नहीं बचता। जैसे सरिता स्वयं को सागर में समा देने के बाद संपूर्णता को प्राप्त कर लेती है।
पथ की अति विस्तृतता का
ReplyDeleteभय तनिक ना विचलित करता
निज लघुता का चिंतन भी
मानस की शांति ना हरता
जीवन को नयी दृष्टि देती आपकी यह रचना महत्वपूर्ण है .....!
लगता है छायावाद चतुष्टयी की मे पचम राग जल्द जुड जायेगा.
ReplyDeleteप्राक़ृतिक सुन्दरता अब विस्तृत आकार ले रही है.
आभार.
जीवन से बढ़कर कुछ भी
ReplyDeleteयदि पा जाती वो आली
बलि कर देती दर्शन हित
वह भी सरिता मतवाली
bahut sundar bhav....
सरिता के माध्यम से जीवन के प्रति सचेत और निरंतर आगे बढ़ाने की प्रेरणा देती अद्भुत रचना .... बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर आशीष जी.....
ReplyDeleteकाश कभी ऐसा हो के कि हमारी टिपण्णी आपकी कविता पर भारी पड़े......
:-)
(जतन से इकट्ठा कर रहीं हूँ कुछ चमत्कारिक शब्दों को..)
पहले तो अनु के एक सुर में एक सुर मेरा भी मिला लीजिए.:)
ReplyDeleteफिर ..प्रकृति को लेकर गज़ब के बिम्ब भाव संजोय हैं.आपकी कविता पढ़ने का अपना अलग ही आनंद है.
पुनश्च: कविता के साथ २ पंक्तियों का सन्दर्भ दे देंगे तो सोने पे सुहागा होगा और हम जैसे अज्ञानियों का कुछ उद्धार.
जीवन तो चेतना है ...रुक जाना जड़ता है ...
ReplyDeleteआपकी कविता जड़ से चेतन की ओर का मार्ग है ...
दिव्यता देता हुआ ..अद्भुत सृजन ....
शुभकामनायें
वाकई नदी का जीवन मनाव के लिए बहुत ही प्रेरणा दायी होता है जो बहुत कुछ सिखाता है नदी के माध्यम से जीवन के प्रति सचेत करती प्रेरणात्म्क पोस्ट, साथ ही बहुत ही सुंदर शब्द संयोजन से सजी उत्कृष्ट रचना :-) और एक बात कहूँ इस बार आपकी रचना समझने में हमेशा की तरह कठिनाई महसूस नहीं हुई मुझे :-)
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 14-06-2012 को यहाँ भी है
ReplyDelete.... आज की नयी पुरानी हलचल में .... ये धुआँ सा कहाँ से उठता है .
वाह .. प्रवाहमय शब्द .. उत्कृष्ट प्रस्तुति ...आभार
ReplyDeleteखूबसूरत पंक्तियाँ लिखी है आपने बधाई
ReplyDeleteनदी से समुद्र तक की यात्रा! शानदार!
ReplyDeleteनहीं सोचती पथ में ही
ReplyDeleteयह मेरी लघुतम काया
निज अस्तित्व मिटा लेगी
बच सकती शेष ना छाया ...
निज का अस्तित्व वैसे भी कहां रहता है इस विस्तृत विशाल सागर के सामने ... पर फिर भी काया मिट जाती है और आत्मा में लीन हो जाती है ...
तेज ... प्रवाहमय ... अप्रतिम रचना ..
पथ की अति विस्तृतता का
ReplyDeleteभय तनिक ना विचलित करता
निज लघुता का चिंतन भी
मानस की शांति ना हरता
....बहुत गहन और प्रभावी अभिव्यक्ति....
न जाने कितने हिमकणों का साथ लिये बहती है सरिता..
ReplyDeleteसफल हो रहा है यह साध कण-कण को अमृत में बोर करके..
ReplyDeleteनदी की ही तरह ही प्रवाहमयी रचना...
ReplyDeleteहार्दिक बधाई।
यह सरिता का बहता जल
ReplyDeleteकितना निर्मल कितना पावन...
कविता के ये बहते शब्द
कहें कथा इक मनभावन...
बहुत बेहतरीन रचना....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
जीवन से बढ़कर कुछ भी
ReplyDeleteयदि पा जाती वो आली
बलि कर देती दर्शन हित
वह भी सरिता मतवाली
क्या खूब लिखा है !
नहीं सोचती पथ में ही
ReplyDeleteयह मेरी लघुतम काया
निज अस्तित्व मिटा लेगी
बच सकती शेष ना छाया
वाह , सुंदर बिम्ब और ओजस्वी भाव ....
शब्द दर शब्द बहती नदिया सी कविता .....
ReplyDelete