अपनी व्यावसायिक प्रतिबद्धता और पैर में शनिचर होने के कारण ,मुझे ना जाने
कितने घाटों और तटों का पानी पीना पड़ता है . इस यायावरी ने मुझे
भारतवर्ष के उत्तर में कश्मीर की हिम आच्छादित वादियों से लेकर डेक्कन
में केरल के मनोरम तटों तक और पूर्वोत्तर के अगम्य , दुर्गम स्थानों से
लेकर पश्चिम में द्वारका तट तक घुमाया है . कार्य के सिलसिले में देश
-विदेश की यात्राये मेरे लिए अपरिहार्य सी हो गई है . हर महीने कही न कही ,
किसी दुसरे स्थान का दाना पानी मेरे नाम लिखा होता है. महापंडित
सांकृत्यायन की "अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा "बचपन से लेकर अब तक स्मृतियों
में कैद है..
इतनी भूमिका बाँधने के पीछे मेरा मंतव्य बस ये बताना था की बंदा घूमता तो रहता है लेकिन उसने कभी भी .अपने अनुभवों को कलमबद्ध करने की हिम्मत या जहमत नहीं उठाई .आज सुबह मैंने फेसबुक पर एक चित्र लगाया तो श्री मनोज कुमार जी, शिखा वार्ष्णेय जी और वंदना दुबे अवस्थी जी ने आग्रह किया कि चित्र के बारे में विस्तार से बताने के लिए एक ठो पोस्ट डाला जाय. हमने सोचा, मौका तो है और दस्तूर भी बन जायेगा बस एक बार कलम चले तो .
गर्मी का मौसम और पारा अर्धशतक लगाता हुआ , कुछ लोग कहते है की उत्तर भारत में चढ़ता पारा वहाँ के लोगों की कार्यक्षमता पर प्रभाव डालता है , मै तो सहमत नहीं इनसे . खैर इस भीषण गर्मी से कुछ दिनों की निजात पाने के लिए हमने अपनी वामांगी से सलाह की तो उनकी इच्छा अनुसार पर्वतराज हिमालय की शरण में जाने का निर्णय लिया गया.और तय पाया गया की हम नेपाल स्थित सागरमाथा (एवेरेस्ट ) की ऊँचाई भी देखेंगे
कानपुर से सड़क मार्ग द्वारा लखनऊ एयरपोर्ट पहुचे जहाँ से नेपाल की विमानन कंपनी बुद्ध एयर लाईन्स से हम लोगों को काठमांडू तक की यात्रा करनी थी . सुरक्षा जाँच के बाद बोर्डिंग के लिए जब एयर क्राफ्ट के पास पहुचे तो चालीस सीटर विमान देखकर श्रीमती जी के माथे पर चिंता की लकीरे दिखी.जो नेपाली विमान परिचारिका के स्वागत मुस्कान के साथ उड़न छू .हो गई.. लगभग ७५ मिनट की उडान के बाद हम काठमांडू के त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई पत्तन पर सुरक्षित उतर गए , तमाम सुरक्षा खामियों और ढांचा गत कमियों के उपरांत भी , पर्यटकों के चेहरे पर शिकायत के भाव नहीं दिख रहे थे.. हमारे सहयोगी ने अपने चालक को भेजा था हमको हमारे होटल पहुचाने के लिए जो कि काठमांडू के सबसे चहल पहल वाले इलाके दरबार मार्ग पर स्थित था . काठमांडू उपत्यका में रिमझिम फुहार हमारे दग्ध तन को शीतलता की अनुभूति दे रही थी . कुछ मिनटों के आराम के बाद हम एक रेस्त्रा में पहुचे जहाँ मेरे मित्र और सहयोगी हमारा इंतजार कर रहे थे .. स्वादिष्ट भोजन के साथ नेपाल की राजनैतिक और आर्थिक स्थिति पर भी सबने अपने अधकचरे ज्ञान को बघारा.. जाने क्यूँ हमारे पुरखे कह गए है की खाते समय नहीं बोलना चहिये जबकि मुझे लगता है कि लोग खाने की मेज पर ज्यादा मुखर होते है.
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इतनी भूमिका बाँधने के पीछे मेरा मंतव्य बस ये बताना था की बंदा घूमता तो रहता है लेकिन उसने कभी भी .अपने अनुभवों को कलमबद्ध करने की हिम्मत या जहमत नहीं उठाई .आज सुबह मैंने फेसबुक पर एक चित्र लगाया तो श्री मनोज कुमार जी, शिखा वार्ष्णेय जी और वंदना दुबे अवस्थी जी ने आग्रह किया कि चित्र के बारे में विस्तार से बताने के लिए एक ठो पोस्ट डाला जाय. हमने सोचा, मौका तो है और दस्तूर भी बन जायेगा बस एक बार कलम चले तो .
गर्मी का मौसम और पारा अर्धशतक लगाता हुआ , कुछ लोग कहते है की उत्तर भारत में चढ़ता पारा वहाँ के लोगों की कार्यक्षमता पर प्रभाव डालता है , मै तो सहमत नहीं इनसे . खैर इस भीषण गर्मी से कुछ दिनों की निजात पाने के लिए हमने अपनी वामांगी से सलाह की तो उनकी इच्छा अनुसार पर्वतराज हिमालय की शरण में जाने का निर्णय लिया गया.और तय पाया गया की हम नेपाल स्थित सागरमाथा (एवेरेस्ट ) की ऊँचाई भी देखेंगे
कानपुर से सड़क मार्ग द्वारा लखनऊ एयरपोर्ट पहुचे जहाँ से नेपाल की विमानन कंपनी बुद्ध एयर लाईन्स से हम लोगों को काठमांडू तक की यात्रा करनी थी . सुरक्षा जाँच के बाद बोर्डिंग के लिए जब एयर क्राफ्ट के पास पहुचे तो चालीस सीटर विमान देखकर श्रीमती जी के माथे पर चिंता की लकीरे दिखी.जो नेपाली विमान परिचारिका के स्वागत मुस्कान के साथ उड़न छू .हो गई.. लगभग ७५ मिनट की उडान के बाद हम काठमांडू के त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई पत्तन पर सुरक्षित उतर गए , तमाम सुरक्षा खामियों और ढांचा गत कमियों के उपरांत भी , पर्यटकों के चेहरे पर शिकायत के भाव नहीं दिख रहे थे.. हमारे सहयोगी ने अपने चालक को भेजा था हमको हमारे होटल पहुचाने के लिए जो कि काठमांडू के सबसे चहल पहल वाले इलाके दरबार मार्ग पर स्थित था . काठमांडू उपत्यका में रिमझिम फुहार हमारे दग्ध तन को शीतलता की अनुभूति दे रही थी . कुछ मिनटों के आराम के बाद हम एक रेस्त्रा में पहुचे जहाँ मेरे मित्र और सहयोगी हमारा इंतजार कर रहे थे .. स्वादिष्ट भोजन के साथ नेपाल की राजनैतिक और आर्थिक स्थिति पर भी सबने अपने अधकचरे ज्ञान को बघारा.. जाने क्यूँ हमारे पुरखे कह गए है की खाते समय नहीं बोलना चहिये जबकि मुझे लगता है कि लोग खाने की मेज पर ज्यादा मुखर होते है.
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- दुसरे दिन तडके ही हम भगवान पशुपतिनाथ के दर्शन के लिए गए जो की ज्योतिर्लिंगों में से एक है . भक्तों की भारी भीड़ में भगवान शिव के प्रति अगाध श्रद्धा का संचार देखते ही बन रहा था. पंक्ति में खड़ा होते हुए कैमरा और अन्य समान वाहन में ही छोड़ना पड़ा था. ये मंदिर नेपाल राजतन्त्र के श्रद्धा का केंद्र रहा है और यहाँ के मुख्य पुजारी दक्षिण भारतीय ब्रह्मण ही होते है ,लिच्छवी नरेश द्वारा बनवाया हुआ ये मंदिर पगोडा स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है .. दर्शन और नाश्ता करने के उपरांत हमें काठमांडू की सैर करने की इच्छा से निकल पड़े . साफ सुथरी पहाड़ी सडक, अनुशासित ट्रैफिक हमको पैदल चलने में सहायक थे . दरबार मार्ग जहा मेरा होटल था वो राजपथ है नेपाल का . सड़क के एक छोर पर शाह राजवंश का राजमहल "नारायणहिति" अपने भाग्य पर इतराता और दुर्भाग्य पर आंसू बहाता खड़ा है . कुछ साल पहले तक ये नेपाल की सत्ता और जनता की आस्था का केंद्र था .लेकिन उस अभूतपूर्व नरसंहार के बाद जिसमे पुरे राजपरिवार की हत्या कर दी गई थी वो अवाक् सा रह गया था. वर्तमान में सरकार ने इसके एक हिस्से को संग्रहालय और एक हिस्से को विदेश मंत्रालय के पासपोर्ट कार्यालय में परिवर्तित कर दिया
- थोड़ी ही दूर पर एक बड़ा सा तालाब दिखा जिसके बीचो बीच में एक मंदिर . इस तालाब को रानी पोखरी के नाम से जानते है जो राजरानियों की जलक्रीडा के लिए बनाया गया था . मजे की बात की अभी भी उसका जल साफ सुथरा दिख रहा था जबकि वो शायद अब प्रयोग में नहीं था . थोडा आगे बढे तो एक गगन चुम्बी टॉवर दिखा .काठमांडू की हृदयस्थली में स्थित ये बुर्ज "सुनधारा के नाम से जाना जाता हैऔर ये आधुनिक टीवी टावरों की तरह दिखता है . सबसे ऊपर जाने के लिए बुर्ज के अन्दर से सीढिया है . सबसे उपरी मंजिल को यहाँ के राजा , प्रजा को संबोधित करने के लिए प्रयोग करते थे . प्रचलित ये भी है की यहाँ से एक जल धारा का उदगम था जिसका रंग सोने जैसा था इसलिए उसका नाम पड़ा सुन (स्वर्ण) धारा. वहा से चंद कदम की दुरी पर था नेपाल का सबसे बड़ा स्टेडियम" दशरथ रंगशाला " जो की दक्षिण एशियाई खेलों का भी मेजबान रह चुका है , अब तक हम थक चुके थे और क्षुधा भी सताने लगी थी, फिर हमने आज के अपने भ्रमण को विश्राम दिया और लौट आये अपने होटल , जहा हमको सागरमाथा (एवेरेस्ट) जाने के लिए अगले दिन का प्लान बनाना था
- . पुनश्च ---नेपाल की राजनैतिक , सामाजिक और आर्थिक ताने बाने पर लिखना तो चाहता था लेकिन पोस्ट की लम्बाई बढ़ते देख और अपने नौसिखियेपन के संकोच के तहत मैंने इसे अगली पोस्ट तक मुल्तवी कर दिया .
सुन्दर काम किया। संकोच ज्यादा अच्छा नहीं होता। फोटो बहुत अच्छे हैं। विवरण भी। क्या कैमरे में कोई इस तरह की खराबी थी कि खुद और परिवार के लोगों के फोटो खींच नहीं पता? :)
ReplyDeleteआगे की पोस्ट का इंतजार है। अब तो संकोच भी टूट ही गया है! :)
हा हा , कैमरा भी नौसिखिया है , आपने अप्रूवल दिया तो अगली बार से संकोच उतार देगा वो.
Deleteकौन? आप ... या कैमरा ... या ... :)
Deleteरोचक और सरल यात्रा वृतांत ...!
ReplyDeleteरोचक प्रस्तुति .... घर बैठे घूमने को मिल गया और साथ में बढ़िया जानकारी भी मिली ...
ReplyDeleteजब सुरों की श्रुती सही लगती है ....कुछ भी गाया जाये ...सुनने मे अत्यंत मधुर लगता है ...!!यही हाल आपका है ...प्रखर लेखनी है जैसी बह जाये ...धार तो वही है ...हम सभी का ज्ञान बढ़ा रही है ...सुंदर चित्रों के साथ ..
ReplyDeleteआभार सुंदर प्रस्तुति के लिये ....!!
आभार आपका ,
Deleteबहुत बढ़िया.....
ReplyDeleteबेधड़क लिखते जाइए.....आपको पाठकों ने पास कर दिया है ...
और हम तो १००% दे रहे हैं...(कविताओं की तरह इसको पढ़ कर दिमागी कसरत जो नहीं करनी पडी.)
:-)
सादर
अनु
हा हा , अब कविता तो झेलनी ही पड़ेगी . ये तो पार्ट टाइम शौक है मेरा , शत प्रतिशत पाकर मै सकुचाया. आजकल तो अमेरिका से लेकर हिन्दुस्तान तक अंडर अचीवर की बाते हो रही है .
Deleteअनु जी से सहमत।
Deleteअति मनोरंजक !!
ReplyDeleteतो अगली पोस्ट कब आ रही है ??
’सागरमाथा’ के बारे में गोवा बोर्ड की पुस्तक में ”बचेन्द्री पाल" पाठ के अंतर्गत पढ़ा था
आज फिर पढ़ा तो वहाँ जाने की इच्छा बलवती हो गई
इस्मत जी संकोच सिमट रहा है है , इसके दफा होते ही लिख डालेंगे अगली पोस्ट भी . और आप जरुर जाएँ और लिखिए सागर (गोवा से) सागरमाथा तक .:)
Deleteवाह..क्या खूब लिखा है..हम तो नीबू पानी लेकर बैठे थे पढ़ने, कि कविता की तरह ही उसकी जरुरत पड़ेगी:):). पर यहाँ तो वो रखा रह गया और हम बिना सांस लिए पढ़ गए.सुन्दर तस्वीरों के साथ सुन्दर वर्णन..गद्य लेखन कृपया जारी रहे.
ReplyDeleteआभार आपका , भाषा को लेकर हम तनाव में थे की कही दुष्कर और शुष्क ना हो जाए . और निम्बू पानी अलग अलग क्यू जी , निम्बोस है न.
Deleteसही कहा है शिखा ने, सुंदर गद्य लेखन।
Deleteरोचक विवरण है, राजपरिवार कब हत्या ने पूरा का पूरा राजनैतिक परिवेश ही बदल दिया।
ReplyDeleteदेखा?? कैसा बढिया लिखा है?? अपने गद्य-लेखन संकोच को वहीं सागर-माथे पर टिका दीजिये और लिख डालिये अगली कड़ी बेधड़क. हम इन्तज़ार कर रहे हैं. बहुत रोचक लिखा है भाई जी. पढ के सोचने लगी कि नेपाल, जिसे गरीब देश के रूप में जाना जाता है, भी कितना अनुशासित और स्वच्छ है..एक हमारा हिन्दुस्तान है :( और हम हैं :( तस्वीर बहुत बढिया हैं. शुक्ला जी की बात पर ध्यान दिया जाये.
ReplyDelete"जाने क्यूँ हमारे पुरखे कह गए है की खाते समय नहीं बोलना चहिये जबकि मुझे लगता है कि लोग खाने की मेज पर ज्यादा मुखर होते है."
एकदम सच्ची बात. मुझे भी ऐसा ही लगता है :)
ईश्वर ऐसी यायावरी सबको दे :) :) :)
जानकारियाँ समेटे अच्छा लगा यह रोचक यात्रा वृतांत.....
ReplyDeleteBehad rochak likh rahe hain,,,,,likhte rahen!
ReplyDeleteबड़ा ही रोचक यात्रा वृतांत लिखा है आपने, इस बहाने हमने भी थोड़ा बहुत नेपाल घुमलिया बढ़िया जानकारी आभार...
ReplyDeleteSir Ashish,
ReplyDeleteI do not really understand the texts in your blog but i do appreciate the beautiful sites as shown in the pictures.. I know that india is indeed a beautiful country with beautiful people..
Please carry on with your good literary works...
काफी जानकारी भरी यात्रा वृतांत ..
ReplyDeleteशुक्रिया आपका ..
सादर !!
सही है लिख डालिये अगली कड़ी बेधड़क. इतना अच्छा तो लिखते हैं आप... इंतजार है अगली कड़ी का...
ReplyDeleteचित्र, विवरण दोनों ही आनन्ददायक, धन्यवाद!
ReplyDeleteपढ़कर मन आनंदित हुआ। एक रोचक यात्रा-वृत्तांत कह सकता हूं। चित्रों ने इसमें जान डाल दी है। लेखनी का प्रवाह अबाधित है और साथ में तथ्यों ने इसे बार-बार पठनीय बना डाला है।
ReplyDeleteइस सिलसिले को ज़ारी रखिएगा।
भइया पढ कर तो ह्मे कही से नही लगा कि यह किसी नैसिखिये ने लिखा है , ऐसे भी जो बात बिना किसी ताम झाम के सादगी से कही जाती है वो सीधे दिल त्क उतरती है , आपने अप्नी यात्रा का जो चित्र खीचा अब शायद अगर भविष्य मे वहाँ गयी तो नया नही लगेगा, हाँ भाभी जी के साथ अपनी फोटो भी लगा देते तो इसी बहाने भाभी जी के दर्शन तो हो जाते .....
ReplyDeleteयात्रा की अच्छी शुरुआत।
ReplyDeleteइसे पढ़ते हुए हम भी आपके सहयात्री हो गए।
बहुत दिन बाद आपके द्वारा नेपाल का हाल जाना , पुरानी सुखद यादें ताजा हो गयीं ! आभार आपका !
ReplyDeleteशायद ये चरणपादुका ही है ..आगे भी देखने की प्रतीक्षा है...
ReplyDeleteआपकी रचनाओं जैसे यात्रा वृतांत भी बहुत ही रोचक हैं ...
ReplyDeleteचित्र वृतांत में जान डाल रहे हैं ...
बढ़िया पोस्ट है। पोखरा नहीं गये तो नेपाल घूमने जाना बेकार है।
ReplyDeleteपांडे जी . हमको ये भी याद नहीं है की ये हमारी कौन सी नेपाल यात्रा थी . विगत १५ सालों में हर दुसरे महीने नेपाल जाना होता है मुझे . और पोखरा मै अनगिनत बार जा चूका हूँ. चुकी हम लोगो को एवेरेस्ट की तरफ जाना था इसलिए पोखरा नहीं जाना हुआ क्योकं की वो दुसरे दिशा में स्थित है . कभी मौका मिले तो एवेरेस्ट की तरफ हो आइये .
Deleterochak sansmaran..
ReplyDeleteएक यायावरी लेखनी कितनों को कहां तक घुमा देती है और कैमरा साथ तो सोने में सुहागा - बहुत अच्छा रहा !
ReplyDeleteघर बैठे नेपाल-दर्शन ,बहुत ही सहज और रोचक वर्णनं आशीष जी ,आशा है अगली पोस्ट इससे ज्यादा रोचाक होगी
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