विगत जुलाई के उत्तरार्ध से ब्लाग लिखने और आप सबको पढने से वंचित रहा . कारण स्व-जन का स्वास्थ्य कारण और फिर कुछ आलस भी है .कई दिनों से सोच रहा था की कल से लिखूंगा लेकिन आलसबस टालता रहा . अनुपमा त्रिपाठी जी कुछ दिन से रोज पूछती थी , क्यों नहीं लिख रहे , एक दिन अनुलता जी ने भी संदेह जाहिर किया कि क्या मैंने ब्लाग से मुँह मोड़ लिया आज शिवम् मिश्रा जी ने भी यही प्रश्न किया और जोर दिया पोस्ट डालने कि तो . मैंने सोचा ज्यादा देर हो उससे पहले लिख डालूँ नहीं तो . क्या लिखूं आप लोग समझ गए होगें ना .:). तो हमने लिख ही दिया , अच्छा या बुरा वो नहीं पता .
नीले वितान के नभ में
जलदो का जाल नहीं है
चपला की प्रतिपल चंचल
क्रीडा का काल नहीं है
दिन के प्रकाश को संध्या
ढँक अरुणांचल से अपने
दे थपकी सुला रही है
है लीन दृगो में सपने
अति निमिड तिमिर ने धीरे
निज कृष्ण प्रकृति के बल से
अम्बर- प्रदेश में आकर
अधिकार जमाया छल से
पर उड्नायक ने तम का
यह परख प्रपंच लिया है
निज अनुचर दल संग आकर
आवृत आकाश किया है
निज धवल धाम से निशिपति
गगनांगन शुभ्र बनाते
लख तिमिर पलायन उडगण
हँस हँस कर मोद मनाते
वो भोली बाल चकोरी
खो बैठी सुध बुध सारी
लख निज प्रिय शशलांछन की
शरद -सुन्दरता न्यारी
पर हाय ! चकोरी भूली
शशि ने भावुकता खोई
है गह्वर चन्द्र- ह्रदय में
ले गया चुरा चित्त कोई .
मानसिक व्यायाम हो गया....
ReplyDeleteआ बैल मुझे मार वाली कहावत सिद्ध हुई..
:-)
सुन्दर रचना..
अनु
हा हा, वैसे कौन? कविता या :)
Deleteहाँ अनु !! हमारी बात पता नहीं कब मानेंगे आशीष जी :(
Deleteवाह आशीषजी ..सदा की तरह समृद्ध और सुन्दर काव्य रचना .....
ReplyDeleteमुझ अज्ञानी के अनुरोध को इतना मान देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार महाप्रभु ... जय हो !
ReplyDeleteमुझ से मत जलो - ब्लॉग बुलेटिन ब्लॉग जगत मे क्या चल रहा है उस को ब्लॉग जगत की पोस्टों के माध्यम से ही आप तक हम पहुँचते है ... आज आपकी यह पोस्ट भी इस प्रयास मे हमारा साथ दे रही है ... आपको सादर आभार !
वाह बहुत सुन्दर ..शब्दों पर आपकी इस तरह से पकड़ बहुत अच्छी है ..बहुत बढ़िया लगता है इस तरह से लिखा पढना ..बेहतरीन आशीष जी
ReplyDeleteवितान,जलद,चपला,प्रकाश, संध्या,तिमिर,उडनायक,आकाश,
ReplyDeleteनिशिपति और चकोरी...
क्या रूप सजाया है कविता का....
लाजवाब अभिव्यक्ति .... लाजवाब शब्द चयन....
सादर
अरे वाह कुछ दिनों से पूछने का असर इतना सुन्दर काव्य ...!!!
ReplyDeleteअब यही कह सकते हैं ...जल्दी जल्दी लिखते रहें ....
बहुत सुन्दर रचना ...!!
प्रसाद एक बार पंत के साथ साकार हो गए।
ReplyDeleteदिन के प्रकाश को संध्या
ढँक अरुणांचल से अपने
दे थपकी सुला रही है
है लीन दृगो में सपने
कविता का स्वर कभी समसामयिक है तो कभी आत्माभिव्यक्ति ...
पर हाय ! चकोरी भूली
शशि ने भावुकता खोई
है गह्वर चन्द्र- ह्रदय में
ले गया चुरा चित्त कोई .
हम तो बस आपके कवित्त पर मोद ही मनाते हैं
निज धवल धाम से निशिपति
गगनांगन शुभ्र बनाते
लख तिमिर पलायन उडगण
हँस हँस कर मोद मनाते
हंसी का स्माइली छूट गया था :):):):)
Deleteवैसे तो आप लिखते ही कमाल का है उसमें कोई दो राय नहीं है :-)इस बार भी बहुत ही जानदार कविता लिखी है आपने, मगर इस बार अंतिम पंक्तियों ने बहुत ही प्रभावित किया मुझे बेहतरीन काव्य आशीष जी लिखते रहिए....शुभकामनायें
ReplyDeleteप्रकृति का मनोरम चित्रण .... बहुत सुंदर ... उत्कृष्ट रचना
ReplyDeleteएक और बेहतरीन पोस्ट के लिए बधाइयाँ !
ReplyDeleteBahut sundar! Likhte rahen!
ReplyDeleteसारे टिप्णिकारों की टिप्पियां मेरी मान लीजिए.....ज्यादा कुछ नहीं कह सकता।
ReplyDeleteवो भोली बाल चकोरी
ReplyDeleteखो बैठी सुध बुध सारी
लख निज प्रिय शशलांछन की
शरद -सुन्दरता न्यारी
बहुत सुन्दर कविता है आशीष जी. चलिए, अब हम अभी से कहना शुरू कर देते हैं :)
और हाँ, इस्मत का शेर सचमुच बहुत अच्छा है, जिसे आपने अपने हैडर में लगाया है :)
ReplyDeletekash mere pass shabd hote ki aapki rachna ke liye comment kar pata...:(
ReplyDeletesach me aap kee rachna aapke dheel dhaul se mel nahi khati :)
उत्कृष्ट काव्य कृति
ReplyDeleteप्रकृति का बहुत सुंदर वर्णन
ReplyDeleteपर पूरी कविता समझने के लिये समय चाहिये होता है भाई,,हाँ इसी बहाने बड़े बड़े प्रसिद्ध कवियों को प्रतिदिन याद कर लेती हूँ मैं :)
धन्यवाद वंदना :)
थोड़ी देर से पर समझ में आई कविता.....:-)
ReplyDeleteitni nirmal aur pawan rachnaa padh kar man kitna khush ho jata hai kahna mushkil hai, aur sath hi sath hindi ka sabdkosh gyaan bhi badh jata hai ...
ReplyDeletewaise bhaai wakai aap khan the etne din...
इसे कहते हैं कविता और इसी को कहते हैं शब्द-चयन | आपकी कविता पढ़ कर कक्षा १२ के हिंदी के घंटे की याद आ गई |
ReplyDeleteही ही ही ..तभी तो मैं कहती हूँ कि उसी तरह कृपया सन्दर्भ भी दिया करें :)
Deleteउत्कृष्ट...सुंदर शब्द-संयोजन !!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पोस्ट,काबिले तारीफ ।
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट - "क्या आप इंटरनेट पर मशहूर होना चाहते है?" को अवश्य पढ़े ।धन्यवाद ।
मेरा ब्लॉग पता है - harshprachar.blogspot.com
अच्छी रचना
ReplyDeleteदिन के प्रकाश को संध्या
ReplyDeleteढँक अरुणांचल से अपने
दे थपकी सुला रही है
है लीन दृगो में सपने ..
वाह ... सदा की तरह सुन्दर शब्द संयोजन .... भाव प्रधान और कहन की स्पष्टता लिए ... बेहतरीन रचना ...
thodi si jatil hai but nice one
ReplyDeleteपढ़कर साहित्य के गाढ़ेपन में उतर गया।
ReplyDeleteअति निमिड तिमिर ने धीरे
ReplyDeleteनिज कृष्ण प्रकृति के बल से
अम्बर- प्रदेश में आकर
अधिकार जमाया छल से
इन पंक्तियों के शब्द - भाव खास पसंद आये.
बाकी पूरी कविता आनंददायक है ...हम समझ २-३ बार पढ़ने पर ही आती है:)
सुंदर शब्द योजना.तरल भावस्थिति. अनोखी रचना.धन्यवाद.
ReplyDeleteकुछ शब्द तो पल्ले नहीं पड़े। जैसे...
ReplyDeleteजलदो,निमिड,शशलांछन
अनु जी का पहला कमेंट फिर पढ़ा।:)
हिंदी के क्लिष्ट मगर सुन्दर शब्दों ने कविता को अलंकृत किया !
ReplyDeleteकुछ शब्दों के अर्थ ढूँढने पड़ेंगे !
लाजवाब !
अकथ प्रेय का कथ्य मुक्ताभ सा है..
ReplyDeletebahut hi sunder shabdo se guthi kavya rachna ...
ReplyDeleteसुन्दर कल्पना और तदनुकूल भाषा- सुन्दर काव्य-रचना!
ReplyDeleteआशीष जी ,आप विशेष शब्दों के अर्थ नीचे दे दिया करें तो भाव एकदम सबकी समझ में आ जायेगा और उन सुन्दर ,साहित्यिक शब्दों के प्रसार से भाषा का रूप और सँवरेगा.
सुन्दर और सार्थक सृजन, बधाई.
Deleteकृपया मेरे ब्लॉग" meri kavitayen " की नवीनतम पोस्ट पर पधारकर अपना स्नेह प्रदान करें, आभारी होऊंगा .