उछ्ल कर उच्च कभी सोल्लास
थिरक कर भर चांचल्य अपार
धीर सी कभी ध्यान में मग्न
कुंठिता लज्जा सी साकार
मृदुल गुंजन सी गाती गान
बजाती कल कल कर करताल
नृत्य बल खा खा करती, देख !
कभी भ्रू कुंचित कर कुछ भाल
वीचि -मालाओ में कर बद्ध
राशि के राशि अपरिमित भाव
पहुचती सरिता अचल समीप
चाहती अपना स्पर्श -प्रभाव
शैल से टक्कर खा खा किन्तु
बिखरती लहरें भाव समेत
ह्रदय के टुकड़े कर तत्काल
कठिन पीड़ा से बनी अचेत
नदी का सुनकर कातर नाद
ह्रदय पिघलते और विकम्पित गात्र !
कोई जाकर सरिता को समझाए
उपल भी कही भाव के पात्र ?
थिरक कर भर चांचल्य अपार
धीर सी कभी ध्यान में मग्न
कुंठिता लज्जा सी साकार
मृदुल गुंजन सी गाती गान
बजाती कल कल कर करताल
नृत्य बल खा खा करती, देख !
कभी भ्रू कुंचित कर कुछ भाल
वीचि -मालाओ में कर बद्ध
राशि के राशि अपरिमित भाव
पहुचती सरिता अचल समीप
चाहती अपना स्पर्श -प्रभाव
शैल से टक्कर खा खा किन्तु
बिखरती लहरें भाव समेत
ह्रदय के टुकड़े कर तत्काल
कठिन पीड़ा से बनी अचेत
नदी का सुनकर कातर नाद
ह्रदय पिघलते और विकम्पित गात्र !
कोई जाकर सरिता को समझाए
उपल भी कही भाव के पात्र ?
कुंठिता लज्जा सी साकार
ReplyDeleteकुंठिता भला क्यों ? अपनी पीड़ा से कुंठित है ?
वैसे लोग कहते हैं कि पत्थर में भी भला कोई भाव होता है ... लेकिन मुझे लगता है कि उसके मौन को ही हम संवेदन हीनता मान लेते हैं :):)
वैसे नदी को क्या समझाना ..... बहुत समझदार होती है नदी ... चाहे जितनी भी बाधा आए निरंतर अपनी मंज़िल की ओर अग्रसर रहती है ....
हमेशा की तरह भाव प्रवण रचना ...
भ्रू कुंचित--त्योरिया चढ़ाना या भाव -भंगिमा बनाना
ReplyDeleteवीचि -मालाओ------लहरों की माला
गात्र ----गात या शरीर
aabhaar :-)
Deleteहर लहर की अपनी कहानी
ReplyDeleteकहीं चंचल कहीं गंभीर
कहीं व्यथित कहीं अधीर
छुपी हुई है हर में पीर
शायद इसलिए स्त्री की उपमा सरिता से की जाती है .....
ReplyDeleteकमाल की छंद बद्ध रचना .....:))
हम्म...हर कोई अपने स्वभाव से मजबूर होता है ..ऐसे ही सरिता भी..कितनी भी ठोकरे खाए,पत्थरों से टकराए, कोई कितना भी समझाये पर अपना स्वभाव नहीं छोड़ पाती.
ReplyDeleteबेहद सुन्दर भावों से रची हुई संवेदनशील रचना है.
कितना सच लिखा है ...नदी की राह तो अपने समुद्र मे मिलना है ....राह मे आने वाले पत्थरों से उसे क्या मिलेगा दुख के सिवा ....किन्तु फिर भी उसकी जिजीविषा कितनी प्रबल है .....आगे बढ़े बिना मानती कहाँ है .....छोड़ जाती है अपनी लहरों को उन पत्थरों को समझाने ....और टूटते हैं धीरे धीरे पत्थर समा जाते हैं रेत बन कर नदी की .... या ..एक दिन कोई उन्हें ले जाता है मंदिर में स्थापित पूजने ...बस हम जीवन में क्या देख रहे हैं ...कैसे देख रहें हैं ...सब उसी पर निर्भर करता है ...!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सुचारू छंद बद्ध रचना ...!!
सरिता के व्यवहार को बखूबी शब्दों में ढालकर व्यक्त किया है आपने...
ReplyDeleteसरिता और शैल ,दोनों में से कौन ठोकर सा बन जाता है और कौन बिखर जाता है ये एक अबूझ पहेली सी ही लगती है ... शब्दों की निर्झर सरिता तो बहुत मोहक लगी हमेशा की तरह ..-:)
ReplyDeleteबेहद सुन्दर भावों से रची हुई संवेदनशील रचना !
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर व्याख्या ... नदी के रूप की... और स्वभाव की...!!
ReplyDeleteउसकी शालीनता .... और इच्छाओं का वर्णन भी खूब किया .... :)
और उसकी पत्थरों से टकरा टकरा कर छिन्न हो जाने वाली पीड़ा को भी बखूबी आपने दर्शाया है.... कहाँ पता उसे की "भाव के पात्र कौन हैं और कौन नहीं...... वो तो अपनी शालीनता और मृदुलता के साथ आगे बढ़ना चाहती है और सबके ह्रदय को जीतना चाहती है"
बहुत ही सुन्दर रचना है... सुन्दर शब्द चयन.... भावनात्मक अभिव्यक्ति...
सादर
बहुत ही सुन्दर प्रवाह, नदी की तरह, कल कल करता।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर आशीषजी ......इस पहेली को तो आज तक कोई नहीं सुलझा पाया ....कि दोनों कि मंशा क्या है ...एक कविता याद आ रही अपनी ..कुछ ऐसा ही ख्याल उसमें था
ReplyDeleteमौज का साहिल से रह रहके टकरा जाना
ज़ब्त किसमें है...यह होड़ लगी हो जैसे -
यह है दीवानगी लहरों की...या बेरुखी साहिल की....
दोनों के जिस्म तार तार...रूहें छलनी हों जैसे...
चोट ऐसी जो एक उम्र तक दिखाई दे,
टुकड़ों टुकड़ों में हर सिम्त बही हो जैसे...
फिर भी मौजें हैं की दीवानावार साहिल से ,
अब भी टकराती हैं...टकराके पलट जाती हैं ....
इश्क का यह भी एक अंदाज़े-बयान देखा है ,
चोट पहुँचाना ही ...
जैसे शर्ते आशनाई है !!!!
वीचि -मालाओ में कर बद्ध
ReplyDeleteराशि के राशि अपरिमित भाव
पहुचती सरिता अचल समीप
चाहती अपना स्पर्श -प्रभाव
शैल से टक्कर खा खा किन्तु
बिखरती लहरें भाव समेत
ह्रदय के टुकड़े कर तत्काल
कठिन पीड़ा से बनी अचेत
कमाल है.... नदी का दर्द कैसा उभर के आया है...कमाल ही है.
अद्भुत...
ReplyDeletesundar....
ReplyDeleteas always !!!
anu
आपके छंद के लिए मेरे मन में वो शब्द ही नहीं आ पाते जो कह पाऊं ..
ReplyDeleteवाह रे नदी... कल कल करती हुई.. बहती है..
कभी पत्थरों से टकराती है तो
कभी चुप चाप शांत जल समतल में बहती चली जाती है..
कौन समझे इसके भाव को...:))
bahut sundar abhiwyakti ....nadi ka drd ubhra hai in panktiyon mein ...
ReplyDeleteकठिन लिखsला मालिक। समझे बदे, दुई दाईं पढ़े के पड़ल। लेकिन एक बात हौ, मस्त लिखले हउवा। छंद में रियाज कठिन हौ, अभिव्यक्ति में सफलता मिल जाय तs सच्चो मजा आ जाला। नदी पत्थरे से टकरावे ई कौनो जरूरी ना हौ। अउर शुरू में कुंठित पर आपत्ति भयल, जवाब नाहीं देहला?:)
ReplyDeleteमैं आजकल कठिन से कठिनतम शब्द एकत्र कर रहा हूँ | फिर एक कविता लिखूंगा उन्हें मिलाते हुए | फिर आपके सामने प्रस्तुत करूंगा | जब आप सर खुजायेंगे तब मैं मन ही मन मुदित होऊँगा | ( पर ऐसा होने वाला नहीं है ,मैं जानता हूँ | आप उसे भी डिकोड कर लेंगे ) | बेचारा मैं , हिंदी अज्ञानी |
ReplyDeleteलाजवाब ! आपकी रचना के शब्दों के मोहपाश में बांध चूका हूँ. आभार
ReplyDeleteलगता है आप शब्दों से खेलते हैं। आपकी कविता की अंतिम पंक्तियां और प्रश्न देखकर अपनी कविता की कुछ पंक्तियां याद आ गईं, शायद वही आपके इस प्रश्न का मेरा जवाब है
ReplyDeleteनीर बरसते झम-झम झम झम
बादल अम्बर के विरहाकुल
टकरा-टकरा कर उपलों से
तट छूने को लहरें व्याकुल
कैसे पार लगेगी नौका
हैं धाराएं प्रतिकूल यहां
ह सुख की शीतल छांव कहां
चुभते पग-पग पर शूल यहां
मुख में मधु-बूंदे सी पड़ जाती है आपको पढ़कर .
ReplyDeleteआप की कविता पढ़ कर समझ में नहीं आता कि इस की प्रशंसा के लिये उपयुक्त शब्द कहाँ से लाऊं
ReplyDeleteऔर ये भी एहसास होता है कि फिर से हिंदी पढ़ना आरंभ करूँ क्योंकि स्वयं को अज्ञानी महसूस करती हूँ
शैल से टक्कर खा खा किन्तु
ReplyDeleteबिखरती लहरें भाव समेत
ह्रदय के टुकड़े कर तत्काल
कठिन पीड़ा से बनी अचेत ......नदी का पानी/ एक बहता हुआ सन्नाटा जो अपने अंदर कितनी बातें छुपाये हुए हैं ..सुन्दर रचना .बेहतरीन शब्द चयन ..और इस तरह के लिखे तो आप आशीष महारथी है ..बहुत बढ़िया
पिछले २ सालों की तरह इस साल भी ब्लॉग बुलेटिन पर रश्मि प्रभा जी प्रस्तुत कर रही है अवलोकन २०१३ !!
ReplyDeleteकई भागो में छपने वाली इस ख़ास बुलेटिन के अंतर्गत आपको सन २०१३ की कुछ चुनिन्दा पोस्टो को दोबारा पढने का मौका मिलेगा !
ब्लॉग बुलेटिन इस खास संस्करण के अंतर्गत आज की बुलेटिन प्रतिभाओं की कमी नहीं 2013 (5) मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !