रवि रश्मि जनित गुरु ताप तपे
दुर्गम पथ पर चल अब श्रांत हुआ
मुख म्लान शिशिर -हत-पंकज सा
तब कंठ तृषातुर क्लांत हुआ.
तब कंठ तृषातुर क्लांत हुआ.
ज्योतिहीन जीवन -जग में,
कंटक -कुल -संकुल मग में,
भटक भटक पद छिन्न हुए,
मुझ से मेरे भिन्न हुए .
छल छल कर छलक रहा रस स्रोत
प्रतिक्षण नूतन स्वाद बहे
यह मोहक मानस पूर्ण पड़ा
रसपान करो पर याद रहे
तव धूल भरे पद पथिक ! नहीं
इस निर्मलता के अँक सने
बन पंक धूल इन चरणों की
इस मानस का ना कलंक बने .
ReplyDeleteतव धुल भरे पद पथिक ! नहीं
इस निर्मलता के अँक सने
बन पंक धूल इन चरणों की
इस मानस का ना कलंक बने .
क्या बात है !!! ये याद रखना तो अति आवश्यक है
तुम्हारी कविताएं पढ़ी और गुनी जा सकती हैं
बहुत सुंदर !!
हाँ कभी कभी सिर धुनने की नौबत भी आ जाती है :)
:))सही कहा दी...
Deleteऔर मेरी टिप्पणी भी जाने कहाँ गायब कर दी.....
अनु
आपकी कोई टिपण्णी स्पैम में नहीं है अनु जी , धन्यवाद .
Delete@ हाँ कभी कभी सिर धुनने की नौबत भी आ जाती है :)
Deleteकभी कभी ... अक्सर कहिए ... ;-)
छल छल कर छलक रहा रस स्रोत
ReplyDeleteप्रतिक्षण नूतन स्वाद बहे
यह मोहक मानस पूर्ण पड़ा
रसपान करो पर याद रहे...bahut sahi ..sundar panktiyaan .....
तुम्हारे धूल भरे पद पथिक .....:))
ReplyDeleteलाजवाब!!!! हर बार की तरह गुरु जी .....:))
ज्योतिहीन जीवन -जग में,
ReplyDeleteकंटक -कुल -संकुल मग में,
भटक भटक पद छिन्न हुए,
मुझ से मेरे भिन्न हुए .
...लाज़वाब अहसास और उनकी अभिव्यक्ति..
ज्योतिहीन जीवन -जग में,
ReplyDeleteकंटक -कुल -संकुल मग में,
भटक भटक पद छिन्न हुए,
मुझ से मेरे भिन्न हुए .
...बहुत सुन्दर पंक्तियाँ........हमेशा की तरह .....गुरूजी ऐसे ही नहीं कहते हम ...
ज्योतिहीन जीवन -जग में,
ReplyDeleteकंटक -कुल -संकुल मग में,
भटक भटक पद छिन्न हुए,
मुझ से मेरे भिन्न हुए .
भिन्न नहीं कोई तुझसे
कंटक कुल तो मग में आते हैं
चलता रहे पथिक निरंतर तो
शूल फूल बन जाते हैं ।
++++++++++++++++++
छल छल कर छलक रहा रस स्रोत
प्रतिक्षण नूतन स्वाद बहे
यह मोहक मानस पूर्ण पड़ा
रसपान करो पर याद रहे
जीवन की यही पिपासा हो
नित नूतन स्वाद चखो जग में
स्वयं को निर्लिप्त रखो पंक से
उज्ज्वल सदा रहो मग में ।
**************** :):)
बहुत सुंदर रचना ... तृप्त हुये पढ़ कर
छल छल कर छलक रहा रस स्रोत
ReplyDeleteप्रतिक्षण नूतन स्वाद बहे
यह मोहक मानस पूर्ण पड़ा
रसपान करो पर याद रहे....
वाह क्या बात है बहुत कुछ छिपा है इन खूबसूरत पंक्तियों में ....हर बार की तरह इस बार भी बेहतरीन रचना। :-)
हर तम के बाद उजास है
ReplyDeleteन क्लांत हो गर आस है
जीवन यह एक उल्लास है
बस ध्यान रहे यह मलिन न हो
कोई भार ह्रदय पे तनिक न हो :) लीजिए बजा दिया बैंड आपकी सुन्दर कविता का :)
mujhe lagta hai aapko follow karte karte ek din jarur main bhi bada kavi ban hi jaunga... kya shabd sanyojan hote hain... !! ek dum Pant type likhte ho aap:)
ReplyDeleteरवि रश्मि जनित गुरु ताप तपे
ReplyDeleteदुर्गम पथ पर चल अब श्रांत हुआ
मुख म्लान शिशिर -हत-पंकज सा
तब कंठ तृषातुर क्लांत हुआ.
अभी १५ तारीख को निराला जी को पढ़ रही थी....लगा अपना आशीष भी तो ऐसाइच लिखता है..... :)
जय हो महाराज ... लगे रहिए !
ReplyDeleteअहा, शब्दों का यह प्रवाह बहुत सुन्दर लग रहा है, कई बार पढ़ने का मन हुआ।
ReplyDeleteबहुत सरल और बहुत सीधे शब्दों में बहुत सुन्दर ढंग से लिखी गई, बहुत सुन्दर संदेश लिये हुई कविता है ...
ReplyDeleteजीवन के संघर्ष में मन को ढांढ़स बंधाती रचना।
ReplyDelete" उत्कृष्ट कविता " लिख तो दिया पर सच है कि समझ कई बार पढने के बाद ही आई , पता नहीं सही समझ आई कि गलत |
ReplyDeleteज्योतिहीन जीवन -जग में,
ReplyDeleteकंटक -कुल -संकुल मग में,
भटक भटक पद छिन्न हुए,
मुझ से मेरे भिन्न हुए .
सधी हुयी उकृष्ट रचना .....
मनोबल बढ़ाती अच्छी कविता 1!
ReplyDeleteरवि रश्मि जनित गुरु ताप तपे
ReplyDeleteदुर्गम पथ पर चल अब श्रांत हुआ
मुख म्लान शिशिर -हत-पंकज सा
तब कंठ तृषातुर क्लांत हुआ.
वाह! अप्रतीम रचना!
bhaai hindi mai to aap hi likhte hai jise sahity k category mai rakkha jaay. jo ek lambe samay tk padha jay..
ReplyDeletehav u changed ur no.
तृषातुर कंठ को अमृत पय से तृप्त करती अति सुन्दर रचना..
ReplyDeleteउत्कृष्ट...कई बार पढ़ा...कविता की यही साहित्यिक भाषा और लय भाती है...
ReplyDeleteज्योतिहीन जीवन -जग में,
ReplyDeleteकंटक -कुल -संकुल मग में,
भटक भटक पद छिन्न हुए,
मुझ से मेरे भिन्न हुए .
बहुत ही सुन्दर छंद बद्ध कविता आशीष जी...
हमेशा की तरह अद्वितीय
सादर
छल छल कर छलक रहा रस स्रोत
ReplyDeleteप्रतिक्षण नूतन स्वाद बहे
यह मोहक मानस पूर्ण पड़ा
रसपान करो पर याद रहे...
मुझे तो शास्त्रीय संगीत का संदेश लग रही है ...आपकी ये रचना ...
उत्कृष्ट ....सुंदर कविता ...
बेह्तरीन अभिव्यक्ति .बहुत अद्भुत अहसास.सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteदीपावली की हार्दिक शुभकामनाये आपको और आपके समस्त पारिवारिक जनो को !
मंगलमय हो आपको दीपो का त्यौहार
जीवन में आती रहे पल पल नयी बहार
ईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकार
लक्ष्मी की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार..
कमाल है ..लय बद्ध कविता जो कभी स्कूल में पढ़ा करते थे ...जिसका अर्थ शिक्षक आ कर समझते थे ...बहुत वक्त के बाद ऐसे पढ़ना अच्छा लगा ..बहुत खूब ....
ReplyDeleteबेहतरीन ... लय छंद का सुन्दर मिलन ... लाजवाब रचना ..
ReplyDeleteनिःसंदेह बहुत सुन्दर रचना है। काश कि आज के दौर में बाज़ार इस तरह की साहित्यिक रचनाओं के लिए अवसर पैदा कर दे, ठीक उसी तरह जैसे कि हॉलीवुड ने शेक्सपियर के साथ किया है। उम्मीद करता हूँ कि हिंदी के साथ भी ऐसा जल्द हो सकेगा। इतनी सुन्दर रचना का रसास्वादन कराने के लिए रचयिता को, तथा इस ब्लॉग से परिचय कराने के लिए आदरणीया नीता मेहरोत्रा जी को कोटिशः धन्यवाद।
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