रातः ,संध्या, सूर्य ,चन्द्रमा, भूधर, सिन्धु ,नदी ,नाला
जल, थल, नभ क्या है ? न जानता वर्षा, आंधी, हिम ज्वाला
विश्व नियंता कभी न देखा , पर इतना कह सकता हूँ
जिसने विश्व रचा है उसने ,प्रथम बनाई बधशाला
जल, थल, नभ क्या है ? न जानता वर्षा, आंधी, हिम ज्वाला
विश्व नियंता कभी न देखा , पर इतना कह सकता हूँ
जिसने विश्व रचा है उसने ,प्रथम बनाई बधशाला
कौन जानता है पल भर में , किसका क्या होने वाला
राजतिलक की ख़ुशी मची थी,, रंग-भंग सब कर डाला
दशरथ मरण राम वनवासी, सीता हरण भरत गृह त्याग
कुमति कैकयी के उर बैठी , घर में खोली बधशाला
कुषा पैर में चुभी तभी तो , उसका मूल मिटा डाला
ऐसा ही पागल होता है , सच्ची एक लगन वाला
स्वाभिमान का दिव्य देवता , कैसे निज अपमान सहे
महा हठी चाणक्य ने , खोली महानंद की बधशाला .
तड़प रहा बेताब पलंग पर, हुआ प्रेम में मतवाला
राजतिलक की ख़ुशी मची थी,, रंग-भंग सब कर डाला
दशरथ मरण राम वनवासी, सीता हरण भरत गृह त्याग
कुमति कैकयी के उर बैठी , घर में खोली बधशाला
कुषा पैर में चुभी तभी तो , उसका मूल मिटा डाला
ऐसा ही पागल होता है , सच्ची एक लगन वाला
स्वाभिमान का दिव्य देवता , कैसे निज अपमान सहे
महा हठी चाणक्य ने , खोली महानंद की बधशाला .
तड़प रहा बेताब पलंग पर, हुआ प्रेम में मतवाला
आती होगी आज पिऊंगा, दिलबर से दिल भर प्याला
उठा एकदम चिपट गया , तब काट पैतरा काट दिया
सैरन्ध्री बन भीमबली ने , खोली कीचक बधशाला
उठा एकदम चिपट गया , तब काट पैतरा काट दिया
सैरन्ध्री बन भीमबली ने , खोली कीचक बधशाला
दूर फेक दो तुलसी दल को . तोड़ो गंगा जल प्याला
दुआ फातिहा दान पुन्य का मरे नाम लेने वाला
मेरे मुंह में अरे डाल दो एक उसी सतलज की बूंद
जिसके तट पर बनी हुई है , भगत सिंह की बधशाला
मेरे मुंह में अरे डाल दो एक उसी सतलज की बूंद
जिसके तट पर बनी हुई है , भगत सिंह की बधशाला
अनोखी वधशाला ..बहुत सुन्दर लिखी है आपने इस रचना की पंक्ति आशीष जी ...इसको मैंने पढ़ा मधुशाला के अंदाज में :)
ReplyDeleteबडी अनोखी है आपकी बधशाला ....इस मन में रच बस गई
ReplyDeleteवाह आशीष जी....
ReplyDeleteलाजवाब..
मैंने भी इसे मधुशाला की तर्ज़ पर ही पढ़ा....
बहुत बढ़िया.
अनु
''ये गंगा और यमुना नर्मदा का दूध जैसा जल ...
ReplyDeleteहिमालय की अडिग दीवार और ये मौन विंध्याचल ...
बताती है आरावली की हमे यह शांत सी चोटी ....
यहीं राणा ने खाई देश हिट मे घास की रोटी ...
अगर इन रोटियों का ऋण चुकाना भी बगावत है ...
तो मैं ऐलान करता हूँ की मैं भी एक बागी हूँ ....''
बड़ी क्रांतिकारी ....ओजस्वी रचना ...
उत्कृष्ट काव्य ....!!
बहुत अच्छी रचना...
ReplyDeleteदूर फेक दो तुलसी दल को . तोड़ो गंगा जल प्याला
दुआ फातिहा दान पुन्य का मरे नाम लेने वाला
मेरे मुंह में अरे डाल दो एक उसी सतलज की बूंद
जिसके तट पर बनी हुई है , भगत सिंह की बधशाला
इसे पढ़कर निम्लिखित पंक्तियाँ याद आ गईं
मुझे तोड़ लेना वनमाली उस पथ पर देना तुम फेंक
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जाएँ वीर अनेक
मेरे मुंह में अरे डाल दो एक उसी सतलज की बूंद
ReplyDeleteजिसके तट पर बनी हुई है , भगत सिंह की बधशाला
अद्भुत .... मैं कहने ही वाली थी की ब्लॉग पर डालो ... कड़ियाँ यहाँ भी पोस्ट होती रहनी चाहिए ... आगे की कड़ी पढ़ चुकी हूँ फेसबुक पर ....
मेरे मुंह में अरे डाल दो एक उसी सतलज की बूंद
ReplyDeleteजिसके तट पर बनी हुई है , भगत सिंह की बधशाला
अद्भुत लिखा है .... आगे की कड़ियाँ भी पोस्ट करो ...
एकदम अनोखी रचना ..जिसमें जानकारी भी है और काव्य रस भी. मधुशाला की तर्ज़ पर पढ़ने में मजा आ गया.
ReplyDeleteइसकी तो पूरी श्रृंखला आनी चाहिए
Behad sundar!
ReplyDelete
ReplyDeleteदूर फेक दो तुलसी दल को . तोड़ो गंगा जल प्याला
दुआ फातिहा दान पुन्य का मरे नाम लेने वाला
मेरे मुंह में अरे डाल दो एक उसी सतलज की बूंद
जिसके तट पर बनी हुई है , भगत सिंह की बधशाला
आशीष ढेरों आशीष मन से निकले तुम्हारे लिये बहुत ही सुंदर कविता मुझे ये कहने में तनिक भी संकोच नहीं है कि तुम्हारी जितनी कविताएं मैं ने अभी तक पढी हैं ,ये सर्वश्रेष्ठ लगी मुझे ,,,,जियो ख़ुश रहो ! इसी तरह लिखते रहोगे तो एक दिन हिन्दी साहित्य के आकाश पर तुम्हारा नाम अवश्य चमकेगा इन्शा अल्लाह !!
वाह आशीषजी ...मेरी मानिये तो एक पूरी काव्य रचना कर डालिए इस विषय पर ..वाकई एक अनुपम प्रस्तुति है .....मधुशाला ..मधुबाला ...के बाद बधशाला... एक दिन आपकी यह कृति आपको बहुत मशहूर कर देगी ....बधाई इस उत्कृष्ट कृति के लिए ....:)
ReplyDeleteआशीष जी आपकी लेखनी से निकली इस बेहद सारगर्भित रचना को पढ़ कर बच्चन जी और उनकी मधुशाला हठात याद आ गई। आप इसे विस्तार दें। विषय और बिम्ब आपने बड़ा ही यूनिक चुना है। क्या पता कल की कोई मधुशाला सी कालजयी रचना ‘बधशाला’ इन मेकिंग हो!
ReplyDeleteसमेटे हुए अपने में कई युग,बहुत बहुत बहुत ही सुन्दर है ये बधशाळा
ReplyDeleteहमें बाँध लिया इसने तो,पढ़ते गए अंत तक बिना रुके।।
each n every line is just awesome ...
Regards
पहली बार पूरी समझ में आ गई सरलता से |
ReplyDeleteउत्कृष्ट भावों से भरपूर |
जय हो ... कविवर आपकी जय हो ... ;-)
ReplyDeleteगेयता लिए एक पूर्ण रचना .भगत सिंह शहीद हुए उनका वध नहीं हुआ था .बेतुका प्रयोग हटायें .
ReplyDeleteक्या बात है ....इस वधशाला के लिए इस खोजी की दृष्टी के लिए बस यही कहूँगी ..... चश्मेबद्दूर !!!
ReplyDeleteभावों की पूजा जगत सदा से करता आया..
ReplyDeleteये मधुशाला जैसी क्यों लग रही बध शाला ??
ReplyDeleteरचना की तो बात ही नहीं कर सकता, आशीष भैया ने लिखा मतलब बढ़िया तो होगा ही........:)
इतिहास बन चुकी वधशालाओं का,
ReplyDeleteखूब ज़िक्र है कर डाला,
विस्मृत भले ही कर दें सब,
पर भूलता नहीं इन्हें पढने वाला.
कैसी रही? गज़ब कविता है भाई जी. पढ के गदगद हो गयी.
क्या बात है वन्दना ,,माशा अल्लाह !!
Deleteसुन्दर रचना है।
ReplyDeleteसृष्टि का अनवरत घूमता चक्र मधुशाला और वधशाला के इर्द गिर्द संचालित हैं , किसी को दंभ ना हो ,कब क्या हो जाए . इतिहास पर दृष्टि के साथ सबक लेने को प्रेरित करती रचना .
ReplyDeleteआभार !
दूर फेक दो तुलसी दल को . तोड़ो गंगा जल प्याला
ReplyDeleteदुआ फातिहा दान पुन्य का मरे नाम लेने वाला
मेरे मुंह में अरे डाल दो एक उसी सतलज की बूंद
जिसके तट पर बनी हुई है , भगत सिंह की बधशाला ..
अनायास ही पुष्प की चाह याद आ गई ...
बहुत ही प्रभावी, हमेशा की तरह शशक्त रचना ...
दूर फेक दो तुलसी दल को . तोड़ो गंगा जल प्याला
ReplyDeleteदुआ फातिहा दान पुन्य का मरे नाम लेने वाला
मेरे मुंह में अरे डाल दो एक उसी सतलज की बूंद
जिसके तट पर बनी हुई है , भगत सिंह की बधशाला
....गज़ब! अनूठे काव्य संग्रह के लिए अग्रिम बधाई स्वीकार करें।
''कौन जानता है पल भर में , किसका क्या होने वाला''....सचमुच नियति हमें हर युग में उस सर्व शक्तिमान सत्ता का बोध कराती रही है ...बड़े सटीक उदाहरण और सुन्दर शब्दों से बनी कविता .. :)
ReplyDelete