राजनीति और धर्मनीति भी , भेद -निति में सबसे आला
काल प्रबल के आगे सब कुछ , भूल गया वो मतवाला
अतुलित बल योगेश अलौकिक , चक्र सुदर्शन धारी थे
उसी कृष्ण की एक वधिक ने , वन में खोली बधशाला
हुआ कलिंग विजय तब ही , जब लाखो का वध कर डाला
रण स्थली को देख शोक में , था अशोक वह मतवाला
यह अनर्थ हा ! यह अनर्थ क्या , एक जरा सी इच्छा थी '
पत्थर दिल को भी प्रियदर्शी ,कर देती है बधशाला
सबसे कहता फिरा जगत में , है तूफां आने वाला
मगर न माना सत्य किसी ने , समझा है भोला भाला
अरे वही मनु आदि पुरुष , तुम उसको नौवा या नूह कहो
बैठ नाव में देख चूका है , इस दुनिया की बधशाला
खिलजी ने चित्तोड़ मिटाने का, विचार ही कर डाला
पीना चाहे स्यार !सिंहनी , के हाथो ही से प्याला
जीते जी जल गई !सती के , नहीं धर्म को आंच लगी
वीर पद्मिनी के जौहर ने , खूब जगाई बधशाला
काल प्रबल के आगे सब कुछ , भूल गया वो मतवाला
अतुलित बल योगेश अलौकिक , चक्र सुदर्शन धारी थे
उसी कृष्ण की एक वधिक ने , वन में खोली बधशाला
हुआ कलिंग विजय तब ही , जब लाखो का वध कर डाला
रण स्थली को देख शोक में , था अशोक वह मतवाला
यह अनर्थ हा ! यह अनर्थ क्या , एक जरा सी इच्छा थी '
पत्थर दिल को भी प्रियदर्शी ,कर देती है बधशाला
सबसे कहता फिरा जगत में , है तूफां आने वाला
मगर न माना सत्य किसी ने , समझा है भोला भाला
अरे वही मनु आदि पुरुष , तुम उसको नौवा या नूह कहो
बैठ नाव में देख चूका है , इस दुनिया की बधशाला
खिलजी ने चित्तोड़ मिटाने का, विचार ही कर डाला
पीना चाहे स्यार !सिंहनी , के हाथो ही से प्याला
जीते जी जल गई !सती के , नहीं धर्म को आंच लगी
वीर पद्मिनी के जौहर ने , खूब जगाई बधशाला
एतिहासिक घटनाएँ ले कर खूब लिखी है बधशाला
ReplyDeleteशोक हुआ जब अशोक को , पिया अहिंसा का प्याला
नहीं सीखता कोई विगत से , जलती रहती है ज्वाला
नित- नित कर्म करें ऐसे , जगती बनती बधशाला ।
बहुत बढ़िया प्रयोग है ... अद्भुत रचना
बहुत ही अनूठा प्रयोग है ...वधशाला ..पढने में अच्छी लग रही है ..और सब इतिहास याद आ रहा है .लिखते रहे आगे भी इसको ..आशीष जी
ReplyDeleteबहुत बढ़िया आशीष जी......
ReplyDeleteवाकई आनंद आ रहा है पढ़ने में...(और समझ भी आ रहा है :)
अनु
vaah bhai...kitna anootha prayog..kitni vilakshan pratibha...bahut hi sundar kavita...aapke lekhan ke to hum pahle se fan hain...
ReplyDeletewah...Eshwar aap par sadev asheesh banaye rakhe..aur aaki lekhani yun hi anvarat chalti rahe...
yah ek adbhut granth banane ki sambhawana rakhati hai.
ReplyDeleteis lekhan ko salaam !
ReplyDeleteअद्भुत ..इतना अच्छा लगता है ये श्रृंखला पढ़ना कि लगता है खतम ही न हो.ऐतिहासिक घटनाओं के माध्यम से अनूठा सन्देश देती वधशाला.
ReplyDeleteहुआ कलिंग विजय तब ही , जब लाखो का वध कर डाला
रण स्थली को देख शोक में , था अशोक वह मतवाला
यह अनर्थ हा ! यह अनर्थ क्या , एक जरा सी इच्छा थी '
पत्थर दिल को भी प्रियदर्शी ,कर देती है बधशाला
ये तो बहुत ही उम्दा...
In rachnaon ko padhna bahut achha lag raha hai!
ReplyDeleteलय में बंधी सुंदर लग रही
ReplyDeleteइतिहास को कहती 'वधशाला'
बढ़ाते रहेंगे इसे निरंतर
बनेगी कालजयी ज्यूँ 'मधुशाला'|
मृत्यु वरण करती है सबका,
ReplyDeleteराजा हो या रजहारी।
Sabhi behatareen... hope dat u will continue wid it.. :)
ReplyDeleteआपकी वधशाला के दोनों भाग बहुत पसंद आये , बखूबी इतिहास की घटनाओं का उदाहरण देते हुए वधशाला का निर्माण किया है |
ReplyDeleteसादर
आशीष, इतना सुन्दर प्रयोग कर रहे हो, कि क्या कहें..शब्द चुक गये...बस पढते जाने का मन है. लगातार लिखो इसे.वधशाला जल्दी ही पुस्तक रूप ले लेगी, देखना.
ReplyDeleteनिसंदेह नए आयाम और कीर्तिमान स्थापित करेगी... प्रासंगिक और रोचक बधशाला... अभी और भी कड़ियों की प्रतीक्षा... पुराण से लेकर इतिहास और वर्तमान तक...
ReplyDeleteबहुत खूब...
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति..बधाई।।।
ReplyDeleteदोनों बधशाला को पढ़ते-पढ़ते यूँ लगा जैसे कक्षा में हूँ और सस्वर पाठ कर रही हूँ..फिर तन्द्रा भंग हुई तो अवाक हूँ..
ReplyDeleteउम्मीदों पे उतरे खरे सारे तंत्र, समाज में आये ऐसा बदलाव.
ReplyDeleteनए साल के पहले दिन से हमारा हो इस तरफ सार्थक प्रयत्न.
शुभकामनाओं के साथ...
मधुशाला के बाद बधशाला
ReplyDeleteबच्चन के बाद आशीष :))
मंगल कामनाएं आपको और नए वर्ष को भी ...
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआपके इस ब्लाॅग में पहली बार आया, अध्ययनशीलता का स्पष्ट प्रभाव आपके ब्लाॅग में दृष्टिगोचर हो रहे हैं, ब्लाॅगिया लीक से हटकर कविताओं में आपने जिस प्रकार शब्द चयन किया है वह अच्छा लगा.
ReplyDeleteआपको फालो कर रहे हैं अब बिना यहां कमेंट हाजिरी के नये पोस्टों को पढ़ते रहेंगें.
ऐतिहासिक घटनाओं को बेहद प्रभावशाली ढंग से संजोये हुए यह "वधशाला "
ReplyDeleteपहली बार यहाँ आना हुआ, अच्छा लगा ...
सादर !
बधशाला का अगला भाग पढ़ने आया था।
ReplyDeleteखिलजी ने चित्तोड़ मिटाने का, विचार ही कर डाला
ReplyDeleteपीना चाहे स्यार !सिंहनी , के हाथो ही से प्याला
जीते जी जल गई !सती के , नहीं धर्म को आंच लगी
वीर पद्मिनी के जौहर ने , खूब जगाई बधशाला ...
अध्बुध ... आपकी कलम का जोहर भी किसी से कम नहीं है ... पुरातन इतिहास के गर्वीले पल गुनगुनाने लायक हैं सभी ... लाजवाब ...