आस्तीन में सांप छिपा तब , क्या करता करने वाला
बिठा पालकी में धोखॆ से , उसे निहत्था कर डाला
रहा मांगता ! अंत समय तक , मिली नहीं तलवार उसे
कांप उठी थी निर्दयता भी , लख "टीपू " की बधशाला
कारतूस जब गाय सूअर की , चर्बी वाला दे डाला
भड़क उठे ! भारत के सैनिक , अरे विधर्मी कर डाला
मंगलपांडे नहीं सह सका , ह्युसन का संहार किया
फिर सत्तावन की ज्वाला , बन गई भयंकर बधशाला
दत्तक पुत्र प्रथा को जब , डलहौजी ने रद कर डाला
था कितने ही राजाओं का, वंश नाश होने वाला
जितनी थी संतानहीन , रियासतों से सर्वस छीना
ब्रिटिश छत्र में राज मिलाया , बना राज्य की बधशाला
हुआ ग्वालियर विजय, सिंधिया ,भाग गया दिल का काला
डूब गया फिर रास रंग में , हाय पेशवा मतवाला
समझाया पर एक न मानी, वीर लक्ष्मीबाई की
स्वतंत्रता की हृदयहीन , बन गए स्वयं ही बधशाला
लगी हाथ में गोली !उसने , हाथ कलम ही कर डाला
फेंक दिया गंगा में सहसा , बोल उठा जय मतवाला
अस्सी वर्ष का बूढ़ा होगा , कौन कुंवरसिंह सा नाहर
जिधर उठाई आंख उधर बन , गई पलक में बधशाला
है कोई हरदयाल सरीखा , आजादी का मतवाला
हो सशस्त्र विद्रोह लगी थी , यही एक उर में ज्वाला
इसी ध्येय पर तूने अपना , तन मन धन सब वार दिया
तेरे ! ही पीछे जीवन भर , रही घुमती बधशाला
ये आज़ादी की कथा की अनोखी है ...बधशाला
ReplyDeleteस्वतंत्रता संग्राम के नाम रही यह बधशाला.
ReplyDeleteबहुत मजा आता है यह पढ़ने में और अपने इतिहास की जानकारी भी मिलती है.
बहुत ही सुन्दर जी यह वधशाला
ReplyDeleteखोल रही एक-एक करके, मस्तिष्क का बन्द ताला
ReplyDeleteबहुत कुछ रिमाइंड करती, ये "आशीष" की बधशाला...
आजादी की गाथा,
ReplyDeleteबन गयी बधशाला
हर पंक्ति बेजोड़
हर दिल की धड़कन
बन जाएगी ये बध शाला
बहुत ही बढ़िया....
ReplyDeleteज्ञान,कथा, कहानी ,कविता सबका रस एक साथ...
अनु
अब हम कुछ नहीं कहेंगे बस.
ReplyDeleteकितनी वधशालायें झेली,
ReplyDeleteइन दंशों की अग्नि विषैली।
बहुत प्रभावी प्रस्तुति...
ReplyDeleteप्रभावी...... बहुत पीड़ादायक रहा है यह सब......
ReplyDeleteबेहद उपयोगी, प्रभावशाली रचना ...
ReplyDeleteबहुत खूब...
ReplyDeleteकारतूस जब गाय सूअर की , चर्बी वाला दे डाला
ReplyDeleteभड़क उठे ! भारत के सैनिक , अरे विधर्मी कर डाला
मंगलपांडे नहीं सह सका , ह्युसन का संहार किया
फिर सत्तावन की ज्वाला , बन गई भयंकर बधशाला ...
सभी छंद अनोखा रस लिए हैं ... जोशो-खरोश का निर्माण करते ... आज़ादी के दीवानों की यादें ताज़ा कराते ...
ऐतिहासिक घटनाओं को कहती है तेरी यह वधशाला
ReplyDeleteलिख सकता है ये सब केवल कोई मतवाला
वीर सेनानियों ने कैसे जीवन अपना होम कर डाला
पढ़ने को आकुल रहती हूँ हर दम तेरी वधशाला ।
:):):)
उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteये वधशाला चलते-चलते आज तक पहुंची तो मैं कल्पना भी नहीं कर पा रही हूँ कि आप किसे और कितना समेटेंगे . ये तो आपके ही वश की बात होगी . एक उत्सुकता , प्रतीक्षा भी .
ReplyDeleteअमृता जी की बात से सहमत .....शुभकामनायें ...लिखते जाएँ ।
ReplyDeleteबधशाला तो खंड-काव्य बनने की ओर अग्रसर है. बहुत ही प्रभावोत्पादक रचना. आशीष जी के अपनी रचनाओं को प्रकाशित न करवाने और मीडिया से दूरी बना कर रहने के विचारों से मैं पूर्णतः असहमत हूँ. जो इंटरनेट सेवी नहीं और आज भी छपा हुआ ही पढ़ते हैं, क्या उन्हें इस सौन्दर्य के आस्वादन का अधिकार नहीं?
ReplyDeleteहर चार कदम पर किसी नयी ज्वाला से निकला हुआ अंगारा ... नया इतिहास ...अलग अध्याय ... :)
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