Thursday, January 17, 2013

बधशाला-3



आस्तीन में सांप छिपा तब , क्या करता करने वाला
बिठा पालकी में धोखॆ से , उसे निहत्था कर डाला
रहा मांगता ! अंत समय तक , मिली नहीं तलवार उसे
कांप उठी थी निर्दयता भी , लख "टीपू " की बधशाला



कारतूस जब गाय सूअर की , चर्बी वाला दे डाला
भड़क उठे ! भारत के सैनिक , अरे विधर्मी कर डाला
मंगलपांडे नहीं सह सका , ह्युसन का संहार किया
फिर सत्तावन की ज्वाला , बन गई भयंकर बधशाला



दत्तक पुत्र प्रथा को जब , डलहौजी ने रद कर डाला
था कितने ही राजाओं का, वंश नाश होने वाला
जितनी थी संतानहीन , रियासतों से सर्वस छीना
ब्रिटिश छत्र में राज मिलाया , बना राज्य की बधशाला



हुआ ग्वालियर विजय, सिंधिया ,भाग गया दिल का काला
डूब गया फिर रास रंग में , हाय पेशवा मतवाला
समझाया पर एक न मानी, वीर लक्ष्मीबाई की 
स्वतंत्रता की हृदयहीन , बन गए स्वयं ही बधशाला

लगी हाथ में गोली !उसने , हाथ कलम ही कर डाला
फेंक दिया गंगा में सहसा , बोल उठा जय मतवाला 
अस्सी वर्ष का बूढ़ा होगा , कौन कुंवरसिंह सा नाहर
जिधर उठाई आंख उधर बन , गई पलक में बधशाला 

है कोई हरदयाल सरीखा , आजादी का मतवाला 
हो सशस्त्र विद्रोह लगी थी , यही एक उर में ज्वाला 
इसी ध्येय पर तूने अपना , तन मन धन सब वार दिया 
तेरे ! ही पीछे जीवन भर , रही घुमती बधशाला

19 comments:

  1. ये आज़ादी की कथा की अनोखी है ...बधशाला

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  2. स्वतंत्रता संग्राम के नाम रही यह बधशाला.
    बहुत मजा आता है यह पढ़ने में और अपने इतिहास की जानकारी भी मिलती है.

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  3. बहुत ही सुन्दर जी यह वधशाला

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  4. खोल रही एक-एक करके, मस्तिष्क का बन्द ताला
    बहुत कुछ रिमाइंड करती, ये "आशीष" की बधशाला...

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  5. आजादी की गाथा,
    बन गयी बधशाला
    हर पंक्ति बेजोड़
    हर दिल की धड़कन
    बन जाएगी ये बध शाला

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  6. बहुत ही बढ़िया....
    ज्ञान,कथा, कहानी ,कविता सबका रस एक साथ...

    अनु

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  7. अब हम कुछ नहीं कहेंगे बस.

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  8. कितनी वधशालायें झेली,
    इन दंशों की अग्नि विषैली।

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  9. बहुत प्रभावी प्रस्तुति...

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  10. प्रभावी...... बहुत पीड़ादायक रहा है यह सब......

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  11. बेहद उपयोगी, प्रभावशाली रचना ...

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  12. कारतूस जब गाय सूअर की , चर्बी वाला दे डाला
    भड़क उठे ! भारत के सैनिक , अरे विधर्मी कर डाला
    मंगलपांडे नहीं सह सका , ह्युसन का संहार किया
    फिर सत्तावन की ज्वाला , बन गई भयंकर बधशाला ...

    सभी छंद अनोखा रस लिए हैं ... जोशो-खरोश का निर्माण करते ... आज़ादी के दीवानों की यादें ताज़ा कराते ...

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  13. ऐतिहासिक घटनाओं को कहती है तेरी यह वधशाला
    लिख सकता है ये सब केवल कोई मतवाला
    वीर सेनानियों ने कैसे जीवन अपना होम कर डाला
    पढ़ने को आकुल रहती हूँ हर दम तेरी वधशाला ।

    :):):)

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  14. उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...

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  15. ये वधशाला चलते-चलते आज तक पहुंची तो मैं कल्पना भी नहीं कर पा रही हूँ कि आप किसे और कितना समेटेंगे . ये तो आपके ही वश की बात होगी . एक उत्सुकता , प्रतीक्षा भी .

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  16. अमृता जी की बात से सहमत .....शुभकामनायें ...लिखते जाएँ ।

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  17. बधशाला तो खंड-काव्य बनने की ओर अग्रसर है. बहुत ही प्रभावोत्पादक रचना. आशीष जी के अपनी रचनाओं को प्रकाशित न करवाने और मीडिया से दूरी बना कर रहने के विचारों से मैं पूर्णतः असहमत हूँ. जो इंटरनेट सेवी नहीं और आज भी छपा हुआ ही पढ़ते हैं, क्या उन्हें इस सौन्दर्य के आस्वादन का अधिकार नहीं?

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  18. हर चार कदम पर किसी नयी ज्वाला से निकला हुआ अंगारा ... नया इतिहास ...अलग अध्याय ... :)

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