ऊपर के लिंक को क्लिक करके आप बधशाला का शस्वर पाठ सुन सकते है.
भीष्म पितामह सा व्रत धारी, था दिलेर वह दिलवाला
डाली आज़ादी ने जिसके , गले में खूब विजयमाला
पर -वाना बनकर दीवाना, हा ! अनंत की ओर उड़ा
अरे दैव ! निर्दयी खोल दी , क्या सुभाष की बधशाला
इधर उठा अफगान उधर , बंगाल मस्त था मतवाला
कश्मीर से कन्याकुमारी , तक फैली जीवन की ज्वाला
बालक. बूढ़े, युवा, युवतियां , बने देश के दीवाने
अरे गुलामी की खोली थी , हमने जिसदिन बधशाला
"करो मरो" के मूलमंत्र की , जाग उठी जिस दम ज्वाला
सोता शावक जाग उठा था , तब नींद से मतवाला
बांध कफ़न सर से दीवाने , करने को बलिदान चले
अट्टहास करती रणचंडी , देख देख कर बधशाला
कुछ दिन तक तो दुनिया से , इसे अलग था कर डाला
अरे ! जहाँ "चित्तू पांडे" का ,रहा खूब शासन आला
कौन भूल जायेगा ! बोलो, बलिया का बलिदान अमर
बम बरसाकर अंग्रेजों ने , जहाँ बनाई बधशाला .
बहुत अद्भुत बधशाला
ReplyDeleteऔर शिखा जी की आवाज भी अच्छी लगी ...आभार आपका सुनवाने के लिए
वधशाला के लिए हिस्ट्री की पूरी बुक आत्मसात हो जाएगी...बहुत बढ़िया रचना तैयार हो रही है|
ReplyDeletemaine aapko bola hai ki aapka kuch andaj dinkar ki tarah hai. aap bahut calassic likte ho.
ReplyDeletebadhai
बहुत सुन्दर ...इतिहास में कितना कुछ घटित हुआ ...जो कितनों को नहीं पता ...पर आपकी यह श्रंखला ....कितना जीवंत कर देती है सब कुछ ...और बधशाला की क्रूर हकीक़त बयान करती है ...बहुत ही सुन्दर ...
ReplyDeleteबधशाळा के इस अनुपम रूप को मेरा प्रणाम .....
ReplyDeleteबहुत ही प्रभावशाली है आपकी बधशाला ..... ऐसी रचनाओं की आवश्यकता है
शुभकामनाएं !!
अभूतपूर्व .....
ReplyDeleteएक कालजायी कृति ।
शुभकामनायें ....
बहुत सुंदर।
ReplyDeleteअद्भुत और विचारणीय ढंग से रची बधशाला..... हर बार मन को छू जाती है .....
ReplyDeleteइस वधशाला की पूरी पुस्तक आनी चाहिए.
ReplyDeleteअद्भुत है.
एक बेहतरीन रचना, बधशाला का विस्तार देखते बनता है। अब तो स्थानीय नायकों को शामिल कर आपने इसे व्यापक रूप दिया है। सच में यह एक कालजयी कृति हो रही है।
ReplyDeleteज़ारी रखे ......सादर
ReplyDeleteकाव्यानुभूति शब्द की खोज में है..
ReplyDeleteजबरजस्त रचना, हर बार एक नया प्रभाव छोड़ जाती है कविता।
ReplyDeleteइतनी प्रभावशाली अभिव्यक्ति
ReplyDeleteके लिए साधुवाद.....
साभार....
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क्या बात.....
ReplyDeleteबाजुओं में उबाल ले आती है रचना ...
ReplyDeleteअत्यंत प्रभावशाली ... गौरवमयी रचना ...
आने वाले समय में... हमको ये गौरव हासिल होगा कहने का...की फलां पुरूस्कार से सम्मानित रचना और रचनाकार की रचना को हमने अपनी आँखों से रचित होते हुए देखा था...
ReplyDeleteतहे दिल से ये कामना है दादा... और.. आपकी उत्कृष्टता हमारे शब्दों की मोहताज नहीं किन्तु फिर भी... अद्भुत और उत्कृष्ट !
ऐसा नहीं है कि वधशाला कोई पढ़ता नहीं लेकिन टिप्प्णी करना इतना कठिन हो गया है कि लोग पढ़ कर और सिर धुन कर चले जाते हैं
ReplyDeleteआने वाला समय इस रचना की महत्ता को सिद्ध करेगा आशीष
पढ़ा था ..विचारों के दिव्य्कक्ष से अवतरण विशिष्ट जनो में होता है… अगर शिद्दत से कोई विचारों की उच्च कक्षा के लिए प्रयत्नशील हो ..तो वो भी धीरे धीरे विशिष्ट बन जाता है ..आपको विशिष्ट बनते देखना एक सुखद अनुभव है ....प्रत्यक्षम किम प्रमाणं भाई ..आप और आपकी वधशाला यशस्वी बने और हम हर बढ़ते कदम के साक्षी ...इस गौरव पूर्ण भागीदारी के लिए स्नेहाशीष के साथ मुन्नू सा आभार भी ले ही लिजिये…
ReplyDeleteअरे क्या बात है!! आशीष, तुमने बताया क्यों नहीं, कि वधशाला की पॉडकास्टिंग की है शिखा न? हम तो ये वाली पोस्ट पढ/सुन ही नहीं पाये थे :(
ReplyDeleteयह कैसे रह गयी पढ़ने से ??????? आज चिट्ठा चर्चा पर पढ़ा .... शिखा ने भी काफी अच्छा प्रयास किया है ...
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