Wednesday, July 31, 2013

बधशाला -12

इसको कहते है ! पत्थर दिल नहीं एक आंसू ढाला
कर्मयोग में ऐसा ही , बन जाता कर्मठ मतवाला
मोरध्वज के अंतिम धर्म की , उपमा मिलनी महा कठिन
मात- पिता निज सुत की खोले. हर्षित होकर बधशाला



बोला सुत को बांध खंभ से , हिरनकश्यप मतवाला
बता कहाँ भगवान छिपा है , कर बैठा क्या मुंह काला
कहा भक्त ने असुर निकंदन , आओ काटो मम बंधन
प्रकट तपोबल तभी हुआ, खोली पशुबल की बधशाला



गया चोर की तरह भीरु ने , कर्म कलंकित कर डाला
अमर हुआ तो क्या? माथे का, , घाव नहीं भरने वाला
अरे निकर अश्व्स्थामा क्यों , धर्म युद्ध बदनाम किया
द्रोपदी के सुत सोये सुख मय,. नींद खोल दी बधशाला

15 comments:

  1. कर्मयोग और विस्तार से सूक्ष्मता की ओर ......आध्यात्म से जुड़ती निरंतर ......हृदय झकझोरती बधशाला ......
    ज्ञान का सागर बनती जा रही है ये ....!!
    बहुत सुंदर ज्ञानवर्धक श्रिंखला.....आशीष भाई ....!!

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  2. सुन्दर श्रृंखला की एक और प्रभावशाली कड़ी!

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  3. अपनी -अपनी है बधशाला । किसी ने की धर्म के निम्मित, तो कोई अहंकार में भरा !

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  4. बेहतरीन !!! बस और कुछ नहीं !!

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  5. भक्तों की भी कठिन परीक्षा
    लेते हैं भगवान सदा
    उदाहरणों के माध्यम से
    सिखा रही है बधशाला

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  6. इतिहास के अध्याय ऐसे ही क्षत विक्षत पड़े हैं विकारों से, वधशाला ने सब देखा है।

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  7. न जाने इतिहास में कितनी वधशालाएं दबी हैं ... सुंदर प्रस्तुति

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  8. BAHUT BAHUT SUNDAR ..BEHTREEN LIKH RAHE HAIN AAP ASHISH IS KO ..BAHUT ROCHAK TAREEKE SE ..PADHNA ACCHA LAGTA HAI ISKO ..SHUKRIYA

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  9. धर्म के आड़ लेकर अहंकारी हर युग में बध शाला का निर्माण किया
    latest post,नेताजी कहीन है।
    latest postअनुभूति : वर्षा ऋतु

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  10. कविता का असली रूप तो भैया जी आपके ब्लॉग पर दीखने को मिलता है :)

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  11. बढ़ते चलो इस बधशाला के साथ ...

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  12. Aapki ye shrinkhala padhke mai nistabdh ho jatee hun...kya comment karun?

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  13. घाव नहीं भरने वाला
    बधशाला से जो इतना बहा है हाला..

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