किस का मुंह पकड़ा जाता है , जो चाहा सो कह डाला
दिल पर रख के हाथ जरा तो , सोचे कोई दिलवाला
जिसे समझते जुल्म ! यही है. मूल मंत्र आजादी का
रूह जिस्म में कैद , उसे , आजाद कराती बधशाला
जीवन को आदर्श बनाये , विश्व प्रेम का पी प्याला
हिम्मते मर्द मदद ख़ुदा की ,सदा गान करने वाला
ताल ठोक चढ़ जाये जो . अमर ध्येय की सीढ़ी पर
ऐसे ही वीरों का स्वागत , करती मेरी बधशाला
परहित जो पीड़ा सहता है, होता कोई दिलवाला
है आनंद उसी में उसको. जीवन सुखद बना डाला
जग में जितने हुए सुधारक , अब है या आगे होंगे
चले धार पर तब सुधार का , पाठ पढ़ाती बधशाला .
शब्दों की पीड़ा तो शारीरिक पीड़ा से कहीं अधिक होती है..सुन्दर और प्रभावशाली वर्णन।
ReplyDeletebahut badhiya.... prerna deti
ReplyDeleteचले धार पर तब सुधार का , पाठ पढ़ाती बधशाला ......अनुशासन हर जगह आवश्यक है .... सुन्दर पंक्तियाँ .. :)
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(13-7-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
ReplyDeleteसूचनार्थ!
बहुत ही बढ़िया ..... प्रेरणादायक
ReplyDeleteपाठ पढ़ाती बधशाला......
ReplyDeleteबहुत बढ़िया....
अनु
ताल ठोक चढ़ जाये जो . अमर ध्येय की सीढ़ी पर
ReplyDeleteऐसे ही वीरों का स्वागत , करती मेरी बधशाला
अद्भुत , अतुलनीय है आपकी वधशाला.
और आगे बढ़ो ....एक अद्दभुत संग्रह की ओर अग्रसर हो
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ReplyDeleteजीवन को आदर्श बनाये , विश्व प्रेम का पी प्याला
हिम्मते मर्द मदद ख़ुदा की ,सदा गान करने वाला
ताल ठोक चढ़ जाये जो . अमर ध्येय की सीढ़ी पर
ऐसे ही वीरों का स्वागत , करती मेरी बधशाला
Lagta hai padhtee hee chali jaun....
वाह!
ReplyDeleteजीवन की मधुशाला !
ReplyDeletePrabhavshali ,bahut sunder ......
ReplyDeleteपढ रहे हैं लगातार...
ReplyDeletebahut umda
ReplyDeleteबहुत उम्दा...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteधार पर चले बिना सुधार कहाँ?
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