महापुरुष जो भी जब आया , जग को समझाने वाला
निष्ठुर जग ने , उसे न जाने , किस किस विपदा में डाला
अपनी अपनी कह कर कितने , चले जायेंगे ! चले गए
बनी रहेगी पागल दुनिया , बनी रहेगी ! बधशाला.
कपडे रंग डाले तो क्या है, दिल तो है तेरा काला
बैठ जनाने घाट जपे क्या , राम नाम की तू माला
छोड़ चुका घर बार अरे ! , तो फिर कैसे चेला चेली
हाय गंग के तीर खोल दी , राम नाम की बधशाला
आग लगा दे जटा जूट में ,फेंक कमंडल मृग छाला
जीता जल जा ! कर्मवीर हो ,कर्मयोग में मतवाला
इससे बढ़कर तपोभूमि क्या , तुझे मिलेगी दुनिया में
खाक रमाले, रम जाएगी , रोम रोम में बधशाला .
निष्ठुर जग ने , उसे न जाने , किस किस विपदा में डाला
अपनी अपनी कह कर कितने , चले जायेंगे ! चले गए
बनी रहेगी पागल दुनिया , बनी रहेगी ! बधशाला.
कपडे रंग डाले तो क्या है, दिल तो है तेरा काला
बैठ जनाने घाट जपे क्या , राम नाम की तू माला
छोड़ चुका घर बार अरे ! , तो फिर कैसे चेला चेली
हाय गंग के तीर खोल दी , राम नाम की बधशाला
आग लगा दे जटा जूट में ,फेंक कमंडल मृग छाला
जीता जल जा ! कर्मवीर हो ,कर्मयोग में मतवाला
इससे बढ़कर तपोभूमि क्या , तुझे मिलेगी दुनिया में
खाक रमाले, रम जाएगी , रोम रोम में बधशाला .
वाह.....
ReplyDeleteबेमिसाल बधशाला....................
अनु
वाह!
ReplyDeletebehtreen bahut sahi ...कपडे रंग डाले तो क्या है, दिल तो है तेरा काला
ReplyDeleteबनी रहेगी पागल दुनिया , बनी रहेगी ! बधशाला.....
ReplyDeleteबने रहेंगे पढ़ने वाले , याद रहेगी ! बधशाला .... :)
ऐसे ही बस लिखता चल जीवन के सच को मतवाला
ReplyDeleteआनेवाला युग दोहराएगा तेरी निर्मित बधशाला
जोरदार...वाह! अब आ ही गये पूरे रंग में..जय हो।
ReplyDeleteBadhashaala bahut achchhi hai.........
ReplyDeleteबनी रहेगी पागल दुनिया , बनी रहेगी ! बधशाला.वाह !!
ReplyDeleteउत्कृष्ट रचना !! आपकी बधशाळा मील का पत्थर साबित हो ऐसी शुभकामना है !!
एक बहुत बड़ा सच है यह, हर जगाने वाले की उपेक्षा की गयी है यहाँ।
ReplyDeleteकर्म वीर हो जा मतवाला ....
ReplyDeleteकर्म करे और रहे मगन ...
कर्म कांड का पाठ पढ़ती .....
बढ़ती चलती बाधशाला ...!!
सुंदर चल रही है ये कड़ी ...!!
ओज़स्वी ...
ReplyDeleteसमय रहते युगपुरुष का भान नहीं करता समाज ...
पर फिर भी मतवाले होते हैं चलना ही जिनका काम है ... राष्ट्र वेदी पे चुपके चुपके जलना जिनका काम है ...
महापुरुष जो भी जब आया , जग को समझाने वाला
ReplyDeleteनिष्ठुर जग ने , उसे न जाने , किस किस विपदा में डाला
अपनी अपनी कह कर कितने , चले जायेंगे ! चले गए
बनी रहेगी पागल दुनिया , बनी रहेगी ! बधशाला.
क्या कहने हैं!!
यूँ की लिखते रहो :)
ReplyDeleteअति सुन्दर..
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