जीवन का कटु यथार्थ है , सांप सीढ़ी का खेल
त्रासदी है मानव जीवन की, इन संपोलो से मेल
मनुष्य और सर्प के रिश्ते , है बो गए विष बेल
ना जाने कितने अश्वसेन, कितने विश्रुत विषधर भुजंग
बढ़ा रहे शोभा कुटिल ह्रदय की, जैसे वो उनका हो निषंग
ताक में रहता है वो , कब छिड़े महाभारत जैसा कोई प्रसंग
है जरुरत इस धरा को , जन्मेजय के पुनः अवतरण का
पाने को, गरल से छुटकारा,है जरुरत अमिय के वरण का
या फिर जरुरत है हमे , हम अनुसरण करे महान करण का
अगर मानव हो सतर्क , वो गरल वमन नहीं कर सकता है
लाख कोशिशे , लाख जतन, प्रत्यंचा पर नहीं चढ़ सकता है
कर हन्त, कुटिल विषदंत का , जीवन आगे बढ़ सकता है.
यू तो सोपान भी है प्रतीक , मनुष्य के अभिमान का
जो रह गए , उसे चिढाती,जो चढ़ गए ,उनके सम्मान का
हे मानव , सुधि लो, वक्त है सांप सीढ़ी के बलिदान का
त्रासदी है मानव जीवन की, इन संपोलो से मेल
मनुष्य और सर्प के रिश्ते , है बो गए विष बेल
ना जाने कितने अश्वसेन, कितने विश्रुत विषधर भुजंग
बढ़ा रहे शोभा कुटिल ह्रदय की, जैसे वो उनका हो निषंग
ताक में रहता है वो , कब छिड़े महाभारत जैसा कोई प्रसंग
है जरुरत इस धरा को , जन्मेजय के पुनः अवतरण का
पाने को, गरल से छुटकारा,है जरुरत अमिय के वरण का
या फिर जरुरत है हमे , हम अनुसरण करे महान करण का
अगर मानव हो सतर्क , वो गरल वमन नहीं कर सकता है
लाख कोशिशे , लाख जतन, प्रत्यंचा पर नहीं चढ़ सकता है
कर हन्त, कुटिल विषदंत का , जीवन आगे बढ़ सकता है.
यू तो सोपान भी है प्रतीक , मनुष्य के अभिमान का
जो रह गए , उसे चिढाती,जो चढ़ गए ,उनके सम्मान का
हे मानव , सुधि लो, वक्त है सांप सीढ़ी के बलिदान का
बहुत सही वर्णन किया है, आज के युग का और फिर क्यों न हो? युग दृष्टि से ही अवलोकन हो सकता है इस विश्व का और उसके जन जीवन का.
ReplyDeleteबहुत यथार्थ वर्णन किया है.
अगर मानव हो सतर्क , वो गरल वमन नहीं कर सकता है
ReplyDeleteलाख कोशिशे , लाख जतन, प्रत्यंचा पर नहीं चढ़ सकता है
कर हन्त, कुटिल विषदंत का , जीवन आगे बढ़ सकता है.
आशीष जी ,
मानव चाहे तो सब कर सकता है पर आज अपने स्वार्थ के कारण केवल गरल ही बचा है वमन के लिए .. और वमन की आदत भी कुछ ज्यादा हो गयी है ...:):)
बहुत सुन्दर प्रेरणादायक रचना ...काश इस पर पढ़ कर हर कोई मनन करे ....उत्कृष्ट शब्द संयोजन के लिए साधुवाद
.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर तरीके से आपने अपनी बात रखी है। जरूरत है जागरूक होने की । एक जागरूक नागरिक , किसी तरह के भुलावे में आकर पथ से विमुख नहीं हो सकता।
चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग।
इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार।
.
बेहद खूबसूरती से अपनी बात कही है। प्रेरक रचना।
ReplyDeleteak prerana dayak va sabki aankhen kholne me sxam aapki yah rahna jaroor rang layegi.
ReplyDeletepoonam
अगर मानव हो सतर्क , वो गरल वमन नहीं कर सकता है
ReplyDeleteलाख कोशिशे , लाख जतन, प्रत्यंचा पर नहीं चढ़ सकता है
कितनी सकारात्मक पंक्तियाँ है एक सुकून सा पहुंचती हुई ..पर कहाँ हो पाता है ऐसा गरल वमन हर मोड पर है .
जीवन दर्शन दर्शाती हुई बेहद प्रभावी रचना.
@रेखा जी
ReplyDeleteसही कहा आपने .
@संगीता जी
स्वार्थ ही सबसे बड़ा दुश्मन है .
@दिव्या जी
पाठ से विचलन ही मुख्य कारण है हमारे पतन का .
@वंदना जी
पधारने के लिए आभार .
@पूनम जी
इंतजार रहेगा उस दिन का
@मनोज जी
धन्यवाद
@शिखा जी
गरल की पहचान , आज की जरुरत .
जीवन का कटु यथार्थ है , सांप सीढ़ी का खेल
ReplyDeleteत्रासदी है मानव जीवन की, इन संपोलो से मेल
मनुष्य और सर्प के रिश्ते , है बो गए विष बेल ...
ये त्रासदी नही मानव का प्रपंच है ... मानव खुद ही पालना चाहता है ऐसे रिश्ते क्योंकि वो डसना चाहता है इक दूजे को ...
बहुत सुन्दर विचारणीय रचना.
ReplyDeleteसुख और दुख को व्यक्त करते प्रतिमान, जीवन के खेल-पटल पर।
ReplyDeleteसुंदर भावों को प्रकट करने के लिए सुंदर शब्दों का संयोजन कविता को और ज्यादा सार्थक बना रहा है।...शुभकामनाएं...
ReplyDeletebahut hi sahi likha hai prerak rachna
ReplyDeleteमेरी हिंदी बहोत ही कमज़ोर है... हालांकि मुझे टाइम लगा है समझने में... आपकी रचना... लेकिन जब समझ में आई ... तो मूंह से वाह... ही निकला...
ReplyDeleteप्रभावपूर्ण
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत, प्रेरक और विचारणीय रचना प्रस्तुत किया है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
ReplyDelete@नासवा जी
ReplyDeleteआपसे सहमत हूँ.
@समीर जी
धन्यवाद
@प्रवीण जी
जीवन के खेल में विष मानवों का प्रतिकार होना जरुरी है .
@महेंद्र जी
आभार आपका .
@दीप्ति जी
शुक्रिया
@महफूज भाई
ReplyDeleteकुछ ज्यादा नहीं हुआ?? हा हा
@अरविन्द जी
शुभागमन
@बबली जी
धन्यवाद पधारने के लिए
@राजभाषा जी
लक्ष्य साधक बनने की चेष्टा में हूँ.
आशीष भाई, आज के हालात का सटीक चित्रण किया है आपने।
ReplyDelete................
.....ब्लॉग चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
respected asheeshji......is kavita ko padhkar itana hi kahoogi ki aapki pratibha ko naman,
ReplyDeleteयू तो सोपान भी है प्रतीक , मनुष्य के अभिमान का
जो रह गए , उसे चिढाती,जो चढ़ गए ,उनके सम्मान का
wahhhhhhh!!!!!!!!!!!!
kitani sahajta se prastut kiya hai jeevan ke yatharth ko ,aapka abhar.
अति सुन्दर..
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