कही दबंग, कही बाहुबलि , कही गैंगस्टर , कही खलीफा
आजकल वो सर्व प्रिय है , सरकार भी देती उनको वजीफा
नवयौवन के उत्साह का , वे है सच्चे पथ प्रदर्शक
प्रखर है उनकी जीवनचर्या, है सम्मानित और आकर्षक
वो हर जगह पूज्यमान है , हो झुमरी तलैया या फिर रोम
कुछ श्वेत वस्त्र को करते सुशोभित , कुछ गाते है हरिओम
तुम, साम दाम दंड भेद , के निपुण उपयोग कर्ता हो
हो कुबेर तुम, विश्वकर्मा भी , सफ़ेद पोशो के भर्ता हो
तुम अमर बेलि , तुम समदर्शी , तुम हो चक्रवर्ती निष्कंटक
तुम ही तो हो प्रेरणा के स्रोत अपने, और राजयोग के भंजक
हे धवल वस्त्र धारक, जीवन संहारक, तुम ही दिव्य आत्मा हो
हे मानव कुल श्रेष्ठ ,स्वयं ही बताओ, कैसे आपका खात्मा हो
आजकल वो सर्व प्रिय है , सरकार भी देती उनको वजीफा
नवयौवन के उत्साह का , वे है सच्चे पथ प्रदर्शक
प्रखर है उनकी जीवनचर्या, है सम्मानित और आकर्षक
वो हर जगह पूज्यमान है , हो झुमरी तलैया या फिर रोम
कुछ श्वेत वस्त्र को करते सुशोभित , कुछ गाते है हरिओम
तुम, साम दाम दंड भेद , के निपुण उपयोग कर्ता हो
हो कुबेर तुम, विश्वकर्मा भी , सफ़ेद पोशो के भर्ता हो
तुम अमर बेलि , तुम समदर्शी , तुम हो चक्रवर्ती निष्कंटक
तुम ही तो हो प्रेरणा के स्रोत अपने, और राजयोग के भंजक
हे धवल वस्त्र धारक, जीवन संहारक, तुम ही दिव्य आत्मा हो
हे मानव कुल श्रेष्ठ ,स्वयं ही बताओ, कैसे आपका खात्मा हो
अब इन रक्तबीज के समान हैं ...शिशुपाल के संहारक ही इन दिव्य आत्माओं का नाश कर सकते हैं ....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति ...
समाज को खोखला करते सफेदपोश लोगों पर चोट करती बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteऐसे दबंग अलग अलग नाम से हर जगह पाए जाते हैं ...पर संहार करने के लिए तो अवतार ही लाना होगा.
ReplyDeleteसफेदपोशों को बेनकाब करती बढ़िया रचना .
वाह, पूरा का पूरा परिभाषित कर दिया।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया, उनकी ही भाषा में जिनके लिए रची है. वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सटीक व्यंग्य . बहुत सुन्दर ये एक नया संयोजन - कहीं साहित्यिक भाषा में पगी और कहीं सत्य कीप्रत्यंचा पर चढ़ी.
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना आशीश जी ... समय से मेल खाती हुई ... बधाई ...
ReplyDeletekoob achchi lagi.
ReplyDeleteहे मानव कुल श्रेष्ठ ,स्वयं ही बताओ, कैसे आपका खात्मा हो
ReplyDeleteकाश की यह पता चल पाता...युक्ती मिलती इन्हें समूल नष्ट करने की..
सचमुच आपके और मेरे कविता की वाक्य संरचना भर में भेद है...बात /आत्मा एक ही है....और शायद यह भावना भारत देश के जन जन के मन का है...
बहुत ही सुन्दर रचना रची है आपने...
अहा!
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