नीड़ का निर्माण दुष्कर ,मत हो तू हतप्राण
बाधा विविध ,तू एकला चल ,है झेलना तुझे कटु बाण
बाधा विविध ,तू एकला चल ,है झेलना तुझे कटु बाण
स्वेद से है तेरे सुशोभित ,पुरुषार्थ की परिभाषा
पाषाण उर से निकले है निर्झर,ऐसी हो अभिलाषा
अपने अंतर्मन की नीरवता को, मत करने दे कुठाराघात
बन उत्कृष्ट तू ,छू ले व्योम ,हो निशा का अंत , आये प्रभात
अवलम्ब बन तू नीड़ का , स्फूर्ति भर , तू गर्व कर
गृह के सजने से पहले , तू बैठ नहीं सकता थक कर
कोई, उपल घात या . चंचला , नहीं झुका सकते तेरे मनोबल को
पथ खुला पड़ा है तेरा , दौड़ सरपट , कर धता बता तू छलबल को
कल जब सूरज निकलेगा , नभ के अपनी प्रदक्षिणा पर
वो प्राण शक्ति लेगा तुमसे , चंदा की किरने होगी न्योछावर
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ReplyDeleteबहुत ही प्रेरक प्रस्तुति। इसे पढने के बाद तो कोई कितना भी निराश हो , उत्साह से भर जाएगा। आपकी हर रचना एक से एक लाजवाब होती हैं. इतनी सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई एवं शुभकामनाएं।
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कल जब सूरज निकलेगा , नभ के अपनी प्रदक्षिणा पर
ReplyDeleteवो प्राण शक्ति लेगा तुमसे , चंदा की किरने होगी न्योछावर
सुबह का उजाला सी फैलाती रचना .सकारात्मक दृष्टिकोण से रची बसी.
बहुत सुन्दर.
कोई, उपल घात या . चंचला , नहीं झुका सकते तेरे मनोबल को
ReplyDeleteपथ खुला पड़ा है तेरा , दौड़ सरपट , कर धता बता तू छलबल को
यानि कि कोई व्यवधान नहीं है आगे बढने के मार्ग में ...
.अपने अंतर्मन की नीरवता को, मत करने दे कुठाराघात
बन उत्कृष्ट तू ,छू ले व्योम ,हो निशा का अंत , आये प्रभात
बहुत प्रेरणादायी पंक्तियाँ ....उत्तम शब्दों के चुनाव के साथ उत्कृष्ट रचना ....
एकला चलो रे , नहीं है जीवन का पर्याय . पुरुषार्थ भी किया जाता है लेकिन अकेले पुरुषार्थ करते करते थक जाता है इंसान और इस जीवन में दूसरोंकी भी जरूरत होती है. इसका अहसास समय के साथ होने लगता है. नीड़ बना कर सजाना ही तो उद्देश्य नहीं मानव जीवन का.
ReplyDeleteवैसे प्रेरणात्मक रचना और शब्दों का चयन बहुत सुन्दर है.
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आशावादिता व ओजस्विता से भरा प्रवाह।
ReplyDeleteअवलम्ब बन तू नीड़ का , स्फूर्ति भर , तू गर्व कर
ReplyDeleteगृह के सजने से पहले , तू बैठ नहीं सकता थक कर
सच है ... तक कर बैठने से काम पूरा नही होता .... आशा का दामन संभालना होता है .. अच्छा लिखा है ....
भई एक बात तो है.... आप बड़ा इन्स्पाईरेटिव लिखते हैं... आप अपनी लेखनी को क्या खिलाते हैं.....? ज़रा यह ज़रूर बताइयेगा....
ReplyDelete10/10
मेरे बेटे की डेथ की वजह से मैं लेट आया.....
ReplyDeleteप्रांजल भाषा से सजी हुई मोहक कविता !
ReplyDeleteaashish ji
ReplyDeletebahut achi rachna . bahut hi thoughtful expression.
maine aapke anuwaad ko apni poem me daala hai.
aap ek email mujhe daale ya waha poem par hi cpomment daal de.
aapka bahut dhanywaad.
vijay
निराशा के भंवर में हिचकोले खाते जीवनों को भी नभ छूने की प्रेरणा देती एक खूबसूरत रचना. आभार.
ReplyDeleteसादर
डोरोथी.
सुन्दर.
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