मै लिख नहीं सकता, क्योकि मेरे ज्ञान चक्षु बंद है.
हा मै पंकज नहीं हूँ, नहीं मेरी वाणी में मकरंद है.
अभिव्यक्ति , खोजती है चतुर शब्दों का संबल
सक्रिय मस्तिस्क और खुले दृग , प्रतिपल
दिवास्वप्न जैसा क्यों मुझे सब प्रतीत होता है.?
क्या हर लेखक का लिखने का अतीत होता है?
क्या मै संवेदनहीन हूँ या मेरी आंखे बंद है
या नहीं जानता मै , क्या नज़्म क्या छंद है.
वेदना को शब्द देना, पुलकित मन का इठलाना.
सर्व विदित है शब्द- शर , क्यू मै रहा अनजाना
मानस सागर में है उठता , जिन भावो का स्पंदन.
तिरोहित होकर वो शब्दों में, चमके जैसे कुंदन.
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ReplyDeleteनहीं जानती अतीत के बारे में, लेकिन हर लेखक का एक सुन्दर भविष्य अवश्य होता है।
ब्लॉग-जगत में आपका स्वागत है।
शुभकामनायें।
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वाह ...क्या बात है ...
ReplyDeleteदिवास्वप्न जैसा क्यों मुझे सब प्रतीत होता है.?
क्या हर लेखक का लिखने का अतीत होता है?
वैसे तो हर इंसान का अतीत होता है ....कुछ लोंग अपनी भावनाओं को लिख पाते हैं और कुछ केवल महसूस कर रह जाते हैं ...सुन्दर अभिव्यक्ति ..शुभकामनायें
आह हा क्या बात है आखिरकार ब्लॉग बना ही लिया स्वागत है ..और शुरुआत भी क्या कमाल कि है "मुझे लिखना नहीं आता " अगर ये नहीं लिखना आता तो हम तो निकल ही लेते हैं यहाँ से :)
ReplyDeleteइन्हें कहते हैं की हम तो छुपे रुस्तम हैं और न न करते भी सबको ब्लॉग में बांध लिया. तुमको लिखना नहीं आता है तो फिर हम क्या कहें?
ReplyDeleteइस ब्लॉग जगत में हार्दिक स्वागत है.
बहुत अच्छी अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteसादर
मधुरेश
आपको लिखना आता है.. हमे ही पढ़ना सीखना होगा..
ReplyDeleteBhai You are great Excellent
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