यू करो मन का दीप प्रज्ज्लावित , निर्मम तम , क्लांत ना कर पाए
आशा के तुम दीप जलाओ , दीखे प्रदीप , मन अशांत ना कर पाए
प्राण की बाती, स्वावलंबन की मशाल से , ह्रदय चीरते तम का
उच्छ्वास बने पुण्य प्रकाश , हो ये द्रष्टान्त अपूर्व और अनुपम सा
बनो मानवता के पथ प्रदर्शक , तिमिर चाहे कितना भी घनेरा हो
निज मन की दीप्ती से कह दो , ना चिराग तले कभी अँधेरा हो
हो कितना भी गहरा नैराश्य भाव , जिजीविषा बिखर ना पाए
स्फुलिंग, इस विद्रूप जड़ता का , कही और प्रखर ना हो जाये
धरा का हर कण , प्रकाश पुंज , चिन्तनशील और देदीप्यमान हो
कर सके समूल नाश, तिमिर और तमस का, हम ऐसे प्रकाशवान हो
हो कितना भी गहरा नैराश्य भाव , जिजीविषा बिखर ना पाए
ReplyDeleteस्फुलिंग, इस विद्रूप जड़ता का , कही और प्रखर ना हो जाये
मैं निशब्द हूँ ..बेहतरीन भाव सुन्दर शब्द विन्यास ..निश्चित ही हिंदी के शब्दों का बेहतरीन प्रयोग जानते हैं आप.
पिछली कविता में श्रृंगार रस के बाद ओज से भरी आपकी कविता। अद्भुत ! बहुत ही प्रेरक।
ReplyDeletebahut hi achhi kavita hai aapki
ReplyDeletedeepti sharma
धरा का हर कण , प्रकाश पुंज , चिन्तनशील और देदीप्यमान हो
ReplyDeleteकर सके समूल नाश, तिमिर और तमस का, हम ऐसे प्रकाशवान हो
बहुत सुन्दर ...मन में चेतना जगाती सुन्दर ...अति सुन्दर भावों से भरी रचना ..
बहुत अच्छे , क्या लिखा है लगता है कि ये कलम अब तक छुपी क्यों रही. उसे निर्बाध प्रवाहमान होने दो , जो रचेगी सन्देश ही होगा. इस चलते हुए जीवन के लिए,
ReplyDeleteएक कोई अच्छा सा उपदेश ही होगा.
अति सुन्दर भावों से भरी रचना|
ReplyDeleteसंगीता जी , शिखा जी, दिव्या जी , रेखा जी .दीप्ति जी ,सुरेन्द्र जी और patali -the village जी
ReplyDeleteआप सबका बहुत आभार , मेरा हौसला आफजाई के लिए
धरा का हर कण , प्रकाश पुंज , चिन्तनशील और देदीप्यमान हो
ReplyDeleteकर सके समूल नाश, तिमिर और तमस का, हम ऐसे प्रकाशवान हो
wah ... bahut khoobsurat ashish ji... saath hi aapka shukriya jo aap mere blog par padhare ... aur apna samay diya
raly very nice poem..thanx
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत भावोँ से सजी लाजबाव कविता। शानदार हैँ आपकी लेखनी। बहुत-बहुत बधाई! -: VISIT MY BLOG :- ऐ-चाँद बता तू , तेरा हाल क्या हैँ............कविता को पढ़कर अपने अमूल्य विचार व्यक्त करने के लिए आप सादर आमंत्रित हैँ। आप इस लिँक पर क्लिक कर सकते हैँ।
ReplyDeleteहो कितना भी गहरा नैराश्य भाव , जिजीविषा बिखर ना पाए
ReplyDeleteस्फुलिंग, इस विद्रूप जड़ता का , कही और प्रखर ना हो जाये
धरा का हर कण , प्रकाश पुंज , चिन्तनशील और देदीप्यमान हो
कर सके समूल नाश, तिमिर और तमस का, हम ऐसे प्रकाशवान हो
Bahut khoob kyaa baat hai Bhaai!. Pahli ball pr hi chhakka...Aise hi Shabon ke chaukon-chaakkon ki barsaat karte rahen hm bhingte rahen, Nahate rahen,.. aanandit hote rahen, ...........Badhai sarthak aur bhaawnayi lekhan ke liye.
@क्षितीजा जी
ReplyDeleteआपका आभार उत्साहवर्धन के लिए.वैसे कानपुर में आपका स्वागत है .
@अशोक जी
बहुत बहुत धन्यवाद , पधारने के लिए
@आशीष जी
आशीष बना रहे .
@ j .p तिवारी जी
प्रसन्नता है की आपको मेरा तुच्छ प्रयास पसंद आया .
अच्छी अभिव्यक्ति ,शुभ कामनाएं । आप खबरों के लिए पढ़ सकते हैं " "खबरों की दुनियाँ"
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बनो मानवता के पथ प्रदर्शक , तिमिर चाहे कितना भी घनेरा हो
ReplyDeleteनिज मन की दीप्ती से कह दो , ना चिराग तले कभी अँधेरा हो
Bahut sundar aura preranaadaayak vicharon vali post ke liye hardik shubhkamnayen.
Truelly beautiful.. i hope that following wud surely help me to improve my vocabulary.. thnk u ..
ReplyDeleteहमारे अन्दर का प्रकाश वाह्य जगत को भी अवलोकित करेगा, इसी आस में ढो रही है धरा हमको।
ReplyDeleteसुंदर शब्द योजना के साथ आशावादी स्वर में लिखी गई यह कविता बहुत अच्छी लगी।
ReplyDeleteधरा का हर कण , प्रकाश पुंज , चिन्तनशील और देदीप्यमान हो
ReplyDeleteकर सके समूल नाश, तिमिर और तमस का, हम ऐसे प्रकाशवान हो
bahut sunder bhav...
badhai evam shubhkamnayen.
हो कितना भी गहरा नैराश्य भाव , जिजीविषा बिखर ना पाए
ReplyDeleteस्फुलिंग, इस विद्रूप जड़ता का , कही और प्रखर ना हो जाये
बहुत बढ़िया सर।
सादर
हमारी जिजीविषा ही हमें धीरे-धीरे प्रकाश की ओर लिए चलती है . बहुत सुन्दर लिखा है आपने . साधुवाद ..
ReplyDeleteवाह! बहुत सुन्दर रचा है आपने...
ReplyDeleteसादर...
सुन्दर..
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