Monday, November 11, 2013

स्वागत




ज्योतिहीन जीवन मग में 
कंटक कुल संकुल मग में 
भटक भटक पद छिन्न हुए 
मुझ से मेरे भिन्न हुए.


चुन तो लीं कलियाँ सुकुमार 
गुंथा हिममय सौरभ सार
अलियों कि गुन गुन गुंजार 
थी स्वागत गायन झंकार .


स्वर्ण घटित उन घड़ियों में 
रत्नो की फूलझड़ियों में 
तुम आयी जब मेरे द्वार 
मै दौड़ा लाने उपहार .


भूला ! मै तुम मेरी निधि हो 
फिर तव स्वागत किस विधि हो ?
करमाला या हो मनुहार 
करलो इनको ही स्वीकार .

15 comments:

  1. jab wo aagayi aapke dwaar...
    fir jis vidhi aap kare unka swagat...

    aapki kavitaon par comment karna apne bas ki baat nahi...:)

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  2. jab wo aagayi aapke dwaar...
    fir jis vidhi aap kare unka swagat...

    aapki kavitaon par comment karna apne bas ki baat nahi...:)

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  3. चुन तो लीं कलियाँ सुकुमार
    गुंथा हिममय सौरभ सार
    अलियों कि गुन गुन गुंजार
    थी स्वागत गायन झंकार .…
    बहुत सुन्दर........ सुन्दर शब्द… बधाई।

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  4. स्वर्ण घटित उन घड़ियों में
    रत्नो की फूलझड़ियों में
    तुम आयी जब मेरे द्वार
    मै दौड़ा लाने उपहार .
    ......................................छन्‍दबद्ध कविता का अनुपम उदाहरण। बहुत अच्‍छी हैं।

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  5. करमाला या हो मनुहार
    उनको करना है स्वीकार
    चेहरे पर जो चमक साथ है
    उसके आगे सब बेकार ... :)
    ================

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  6. वाह...वाह ...और सिर्फ वाह:)

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  7. सुंदर। आज कुछ खास दिन है क्या?

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  8. बहुत ही सुन्दर ..... लाजवाब

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  9. सुंदर भाव सुंदर रचना ....!!

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  10. वाह वाह..........
    बहुत ही सुन्दर......कमाल की कोमलता झलक रही हैं शब्दों से.....

    अनु

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  11. यहाँ ह्रदय तृप्त होता है..

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